जनन
जनन द्वारा कोई जीव (वनस्पति या प्राणी) अपने ही सदृश किसी दूसरे जीव को जन्म देकर अपनी जाति की वृद्धि करता है। जन्म देने की इस क्रिया को जनन कहते हैं। जनन जीवितों की विशेषता है। जीव की उत्पत्ति किसी पूर्ववर्ती जीवित जीव से ही होती है। निर्जीव पिंड से सजीव की उत्पत्ति नहीं देखी गई है। संभवत: विषाणु (Virus) इसके अपवाद हों (देखें, स्वयंजनन, Abiogenesis)। जनन के दो उद्देश्य होते हैं एक व्यक्तिविशेष का संरक्षण और दूसरा जाति की शृंखला बनाए रखना। दोनों का आधार पोषण है। पोषण से ही संरक्षण, वृद्धि और जनन होते हैं।
जीवधारियों के अंत हेलनस्पति और प्राणी दोनों आते हैं। दोनों में ही जैविक घटनाएँ घटित होती है। दोनों की जननविधियों में समानता है, पर सूक्ष्म विस्तार में अंतर अवश्य है। अत: उनका विचार अलग अलग किया जा रहा है।
डी. एन. ए. प्रतिकृति का प्रजनन में महत्त्व
वास्तव में कोशिका केन्द्रक में पाए जाने वाले गुणसूत्रों के डी.एन.ए. के अणुओं में आनुवांशिक गुणों का संदेश होता है जो जनक से संतति पीढ़ी में जाता है।
डी.एन.ए. प्रतिकृति बनना भी पूर्णरूपेण विश्वसनीय नहीं होता है। अपितु इन प्रतिकृतियों में कुछ विभिन्नताएं उत्पन्न हो जाती हैं, जिनमें से कुछ ऐच्छिक विभिन्नताएं ही संतति में समावेश हो पाती है।
विभिन्नता का महत्व
यदि एक समष्टि अपने निकेत (परितंत्र) के अनुकूल है, परन्तु निकेत में कुछ उग्र परिवर्तन (ताप, जल स्तर में परिवर्तन आदि) आने पर समष्टि का पूर्ण विनाश संभव है। परन्तु यदि समष्टि में कुछ जीवों में कुछ विभिन्नता होगी तो उनके जीने की कुछ संभावनाएं रहेंगी। अतः विभिन्नताएं स्पीशीज (समष्टि) की उत्तरजीविता को लम्बे समय तक बनाए रखने में उपयोगी है। विभिन्नता जैव विकास का आधार होती है।
प्रजनन के प्रकार
अलैंगिक प्रजनन
लैंगिक प्रजनन
अलैंगिक प्रजनन :- जनन की वह विधि जिसमें सिर्फ एकल जीव ही भाग लेते है, अलैंगिक प्रजनन कहलाता है।
लैंगिक प्रजनन :- जनन की वह विधि जिसमें नर एवं मादा दोनों भाग लेते हैं, लैंगिक प्रजनन कहलाता है।
अलैंगिक प्रजनन व लैंगिक प्रजनन में अंतर
अलैंगिक प्रजनन की विधियाँ
विखंडन
द्विविखंडन
बहुखंडन
खंडन
पुनरुद्भवन (पुनर्जनन)
मुकुलन
बीजाणु समासंघ
कायिक प्रवर्धन
बीजाणु समासंघ
विखंडन :- इस प्रजनन प्रक्रम में एक जनक कोशिका दो या दो से अधिक संतति कोशिकाओं में विभाजित हो जाती है। उदाहरण :-
द्विविखंडन :- इसमे जीव दो कोशिकाओं में विभाजित होता है। उदाहरण :- अमीबा, लेस्मानिया
बहुखंडन :– इसमे जीव बहुत सारी कोशिकाओं में विभाजित हो जाता है। उदाहरण :- प्लैज्मोडियम
खंडन :- इस प्रजनन विधि में सरल संरचना वाले बहुकोशिकीय जीव विकसित होकर छोटे – छोटे टुकड़ों में खंडित हो जाता है। ये टुकड़े वृद्धि कर नए जीव में विकसित हो जाते हैं। उदाहरण :- स्पाइरोगाइरा।
पुनरुद्भवन (पुनर्जनन):- इस प्रक्रम में किसी कारणवश, जब कोई जीव कुछ टुकड़ों में टूट जाता है, तब प्रत्येक टुकड़ा नए जीव में विकसित हो जाता है। उदाहरण :- प्लेनेरिया, हाइड्रा।
मुकुलन :- इस प्रक्रम में, जीव के शरीर पर एक उभार उत्पन्न होता है जिसे मुकुल कहते हैं। यह मुकुल पहले नन्हें फिर पूर्ण जीव में विकसित हो जाता है तथा जनक से अलग हो जाता है। उदाहरण :- हाइड्रा, यीस्ट ( खमीर )।
बीजाणु समासंघ :- कुछ जीवों के तंतुओं के सिरे पर बीजाणु धानी बनती है जिनमें बीजाणु होते हैं। बीजाणु गोल संरचनाएँ होती हैं जो एक मोटी भित्ति से रक्षित होती हैं। अनुकूल परिस्थिति मिलने पर बीजाणु वृद्धि करने लगते हैं।
कायिक प्रवर्धन :- कुछ पौधों में नए पौधे का निर्माण उसके कायिक भाग जैसे जड़, तना पत्तियाँ आदि से होता है, इसे कायिक प्रवर्धन कहते हैं।
कायिक प्रवर्धन की प्राकृतिक विधियाँ :-
जड़ द्वारा :- डहेलिया, शकरकंदी
तने द्वारा :- आलू, अदरक
पत्तियों द्वारा :- ब्रायोफिलम की पत्तियों की कोर पर कलिकाएँ होती हैं, जो विकसित होकर नया पौधा बनाती है।
कायिक प्रवर्धन की कृत्रिम विधियाँ :-
रोपण :- आम
कर्तन – गुलाब
लेयरिंग :- चमेली
ऊतक संवर्धन :- आर्किक, सजावटी पौधे
कायिक संवर्धन के लाभ :-
बीज उत्पन्न न करने वाले पौधे ; जैसे :- केला, गुलाब आदि के नए पौधे बना सकते हैं।
नए पौधे आनुवंशिक रूप में जनक के समान होते हैं।
बीज रहित फल उगाने में मदद मिलती है।
पौधे उगाने का सस्ता और आसान तरीका है।
7.बीजाणु समासंघ :- इस अलैंगिक जनन प्रक्रम में कुछ सरल बहुकोशिकीय जीवों के ऊर्ध्व तंतुओं पर सूक्ष्म गुच्छ (गोल) संरचनाएं जनन में भाग लेती हैं। ये गुच्छ बीजाणुधानी है जिनमें बीजाणु वृद्धि करके राइजोपस के नए जीव उत्पन्न करते हैं।
ऊतक संवर्धन
वह क्रिया है जिससे विविध शारीरिक ऊतक अथवा कोशिकाएँ किसी बाह्य माध्यम में उपयुक्त परिस्थितियों के विद्यमान रहने पर पोषित की जा सकती हैं। यह भली भाँति ज्ञात है कि शरीर की विविध प्रकार की कोशिकाओं में विविध उत्तेजनाओं के अनुसार उगने और अपने समान अन्य कोशिकाओं को उत्पन्न करने की शक्ति होती है। यह भी ज्ञात है कि जीवों में एक आंतरिक परिस्थिति भी होती है। (जिसे क्लाउड बर्नार्ड की मीलू अभ्यंतर कहते हैं) जो सजीव ऊतक की क्रियाशीलता को नियंत्रित रखने में बाह्य परिस्थितियों की अपेक्षा अधिक महत्व की है। ऊतक-संवर्धन-प्रविधि का विकास इस मौलिक उद्देश्य से हुआ कि कोशिकाओं के कार्यकारी गुणों के अध्ययन की चेष्टा की जाए और यह पता लगाया जाए कि ये कोशिकाएँ अपनी बाह्य परिस्थितियों से किस प्रकार प्रभावित होती हैं और उनपर स्वयं क्या प्रभाव डालती हैं। इसके लिए यह आवश्यक था कि कोशिकाओं को अलग करके किसी कृत्रिम माध्यम में जीवित रखा जाए जिससे उनपर समूचे जीव का प्रभाव न पड़े
उदहारण :- आर्किक, सजावटी पौधे।
द्विखण्डन तथा बहुखण्डन में अन्तर
लैंगिक प्रजनन
इस जनन विधि में नयी संतति उत्पन्न करने हेतु वे व्यष्टि (एकल जीवों) की भागीदारी होती है। दूसरे शब्दों में नवीन संतति उत्पन्न करने हेतु नर व मादा दोनों लिंगों की आवश्यकता होती है।
लैंगिक प्रजनन नर व मादा युग्मक के मिलने से होता है।
नर व मादा युग्मक के मिलने के प्रक्रम को निषेचन कहते हैं।
संतति में विभिन्नता उत्पन्न होती है।
डी. एन. ए. की प्रतिकृति बनाना जनन के लिए आवश्यक क्यों है ?
जनन प्रक्रिया में डी. एन .ए. प्रतिकृतिकरण एक आवश्यक प्रक्रम है, इसके फलस्वरूप जीवधारी की संरचना निश्चित बनी रहती है, जिसके कारण जीवधारी अपने सूक्ष्मावास के अनुरूप बना रहता है।
फूल के प्रकार
एक लिंगी पुष्प :- जब पुष्प में पुंकेसर अथवा स्त्रीकेसर में से कोई एक जननांग उपस्थित होता है तो पुष्प एकलिंगी कहलाते हैं।
उदहारण :- पपीता, तरबूज।
उभयलिंगी पुष्प :- जब पुष्प पुंकेसर एवं स्त्रीकेसर दोनों उपस्थित होते हैं तो उन्हें उभयलिंगी पुष्प कहते हैं।
उदहारण :- गुड़हल, सरसों
बीज निर्माण की प्रक्रिया
परागकोश में उत्पन्न परागकण, हवा, पानी या जन्तु द्वारा उसी फूल के वर्तिक्राग (स्वपरागण) या दूसरे फूल के वर्तिकाग्र (परपरागण) पर स्थानांतरित हो जाते हैं।
परागकण से एक नलिका विकसित होती है जो वर्तिका से होते हुए बीजांड तक पहुँचती है।
अंडाशय के अन्दर नर व मादा युग्मक का निषेचन होता है तथा युग्मनज का निर्माण होता है,
युग्मनज में विभाजन होकर भ्रूण का निर्माण होता है। बीजांड से एक कठोर आवरण विकसित होकर बीज में बदल जाता है।
अंडाशय फल में बदल जाता है तथा फूल के अन्य भाग झड़ जाते हैं।
अंकुरण
बीज (भावी पौधा) / भ्रूण जो उपयुक्त पीरास्थितियों में नवोद्भिद में विकसित होता है। इस प्रक्रम को अंकुरण कहते हैं।
परागण तथा निषेचन में अंतर
मानव में प्रजनन
मानव एक निश्चित उम्र के बाद ही प्रजनन क्रिया को सम्पन्न कर सकने में सक्षम हो पाता है, इसे 'यौवन' (Puberty) कहते हैं। मानव जैसे जटिल बहुकोशिकीय जीवों में शुक्राणु और अंडाणु के निर्माण, शुक्राणुओं एवं अंडाणु के निषेचन और शिशु के रूप में युग्मनज (Zygote) की वृद्धि और विकास के लिए विशेष प्रजनन अंग पाये जाते हैं।18-Apलैंगिक परिपक्वता :- जीवन का वह काल जब नर में शुक्राणु तथा मादा में अंड – कोशिका का निर्माण शुरू हो जाता है। किशोरावस्था की इस अवधि को यौवनारंभ कहते हैं।
यौवनारंभ पर परिवर्तन
किशोरों में एक समान :-
कांख व जननांग के पास गहरे बालों का उगना।
त्वचा का तैलीय होना तथा मुँहासे निकलना।
लड़कियों में :-
स्तन के आकार में वृद्धि होने लगती है।
रजोधर्म होने लगता है।
लड़कों में :-
चेहरे पर दाढ़ी – मूंछ निकलना।
आवाज का फटना।
ये परिवर्तन संकेत देते हैं कि लैंगिक परिपक्वता हो रही है।
नर जनन तंत्र
जनन कोशिका उत्पादित करने वाले अंग एवं जनन कोशिकाओं को निषेचन के स्थान तक पहुँचाने वाले अंग, संयुक्त रूप से, नर जनन तंत्र बनाते हैं। रुष प्रजनन अंग और उसके कार्यपुरुष जननेन्द्रियों तंत्र में बाहरी और आंतरिक में कई अंग होते हैं। इनमें से दो दिखाई देते हैं _ वृषण, शुक्राशय थैली और शिश्न (लिंग)। ये अंग वाहिका नली (शुक्रवाहिका नली) से जुड़े होते हैं। तंत्र के पौरूष ग्रंथी और मुत्रनली अंग शरीर के अन्दर होते हैं।
वृषण :- कोशिका अथवा शुक्राणु का निर्माण वृषण में होता है। यह उदर गुहा के बाहर वृषण कोष में स्थित होते हैं। इसका कारण यह है कि शुक्राणु उत्पादन के लिए आवश्यक ताप शरीर के ताप से कम होता है।
वृषण ग्रन्थी, टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन उत्पन्न करती है।
टेस्टोस्टेरॉन के कार्य :-
शुक्राणु उत्पादन का नियंत्रण।
लड़कों में यौवनावस्था परिवर्तन।
शुक्रवाहिनी :- उत्पादित शुक्राणुओं का मोचन शुक्रवाहिकाओं द्वारा होता है। ये शुक्रवाहिकाएँ मूत्राशय से आने वाली नली से जुड़ कर एक संयुक्त नली बनाती है।
मूत्रमार्ग :- यह मूत्र और वीर्य दोनों के बाहर जाने का मार्ग हैं। बाहरी आवरण के साथ इसे शिश्न कहते हैं।
संबंधित ग्रंथियाँ :- शुक्राशय ग्रथि तथा प्रोस्ट्रेट ग्रंथि अपने स्राव शुक्रवाहिनी में डालते हैं।
इससे :-
शुक्राणु तरल माध्यम में आ जाते हैं।
यह माध्यम उन्हें पोषण प्रदान करता है।
उनके स्थानांतरण में सहायता करता है। शुक्राणु तथा ग्रंथियों का स्राव मिलकर वीर्य बनाते हैं।
मादा जनन तंत्र
अंडाशय :-
मादा युग्मक अथवा अंड – कोशिका का निर्माण अंडाशय में होता है।
लड़की के जन्म के समय ही अंडाशय में हजारों अपरिपक्व अंड होते हैं।
यौवनारंभ पर इनमें से कुछ अंड परिपक्व होने लगते हैं।
दो में से एक अंडाशय द्वारा हर महीने एक परिपक्व अंड उत्पन्न किया जाता है।
अंडाशय एस्ट्रोजन व प्रोजैस्ट्रोन हॉर्मोन भी उत्पन्न करता है।
अंडवाहिका (फेलोपियन ट्यूब) :-
अंडाशय द्वारा उत्पन्न अंड कोशिका को गर्भाशय तक स्थानांतरण करती है।
अंड कोशिका व शुक्राणु का निषेचन यहाँ पर होता है।
गर्भाशय :-
यह एक थैलीनुमा संरचना है जहाँ पर शिशु का विकास होता है।
गर्भाशय ग्रीवा द्वारा योनि में खुलता हैं।
जब अंड – कोशिका का निषेचन होता है
निषेचित अंड युग्मनज कहलाता है, जो गर्भाशय में रोपित होता है। गर्भाशय में रोपण के पश्चात् युग्मनज में विभाजन व विभेदन होता है तथा भ्रूण का निर्माण होता है।
जब अंड का निषेचन नहीं होता
हर महीने गर्भाशय खुद को निषेचित अंड प्राप्त करने के लिए तैयार करता है।
गर्भाशय की भित्ती मांसल एवं स्पोंजी हो जाती है। यह भ्रूण के विकास के लिए जरूरी है।
यदि निषेचन नहीं होता है तो इस भित्ति की आवश्यकता नहीं रहती। अतः यह पर्त धीरे – धीरे टूट कर योनि मार्ग से रक्त एवं म्यूकस के रूप में बाहर निकलती है।
यह चक्र लगभग एक महीने का समय लेता है तथा इसे ऋतुस्राव अथवा रजोधर्म कहते हैं।
40 से 50 वर्ष की उम्र के बाद अंडाशय से अंड का उत्पन्न होना बन्द हो जाता है। फलस्वरूप रजोधर्म बन्द हो जाता है जिसे रजोनिवृति कहते हैं।
प्लेसेंटा
प्लेसेंटा यानी अपरा गर्भावस्था के दौरान गर्भाशय के अंदर विकसित होने वाली संरचना है। इससे गर्भस्थ शिशु को ऑक्सीजन और पोषण मिलता है। प्लेसेंटा गर्भनाल के जरिए शिशु से जुड़ी होती है।
प्लेसेंटा के मुख्य कार्य :-
माँ के रक्त से ग्लूकोज ऑक्सीजन आदि ( पोषण ) भ्रूण को प्रदान करना।
भ्रूण द्वारा उत्पादित अपशिष्ट पदार्थों का निपटान।
गर्भकाल
अंड के निषेचन से लेकर शिशु के जन्म तक के समय को गर्भकाल कहते हैं। इसकी अवधि लगभग 9 महीने होती है।
जनन स्वास्थ्य
जनन स्वास्थ्य का अर्थ है, जनन से संबंधित सभी आयाम जैसे शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं व्यावहारिक रूप से स्वस्थ्य होना।
रोगों का लैंगिक संचरण
(STD’s) अनेक रोगों का लैंगिक संचरण भी हो सकता है ;
जैसे :-
जीवाणु जनित :- गोनेरिया, सिफलिस
विषाणु जनित :- मस्सा (warts), HIV – AIDS
कंडोम के उपयोग से इन रोगों का संचरण कुछ सीमा तक रोकना संभव है।
गर्भरोधन
इसे सुनेंरोकेंगर्भरोधन—गर्भधारण को रोकना गर्भरोधन कहलाता है। मादा में अंड को न बनने देना, इसके लिए दवाई ली जाती है जो हॉर्मोन के संतुलन को परिवर्तित कर देती है। इनके अन्य प्रभाव (विपरीत प्रभाव) भी हो सकते हैं।
गर्भरोधन के प्रकार
यांत्रिक अवरोध :-
शुक्राणु को अंडकोशिका तक नहीं पहुँचने दिया जाता।
उदाहरण :-
शिश्न को ढकने वाले कंडोम
योनि में रखे जाने वाले सरवाइकल कैप
रासायनिक तकनीक :-
मादा में अंड को न बनने देना, इसके लिए दवाई ली जाती है जो हॉर्मोन के संतुलन को परिवर्तित कर देती है।
इनके अन्य प्रभाव (विपरीत प्रभाव) भी हो सकते हैं।
IUCD (Intra Uterine contraceptive device) :-
लूप या कॉपर- T को गर्भाशय में स्थापित किया जाता है। जिससे गर्भधारण नहीं होता।
शल्यक्रिया तकनीक :-
नसबंधी :- पुरुषों में शुक्रवाहिकाओं को रोक कर, उसमें से शुक्राणुओं के स्थानांतरण को रोकना।
ट्यूबेक्टोमी :- महिलाओं में अंडवाहनी को अवरुद्ध कर, अंड के स्थानांतरण को रोकना।
भ्रूण हत्या
मादा भ्रूण को गर्भाशय में ही मार देना भ्रूण हत्या कहलाता है।
एक स्वस्थ्य समाज के लिए, संतुलित लिंग अनुपात आवश्यक है। यह तभी संभव होगा जब लोगों में जागरूकता फैलाई जाएगी व भ्रूण हत्या तथा भ्रूण लिंग निर्धारण जैसी घटनाओं को रोकना होगा|
NCERT SOLUTIONS
प्रश्न (पृष्ठ संख्या 142)
प्रश्न 1 डी. एन. ए. प्रतिकृति का प्रजनन में क्या महत्त्व है?
उत्तर- जनन की मूल घटना डी.एन.ए. की प्रतिकृति बनाना है। डी.एन. ए. की प्रतिकृति बनाने के लिए कोशिकाएँ विभिन्न रासायनिक क्रियाओं का उपयोग करती है। जनन कोशिका में इस प्रकार डी. एन. ए. की दो प्रतिकृतियाँ बनती है। जनन के दौरान डी. एन. ए. प्रतिकृति का जीव की शारीरिक संरचना एवं डिजाईन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है जो जीवों के विशिष्ट स्थान में रहने के योग्य बनाती है।
प्रश्न 2 जीवों में विभिन्नता स्पीशीज के लिए तो लाभदायक है परन्तु व्यष्टि के लिए आवश्यक नहीं है, क्यों?
उत्तर- जीवों में विभिन्नता स्पीशीज के लिए तो लाभदायक है परन्तु व्यष्टि के लिए आवश्यक नहीं है, क्योंकि जीवों में विभिन्नता उनकी स्पीशीज (प्रजाति) की समष्टि को स्थायित्व प्रदान करता है। कोई भी एक समष्टि अपने निकेत के प्रति अनुकूलित होते हैं, परन्तु विषम परिस्थितियों में जब कोई निकेत उनके अनुकूल नहीं रह जाता है तब यही विभिन्नताएँ उनकी समष्टि के समूल विनाश से बचाता है। उनके समष्टि में कुछ ऐसे भी जीव होते है जो उन विषम परिवर्तन का प्रतिरोध कर पाते है और वे जीवित बच जाते है, परन्तु उनके समष्टि से कुछ व्यष्टि मर जाते हैं। अत: विभिन्नताएँ समष्टि की उत्तरजीविता बनाए रखने के लिए लाभदायक है।
प्रश्न (पृष्ठ संख्या 146)
प्रश्न 1 द्विखंडन बहुखंडन से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर- द्विखंडन-
प्रत्येक जीव (कोशिका) विभक्त होकर दो संतति जीव बनता है।
इसमें जीव सिस्ट नहीं बनाता।
पैत्रक कोशिका टूटकर बिखर नहीं जाती है।
उदाहरण- अमीबा, पैरामीशियम।
बहुखंडन-
एककोशिकीय जीव अनेकों संतति व्यष्टिकाओं/ कोशिकाओं में विभक्त हो जाता है।
इसमें जीव सिस्ट बनाता है।
पैत्रक कोशिका टूटकर बिखर जाती है तथा बहुत-सी संतति कोशिकाओं को छोड़ देती है।
उदाहरण- लेस्मानिया, प्लैज़्मोडियम।
प्रश्न 2 बीजाणु द्वारा जनन से जीव किस प्रकार लाभान्वित होता है?
उत्तर- बीजाणु द्वारा जनन से जीव प्रतिकल परिस्थितियों में भी जनन कर सकते हैं क्योंकि बीजाण के चारों ओर मोती भित्ति होती है जो प्रतिकूल परिस्थितियों में भी इसकी रक्षा करती है। इस प्रकार के जनन में बीजाणुधानी में अनेक बीजाणु उत्पन्न होते है जो एक बार में ही अंकुरित हो जाते हैं। इस प्रकार से एक बार में ही अनेक जीव उत्पन्न हो जाते हैं।
प्रश्न 3 क्या आप कुछ कारण सोच सकते हैं, जिससे पता चलती हो कि जटिल संरचना वाले जीव पुनरुद्भवन द्वारा नयी संतति उत्पन्न नहीं कर सकते?
उत्तर- जटिल संरचना वाले जीवों में विशिष्ट कार्य करने के लिए एक खास अंग एवं अंगतंत्र होते हैं, इसलिए ऐसे जीवों के किसी भाग को काट कर नया जीव उत्पन्न नहीं किया जा सकता है। पुनरुद्भवन विशिष्ट कोशिकाओं द्वारा संपादित होती है। इन कोशिकाओं के क्रमप्रसरण से अनेक कोशिकाएँ बन जाती हैं। इस प्रकार का जनन केवल उन्हीं जीवों में संभव है जिनमें विशिष्ट कार्य के लिए अंग नहीं पाए जाते हैं।
प्रश्न 4 कुछ पौधों को उगाने के लिए कायिक प्रवर्धन का उपयोग क्यों किया जाता है?
उत्तर- कुछ पौधों को उगाने के लिए कायिक प्रवर्धन का उपयोग किया जाता है-
जिन पौधों में बीज उत्पन्न करने की क्षमता नहीं होती है उनका प्रजनन कायिक प्रवर्धन द्वारा ही किया जाता है।
इस विधि द्वारा उगाये गए पौधों में बीज बीज द्वारा उगाये गए पौधों की अपेक्षा कम समय में फल और फुल लगने लगते है।
इस विधि द्वारा उगाये गए पौधों में फल एवं फुल जनक पौधों के समान ही होते है।
प्रश्न 5 डी. एन. ए की प्रतिकृति बनाना जनेन के लिए आवश्यक क्यों है?
उत्तर- डी. एन. ए. आनुवांशिक पदार्थ है जो अपने गुण एक कोशिका से संतति कोशिकाओं में कोशिका विभाजन के समय स्थानांतरित कर देता है। यह जीवन की निरंतरता बनाए रखता है। इस प्रकार से नए जीव वही गुण बनाए रखते हैं। यह किसी जाती विशेष के गुणों को बनाए रखता है।
प्रश्न (पृष्ठ संख्या 154)
प्रश्न 1 परागण क्रिया निषेचन से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर- परागण क्रिया-
परागण से पराग कणों का वर्तिकाग्र तक का परिवहन परागण क्रिया कहलाता है।
इसमें कोशिकाएँ संलागित नही होती।
इस क्रिया को पूर्ण करने के लिए प्राय: वाहकों का इंतजार करता पड़ता है।
निषेचन-
नर व मादा युग्मों का संयोजन निषेचन कहलाता है।
इसमें नर व मादा कोशिकाएँ संलगित होती है।
यह क्रिया संव्य होती है।
प्रश्न 2 शुक्राशय एवं प्रोस्टेट ग्रंथि की क्या भूमिका है?
उत्तर- प्रोस्ट्रेट तथा शुक्राणु अपने स्राव शुक्रवाहिका में डालते हैं, जिससे शुक्राणु एक तरल माध्यम में आ जाते हैं। इसके कारण इनका स्थानांतरण सरलता से होता है, साथ ही यह स्राव उन्हें पोषण भी प्रदान करता है।
प्रश्न 3 यौवनारंभ के समय लड़कियों में कौन-से परिवर्तन दिखाई देते हैं?
उत्तर-
शरीर के कुछ नए भागों जैसे काँख और जाँघों के मध्य जननांगी क्षेत्र में बाल गुच्छ निकल आते हैं।
हाथ, पैर पर महीन रोम आ जाते हैं।
त्वचा तैलीय हो जाती है। कभी-कभी मुहाँसे निकल आते हैं।
वक्ष के आकार में वृद्धि होने लगती है।
स्तनाग्र की त्वचा का रंग गहरा भूरा होने लगता है।
अंडाशय में अंड परिपक्व होने लगते हैं।
रजोधर्म होने लगता है।
विपरीत लिंग की ओर आकर्षण होने लगता है।
ध्वनि सुरीली हो जाती है।
प्रश्न 4 माँ के शरीर में गर्भस्थ भ्रूण को पोषण किस प्रकार प्राप्त होता है?
उत्तर- भ्रूण माँ के गर्भस्थ में पोषित होता है। माँ के रक्त से पोषण प्रपात करता है। माँ से प्लेसेन्टा नामक ऊतक से जुड़ा होता है तथा इसी के माध्यम से जल, ग्लूकोज, ऑक्सीजन तथा अन्य पोषण तत्व प्राप्त करता है।
प्रश्न 5 यदि कोई महिला कॉपर-टी का प्रयोग कर रही है तो क्या यह उसकी यौन-संचरित रोगों से रक्षा करेगा?
उत्तर- नहीं। कॉपर-टी का प्रयोग महिला की यौन-संचरित रोगों से रक्षा नहीं करेगा, क्योंकि यह विधि नर तथा मादा के बीच शारीरिक संबंध स्थापित करने में कोई बाधा उत्पन्न नहीं करती है। केवल गर्भधारण रोकती है।
अभ्यास प्रश्न (पृष्ठ संख्या 155)
प्रश्न 1 अलैंगिक जनन मुकुलन द्वारा होता है।
अमीबा।
यीस्ट।
प्लाज्मोडियम।
लेस्मानिया।
उत्तर-
यीस्ट।
प्रश्न 2 निम्न में से कौन मानव में मादा जनन तंत्र का भाग नहीं है?
अंडाशय।
गर्भाशय।
शुक्र वाहिका।
डिंब वाहिनी।
उत्तर-
शुक्र वाहिका।
प्रश्न 3 परागकोश में होते हैं।
बाह्य दल।
अंडाशय।
अंडप।
परागकण।
उत्तर-
परागकण।
प्रश्न 4 अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन का क्या लाभ है?
उत्तर- लैंगिक जनन निम्नलिखित कारणों से अलैंगिक जनन की अपेक्षा लाभकारी है-
लैंगिक जनन में नर और मादा से प्राप्त होने वाले नर युग्मक और मादा युग्मक के निषेचन से लैंगिक जनन होता है चूँकि ये दो भिन्न प्राणियों से प्राप्त होते हैं इसलिए संतान विशेषताओं की विविधता को प्रकट करते हैं।
विभिन्नताओं के बनने के साथ नए लक्षण उतपन्न होते हैं। इससे स्पीशीज़ के उद्भव में सहायता मिलती है। इसलिए यह विकास के लिए आवश्यक है।
लैंगिक जनन अलैंगिक जनन पर एक उन्नति/ बढ़ावा है।
लैंगिक जनन से गुणसूत्रों के नए जोड़े बनते हैं। इससे विकासवाद की दिशा को नए आयाम प्राप्त होते हैं। इससे जीवों में श्रेष्ठ गुणों के उतपन्न होने के अवसर बढ़ते हैं।
प्रश्न 5 मानव में वृषण के क्या कार्य हैं?
उत्तर- वृषण वृषण कोष में स्थित होते है। वृषण शुक्राणु उत्पन्न करते है। वृषण में टैस्टोस्टीरोन हार्मोन स्त्रवित होता है। वृषण नर जननांगो का अहम हिस्सा है वृषण द्वारा अतिरिक्त के लक्षणों को भी नियंत्रित करता है। वृषण द्वारा स्त्रवित हार्मोन शुक्राणु को पोषण प्रदान करते है इसके अतिरिक्त ये स्त्राव ही शुक्राणुओ के मादा स्थानांतरण में सहायता होते है।
प्रश्न 6 ऋतुस्राव क्यों होता है?
उत्तर- निषेचन नहीं होने की स्थिति में अंडाशय की अंत: भित्ति की मांसल एवं स्पोंजी परत जैसी संरचना की आवश्यकता नहीं रहती, क्योंकि यह अंड के निषेचन होने की अवस्था में उसके पोषण के लिए आवश्यक होता है। अतः यह परत धीरे-धीरे टूटकर योनि मार्ग से रुधिर एवं म्यूकस के रूप में निष्कासित होती है। इस चक्र में लगभग एक मास का समय लगता है, इसे ऋतुस्राव या रजोधर्म कहते हैं।
प्रश्न 7 पुष्प की अनुदैर्ध्य काट का नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर-
प्रश्न 8 गर्भनिरोधक की विभिन्न विधियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर- बच्चों के जन्म को नियमित करने के लिए आवश्यक है कि मादा का निषेचन न हो। इसके लिए मुख्य गर्भ निरोधक विधियां निम्नलिखित हैं-
रासायनिक विधि- ये विधियाँ मादा द्वारा प्रयोग में ली जाती है। मादा मुखीय गोलियों द्वारा गर्भधारण को रोक सकती है। मुखीय गोलियों विशेषता शरीर के हार्मोन्स में बदलाव उत्पन्न कर देती है परन्तु कई बार इनके बुरे प्रभाव भी पड़ जाते है।
अवरोधक विधियाँ- इन विधियों को शरीर के बाहर अर्थात ऊपरी त्वचा पर प्रयोग किया जाता है जैसे- नर के लिए कंडोम, मादा के लिए मध्यपट ये शक्राणु को मादा के कंडोम से नहीं मिलने देती।
शल्य क्रिया तकनीक (Surgical Method)- यदि पुरुष की शुक्रवाहिकाओं को अवरुद्ध कर दिया जाए तो शुक्राणुओं का स्थानांतरण रुक जाएगा। यदि मादा की अंडवाहिनी अथवा फेलोपियन नलिका को अवरुद्ध कर दिया जाए, तो अंड (डिंब) गर्भाशय तक नहीं पहुँच सकेगा। दोनों ही अवस्थाओं में निषेचन नहीं हो पाएगा।
प्रश्न 9 एक कोशिक एवं बहुकोशिक जीवों की जनन पद्धति में क्या अंतर है?
उत्तर- एक-कोशिक जीवों में जनन सामान्यत: अलैंगिक जनन द्वारा होता है। इसकी विभिन्न विधियाँ निम्नलिखित प्रकार से हैं। द्विखंडन, बहुखंडन, मुकुलन, समसूत्री विभाजन, असमसूत्री विभाजन। यह एकल पैतृक होता है।
नोट: इन एक-कोशिक जीवों में अधिकतर में लैंगिक जनन भी होता है।
बहुकोशिक जीवों में अधिकतर में लैंगिक जनन होता है। यह द्वि-पैतृक होता है तथा इसमें युग्मक बनने तथा उनके संयोग करने की आवश्यकता भी पड़ती है। उनमें युग्मों के बनने के लिए गौनेड, युग्मकजननि की आवश्यकता होती है।
नोट: बहुकोशिक जीवों में पौधों, निम्न प्रकार के अकशेरुकियों में अलैंगिक जनन भी होता है।
प्रश्न 10 जनन किसी स्पीशीज़ की समष्टि के स्थायित्व में किस प्रकार सहायक है?
उत्तर- अपनी जनन क्षमता के कारण जीवों की समष्टि पारितंत्र में अपना स्थान अथवा निकेत ग्रहण करने में सक्षम होते हैं। जनन के दौरान डी.एन.ए. (DNA) प्रतिकृति का अविरोध जीव की शारीरिक संरचना एवं डिजाइन के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं, जो उसे विशिष्ट निकेत के योग्य बनाती है। अतः किसी प्रजाति (स्पीशीज़) की समष्टि के स्थायित्व का संबंध जनन से है।
प्रश्न 11 गर्भनिरोधक युक्तियाँ अपनाने के क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर- गर्भनिरोधक युक्तियाँ अपनाने के निम्नलिखित अनेक कारण हो सकते हैं।
लैंगिक (यौन) रोगों से बचने के लिए।
अनचाहे गर्भ से बचने के लिए।
वित्तीय कारणों से।
स्वास्थ्य कारणों से।