आनुवंशिकी
“जीव विज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत आनुवांशिक लक्षणों के संतान में पहुंचने की रीतियों एवं आनुवंशिक समानता एवं विभिन्नताओं का अध्ययन करते हैं आनुवंशिक विज्ञान या आनुवंशिकी कहलाती है।”
आनुवंशिकता
जीवों में प्रजनन के द्वारा संतान उत्पन्न करने की अद्भुत क्षमता होती है। संतानों में कुछ लक्षण माता-पिता से पीढ़ी-दर-पीढ़ी पहुंचते रहते हैं, जिन्हें आनुवंशिक लक्षण कहते हैं। वंशागत लक्षणों (Inherited Characters) का अध्ययन आनुवंशिकता (Heredity) कहलाता है।
ग्रेगर जॉन मेंडल का योगदान
आनुवंशिकी के क्षेत्र में ग्रेगर जॉन मेंडल के महत्वपूर्ण योगदान के कारण इन्हें आनुवंशिकी का पिता कहा जाता है। ये आस्ट्रिया के पादरी थे। इन्होंने मटर के पौधों पर अनेक प्रयोग किए और उनके आधार पर कुछ निष्कर्षों को प्रतिपादित किया जिसकी रिपोर्ट 1866 में प्रकाशित की गई।
अपने प्रयोगों के आधार पर मेंडल निम्नलिखित निष्कर्ष पर पहुंचे:-
आनुवंशिक लक्षणों को पीढ़ी दर पीढ़ी ले जाने वाले लक्षण को कारक कहा जो अब जीन के नाम से जाना जाता है।
संकर संतान में यह कारण अब परिवर्तनशील होता है, फलस्वरुप अगली पीढ़ी में वह लक्षण पूर्ववत् प्रकट होते हैं।
विभिन्नता
एक स्पीशीज के विभिन्न जीवों में शारीरिक अभिकल्प और डी ० एन० ए० में अन्तर विभिन्नता कहलाता है। ऐसी विभिन्नताएँ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में वंशागत होती हैं। इसे आनुवंशिक विभिन्नता भी कहते हैं। ऐसी विभिन्नताओं में कुछ जन्म के समय से प्रकट हो जाती है। जैसे आँखों एवं बालों का रंग/शारीरिक गठन, लम्बाई में परिवर्तन आदि जन्म के बाद की विभिन्नताएँ हैं।
विभिन्नता के दो प्रकार
शारीरिक कोशिका विभिन्नता
जनन कोशिका विभिन्नता
शारीरिक कोशिका विभिन्नता :-
यह शारीरिकी कोशिका में आती है।
ये अगली पीढ़ी में स्थानान्तरित नहीं होते।
जैव विकास में सहायक नहीं है।
इन्हें उपार्जित लक्षण भी कहा जाता है।
उदाहरण :- कानों में छेद करना, कुत्तों में पूँछ काटना।
जनन कोशिका विभिन्नता :-
यह जनन कोशिका में आती है।
यह अगली पीढ़ी में स्थानान्तरित होते हैं।
जैव विकास में सहायक हैं।
इन्हें आनुवंशिक लक्षण भी कहा जाता है।
उदाहरण :- मानव के बालों का रंग, मानव शरीर की लम्बाई।
जनन के दौरान विभिन्नताओं का संचयन
विभिन्नताएँ :- जनन द्वारा परिलक्षित होती हैं चाहे जन्तु अलैंगिक जनन हो या लैंगिक जनन।
लैंगिक जनन :-
प्रजनन की वह क्रिया जिसमें दो युग्मकों (गैमीट / Gamete) के मिलने से बनी रचना युग्मज (जाइगोट) द्वारा नये जीव की उत्पत्ति होती है, लैंगिक जनन (sexual reproduction) कहलाती है। यदि युग्मक समान आकृति वाले होते हैं तो उसे समयुग्मक कहते हैं। समयुग्मकों के संयोग को संयुग्मन कहते हैं।
लैंगिक जनन :-
विविधता अपेक्षाकृत अधिक होगी
क्रास संकरण के द्वारा, गुणसूत्र क्रोमोसोम के विसंयोजन द्वारा, म्यूटेशन ( उत्परिवर्तन ) के द्वारा।
अलैंगिक जनन :-
अधिकांश जंतुओं में प्रजनन की क्रिया के लिए संसेचन (शुक्राणु का अंड से मिलना) अनिवार्य है; परंतु कुछ ऐसे भी जंतु हैं जिनमें बिना संसेचन के प्रजनन हो जाता है, इसको आनिषेक जनन या अलैंगिक जनन (Asexual reproduction) कहते हैं।
अलैंगिक जनन :-
विभिन्नताएँ कम होंगी
डी.एन.ए. प्रतिकृति के समय न्यून त्रुटियों के कारण उत्पन्न होती हैं।
विभिन्नता के लाभ
प्रकृति की विविधता के आधार पर विभिन्नता जीवों को विभिन्न प्रकार के लाभ हो सकते हैं।
उदाहरण :- ऊष्णता को सहन करने की छमता वाले जीवपणुओं को अधिक गर्मी से बचने की संभावना अधिक होती है।
पर्यावरण कारकों द्वारा उत्तम परिवर्त का चयन जैव विकास प्रक्रम का आधार बनाता है।
मेंडल का योगदान
मेंडल ने वंशागति के कुछ मुख्य नियम प्रस्तुत किए।
मेंडल को आनुवंशिकी के जनक के नाम से जाना जाता है। मैंडल ने मटर के पौधे के अनेक विपर्यासी (विकल्पी ) लक्षणों का अध्ययन किया जो स्थूल रूप से दिखाई देते हैं। उदाहरणत :- गोल / झुर्रीदार बीज, लंबे / बौने पौधे, सफेद / बैंगनी फूल इत्यादि।उसने विभिन्न लक्षणों वाले मटर के पौधों को लिया जैसे कि लंबे पौधे तथा बौने पौधे। इससे प्राप्त संतति पीढ़ी में लंबे एवं बौने पौधों के प्रतिशत की गणना की।
मेंडल द्वारा मटर के पौधे का चयन क्यों किया
मेंडल ने मटर के पौधे का चयन निम्नलिखित गुणों के कारण किया।
मटर के पौधों में विपर्यासी विकल्पी लक्षण स्थूल रूप से दिखाई देते हैं।
इनका जीवन काल छोटा होता है।
सामान्यतः स्वपरागण होता है परन्तु कृत्रिम तरीके से परपरागण भी कराया जा सकता है।
एक ही पीढ़ी में अनेक बीज बनाता है।
एकल संकरण (मोनोहाइब्रिड)
मटर के दो पौधों के एक जोड़ी विकल्पी लक्षणों के मध्य क्रास संकरण को एकल संकर क्रास कहा जाता है। उदाहरण :- लंबे पौधे तथा बौने पौधे के मध्य संकरण।
अवलोकन :-
प्रथम संतति पीढ़ी अथवा F₁ में कोई पौधा बीच की ऊँचाई का नहीं था। सभी पौधे लंबे थे। इसका अर्थ था कि दो लक्षणों में से केवल एक पैतृक जनकीय लक्षण ही दिखाई देता है।
F2 पीढ़ी में 3/4 लंबे पौधे वे 1/4 बौने पौधे थे।
फीनोटाइप F2 – 3 : 1 (3 लंबे पौधे : 1 बौना पौधा)
जीनोटाइप F2 – 1 : 2 : 1
TT, Tt, tt का संयोजन 1 : 2 : 1 अनुपात में प्राप्त होता है।
निष्कर्ष :-
TT व Tt दोनों लंबे पौधे हैं, यद्यपि tt बौना पौधा है।
T की एक प्रति पौधों को लंबा बनाने के लिए पर्याप्त है। जबकि बौनेपन के लिए t की दोनों प्रतियाँ tt होनी चाहिए।
T जैसे लक्षण प्रभावी लक्षण कहलाते हैं, t जैसे लक्षण अप्रभावी लक्षण कहलाते हैं।
द्वि – संकरण द्वि / विकल्पीय संकरण
मटर के दो पौधों के दो जोड़ी विकल्पी लक्षणों के मध्य क्रास
द्विसंकर क्रॉस के परिणाम जिनमें जनक दो जोड़े विपरीत विशेषकों में भिन्न थे जैसे बीच का रंग और बीच की आकृति।
F₂ गोल, पीले बीज : 9
गोल, हरे बीज : 3
झुरींदार, पीले बीज : 3
झुरींदार, हरे बीज : 1
इस प्रकार से दो अलग अलग (बीजों की आकृति एवं रंग) को स्वतंत्र वंशानुगति होती है।
आनुवंशिकता के नियम
प्रथम नियम के अनुसार मेंडल ने बताया की किसी जीव की अनुवंशकिता उसके परिजनों यानि माता पिता की जनन द्वारा होती है। इसका प्रयोग इन्होने मटर के पौधे पर किया था। यदि कोई दो कारक हो ओर अगर वो दोनों सामान न हो तो इनमे से एक कारक दूसरे कारक पर आसानी से प्रभावी हो जायेगा। इसे प्रभाविकता का नियम भी कहते है।
मेंडेल के आनुवांशिक के नियम
यह नियम निम्न प्रकार से हैं :-
प्रभावित का नियम।
पृथक्करण का नियम / विसंयोजन का नियम।
स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम।
प्रभाविता का नियम :- जब मेंडल ने भिन्न – भिन्न लक्षणों वाले समयुग्मजी पादपों में जब संकर संकरण करवाया तो इस क्रॉस में मेंडेल ने एक ही लक्षण प्रदर्शित करने वाले पादपों का ही अध्ययन किया। तो उसने पाया कि एक प्रभावी लक्षण अपने आप को अभिव्यक्त करता है। और एक अप्रभावी लक्षण अपने आप को छिपा लेता है। इसी को प्रभाविता कहा गया है और इस नियम को मेंडल का प्रभाविता का नियम कहा जाता है।
पृथक्करण का नियम / विसंयोजन का नियम / युग्मकों की शुद्धता का निमय :- युग्मक निर्माण के समय दोनों युग्म विकल्पी अलग हो जाते है। अर्थात् एक युग्मक में सिर्फ एक विकल्पी हो जाता है। इसलिए इसे पृथक्करण का नियम कहते है।
युग्मक किसी भी लक्षण के लिए शुद्ध होते है।
स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम :- यह नियम द्विसंकर संकरण के परिणामों पर आधारित है। इस नियम के अनुसार किसी द्विसंकर संरकरण में एक लक्षण की वंशगति दूसरे लक्षण की वंशागति से पूर्णतः स्वतंत्र होती है। अर्थात् एक लक्षण के युग्मा विकल्पी दूसरे लक्षण के युग्मविकल्पी से निर्माण के समय स्वतंत्र रूप से पृथक व पुनव्यवस्थित होते है।
इसे में लक्षण अनुपात 9 : 3 : 3 : 1 होता है।
लिंग निर्धारण
मानव के प्रत्येक कोशिका में 23 जोड़े गुणसूत्र पाए जाते हैं जिसमें 22 जोड़े को अलिंग गुणसूत्र (Autosomes) तथा अंतिम 23वें जोड़ा को लिंग गुणसूत्र (Sex Chromosomes) कहते हैं। द्विगुणित अवस्था में मादा का लिंग गुणसूत्र XX तथा नर का लिंग गुणसूत्र XY होते है। नर के इन्हीं गुणसूत्रों के द्वारा मानव में लिंग निर्धारण होता है।
लिंग निर्धारण के लिए उत्तरदायी कारक :-
कुछ प्राणियों में लिंग निर्धारण अंडे के ऊष्मायन ताप पर निर्भर करता है उदाहरण :- घोंघा
कुछ प्राणियों जैसे कि मानव में लिंग निर्धारण लिंग सूत्र पर निर्भर करता है। XX (मादा) तथा XY (नर)
मानव में लिंग निर्धारण
आधे बच्चे लड़के एवं आधे लड़की हो सकते हैं। सभी बच्चे चाहे वह लड़का हो अथवा लड़की अपनी माता से X गुणसूत्र प्राप्त करते हैं। अत : बच्चों का लिंग निर्धारण इस बात पर निर्भर करता है कि उन्हें अपने पिता से किस प्रकार का गुणसूत्र प्राप्त हुआ है।
जिस बच्चे को अपने पिता से X गुणसूत्र वंशानुगत हुआ है वह लड़की एवं जिसे पिता से Y गुणसूत्र वंशागत होता है, वह लड़का होता है।
विकास
वह निरन्तर धीमी गति से होने वाला प्रक्रम जो हजारों करोड़ों वर्ष पूर्व जीवों में शुरू हुआ नई स्पीशीज का उद्भव हुआ विकास कहलाता है।
उपार्जित लक्षण
वे लक्षण जिसे कोई जीव अपने जीवन काल में अर्जित करता है उपार्जित लक्षण कहलाता है | उदाहरण : अल्प पोषित भृंग के भार में कमी।
उपार्जित लक्षणों का गुण :
ये लक्षण जीवों द्वारा अपने जीवन में प्राप्त किये जाते हैं। ये जनन कोशिकाओं के डी.एन.ए. ( DNA ) में कोई अंतर नहीं लाते व अगली पीढ़ी को वंशानुगत / स्थानान्तरित नहीं होते।
जैव विकास में सहायक नहीं है। उदाहरण :– अल्प पोषित भंग के धार में कमी।
आनुवंशिक लक्षण
वे लक्षण जिसे कोई जीव अपने जनक से प्राप्त करता है आनुवंशिक लक्षण कहलाता है। उदाहरण :- मानव के आँखों व बालों के रंग।
आनुवंशिक लक्षण के गुण :-
ये लक्षण जीवों की वंशानुगत प्राप्त होते हैं।
ये जनन कोशिकाओं में घटित होते हैं तथा अगली पीढ़ी में स्थानान्तरित होते हैं।
जैव विकास में सहायक है। उदाहरण :- मानव के आँखों व बालों के रंग।
जाति उदभव
पूर्व स्पीशीज से नयी स्पीशीज का निर्माण ही जाति उद्भव कहलाता है। वर्त्तमान स्पीशीज का परिवर्तनशील पर्यावरण में जीवित रहना आवश्यक है क्योकि यह नयी स्पीशीज का उद्भव करते है। इन स्पीशीज के सदस्यों को जीवित रहने के लिए कुछ बाहरी लक्षण में परिवर्तन करना पड़ता है।
जाति उद्भव किस प्रकार होता है
जीन प्रवाह :- उन दो समष्टियों के बीच होता है जो पूरी तरह से अलग नहीं हो पाती है किंतु आंशिक रूप से अलग – अलग हैं।
आनुवंशिक विचलन :- किसी एक समष्टि की उत्तरोत्तर पीढ़ियों में जींस की बारंबरता से अचानक परिवर्तन का उत्पन होना।
प्राकृतिक चुनाव :- वह प्रक्रम जिसमें प्रकृति उन जीवों का चुनाव कर बढ़ावा देती है जो बेहतर अनुकूलन करते हैं।
भौगोलिक पृथक्करण :- जनसंख्या में नदी, पहाड़ आदि के कारण आता है। इससे दो उपसमष्टि के मध्य अंतर्जनन नहीं हो पाता।
आनुवंशिक विचलन का कारण
यदि DNA में परिवर्तन पर्याप्त है।
गुणसूत्रों की संख्या में परिवर्तन।
अभिलक्षण
बाह्य आकृति अथवा व्यवहार का विवरण अभिलक्षण कहलाता है। दूसरे शब्दों में, विशेष स्वरूप अथवा विशेष प्रकार्य अभिलक्षण कहलाता है। उदहारण :-
हमारे चार पाद होते हैं, यह एक अभिलक्षण है।
पौधों में प्रकाशसंश्लेषण होता है, यह भी एक अभिलक्षण है।
समजात अभिलक्षण
विभिन्न जीवों में यह अभिलक्षण जिनकी आधारभूत संरचना लगभग एक समान होती है। यद्यपि विभिन्न जीवों में उनके कार्य भिन्न – भिन्न होते हैं।
उदाहरण :- पक्षियों, सरीसृप, जल – स्थलचर, स्तनधारियों के पदों की आधारभूत संरचना एक समान है, किन्तु यह विभिन्न कशेरूकी जीवों में भिन्न – भिन्न कार्य के लिए होते हैं।
समजात अंग यह प्रदर्शित करते हैं कि इन अंगों की मूल उत्पत्ति एक ही प्रकार के पूर्वजों से हुई है व जैव विकास का प्रमाण देते हैं।
समरूप अभिलक्षण
वह अभिलक्षण जिनकी संरचना व संघटकों में अंतर होता है, सभी की उत्पत्ति भी समान नहीं होती किन्तु कार्य समान होता है।
उदाहरण :- पक्षी के अग्रपाद एवं चमगादड़ के अग्रपाद।
समरूप अंग यह प्रदर्शित करते हैं कि जन्तुओं के अंग जो समान कार्य करते हैं, अलग – अलग पूर्वजों से विकसित हुए हैं।
जीवाश्म
“प्राचीनकालीन अनेक प्रकार के जीव, पौधे एवं जन्तुओं के मृत अवशेष जो चट्टानों परिरक्षित होते हैं, जीवाश्म कहलाते हैं।" जीवाश्मों का संग्रह एवं आयु के अनुसार उनका अनुक्रम जैव विकास प्रक्रम के क्रम को दर्शाता है कि किस प्रकार जीवों का विकास शनै:-शनै: हुआ।
उदहारण :-
आमोनाइट – जीवाश्म – अकशेरूकी
ट्राइलोबाइट – जीवाश्म – अकशेरूकी
नाइटिया – जीवाश्म – मछली
राजोसौरस – जीवाश्म – डाइनोसॉर कपाल
जीवाश्म कितने पुराने हैं
खुदाई करने पर पृथ्वी की सतह के निकट वाले जीवाश्म गहरे स्तर पर पाए गए जीवाश्मों की अपेक्षा अधिक नए होते हैं।
फॉसिल डेटिंग :- जिसमें जीवाश्म में पाए जाने वाले किसी एक तत्व के विभिन्न समस्थानिकों का अनुपात के आधार पर जीवाश्म का समय निर्धारण किया जाता है।
विकास एवं वर्गीकरण
विकास एवं वगीकरण दोनों आपस में जुड़े हैं।
जीवों का वर्गीकरण उनके विकास के संबंधों का प्रतिबिंब है।
दो स्पीशीज के मध्य जितने अधिक अभिलक्षण समान होंगे उनका संबंध भी उतना ही निकट का होगा।
जितनी अधिक समानताएँ उनमें होंगी उनका उद्भव भी निकट अतीत में समान पूर्वजों से हुआ होगा।
जीवों के मध्य समानताएँ हमें उन जीवों को एक समूह में रखने और उनके अध्ययन का अवसर प्रदान करती हैं।
विकास के चरण
विकास क्रमिक रूप से अनेक पीढ़ियों में हुआ।
योग्यता को लाभ :- जैसे
आँख का विकास – जटिल अंगों का विकास डी.एन.ए. में मात्र एक परिवर्तन द्वारा संभव नहीं है, ये क्रमिक रूप से अनेक पीढ़ियों में होता है।
प्लैनेरिया में अति सरल आँख होती है।
कीटों में जटिल आँख होती है।
मानव में द्विनेत्री आँख होती है।
गुणता के लाभ :- जैसे
पंखों का विकास :- पंख ( पर ) -ठंडे मौसम में ऊष्मारोधन के लिए विकसित हुए थे, कालांतर में उड़ने के लिए भी उपयोगी हो गए।
उदाहरण :- डाइनोसॉर के पंख थे, पर पंखों से उड़ने में समर्थ नहीं थे। पक्षियों ने परों को उड़ने के लिए अपनाया।
कृत्रिम चयन
बहुत अधिक भिन्न दिखने वाली संरचनाएं एक समान परिकल्प में विकसित हो सकती है। दो हजार वर्ष पूर्व मनुष्य जंगली गोभी को एक खाद्य पौधे के रूप में उगाता था तथा उसने चयन द्वारा इससे विभिन्न सब्जियाँ विकसित की। इसे कृत्रिम चयन कहते हैं।
आण्विक जातिवृत
यह इस विचार पर निर्भर करता है कि जनन के दौरान डी.एन.ए. में होने वाले परिवर्तन विकास की आधारभूत घटना है।
दूरस्थ संबंधी जीवों के डी.एन.ए. में विभिन्नताएँ अधिक संख्या में संचित होंगी।
मानव विकास के अध्ययन के मुख्य साधन
उत्खनन
डी.एन.ए. अनुक्रम का निर्धारण
समय निर्धारण
जीवाश्म अध्ययन
प्रश्न (पृष्ठ संख्या 157)
प्रश्न 1 यदि एक ‘लक्षण-A’ अलैंगिक प्रजनन वाली समष्टि के 10 प्रतिशत सदस्यों में पाया जाता है तथा ‘लक्षण-B’ उसी समष्टि में 60 प्रतिशत जीवों में पाया जाता है, तो कौन-सा लक्षण पहले उत्पन्न होगा?
उत्तर- लक्षण-B अलैंगिक प्रजनन वाली समष्टि में 60 प्रतिशत जीवों में पाया जाता है जो ‘लक्षण-A’ प्रजनन वाली समष्टि से 50% अधिक है इसलिए ‘लक्षण-B’ पहले उत्पन्न हुआ होगा।
प्रश्न 2 विभिन्नताओं उत्पन्न होने से किसी स्पीशीज का अस्तित्व किस प्रकार बढ जाता है?
उत्तर- पीढ़ी दर पीढ़ी जीवों के अनुसार स्वयं को बदलना पड़ता है। वह वातावरण के अनुसार अनुकूलित होने पर ही जीवित रह सकते है। अतः विभिन्नताओं के उत्पन्न होने से किसी स्पीशीज का अस्तित्व बदल जाता है। तथा यह लैंगिक जनन में उत्पन्न होती है
प्रश्न (पृष्ठ संख्या 161)
प्रश्न 1 मेंडल के प्रयोगो द्वारा कैसे पता चला कि लक्षण प्रभावी अथवा अप्रभावी हैं?
उत्तर- मेंडल ने पाया कि शुद्ध लंबे मटर के पौधे तथा शुद्ध बौने मटर के पौधे के बीच संकरण से F1 पीढ़ी में प्राप्त सभी पौधे लंबे थे।
अर्थात्, दो लक्षणों में से केवल एक पैतृक जनकीय लक्षण ही दिखाई देता है।
इसे प्रभावी लक्षण (Dominant traits) कहते हैं।
द्वितीय चरण में उन्होंने F1 (T t) पीढ़ी से प्राप्त पौधों में स्वपरागण करवाया तो पाया कि लंबे तथा बौने पौधे का अनुपात 3 : 1 था। अर्थात् F2 पीढ़ी में भी लंबे पौधे प्रभावी थे, परंतु बौने पौधे अप्रभावी लक्षण (recessive traits) वाले भी थे।
अर्थात् मेंडल के प्रयोग से स्पष्ट हो जाता है कि लक्षण प्रभावी या अप्रभावी हो सकते हैं।
प्रश्न 2 मेंडल के प्रयोगों से कैसे पता चला कि विभिन्न लक्षण स्वतंत्र रूप से वंशानुगत होते हैं?
उत्तर- जब मेंडल ने परस्पर विरोधी लक्षणों वाले पौधों के बीच संकरण कराया तो उनहोंने पाया कि उत्पन्न नयी पीढी (F1 पीढी) में विरोधी लक्षणों में से केवल एक लक्षण ही दिखाई देता है और दूसरा दिखाई नहीं देता है परन्तु दूसरी पीढ़ी (F2 पीढ़ी) में दोनों लक्षण मिश्रित रूप के साथ साथ शुद्ध रूप में भी दिखाई देते हैं। इससे मेंडल ने यह निष्कर्ष निकला कि लक्षण स्वतंत्र रूप से वंशानुगत होते हैं, क्योंकि यदि ऐसा नहीं होता तो दूसरी पीढ़ी में शुद्ध रूप में दोनों लक्षण कभी दिखाई नहीं देते।
प्रश्न 3 एक ‘A’- रुधिर वर्ग वाला पुरुष एक स्त्री जिस का रुधिर वर्ग ‘O’ से विवाह करता है। उनकी का रुधिर वर्ग ‘O’ है।क्या यह सूचना पर्याप्त है यदि आपसे कहा जाए कि कौन सा विकल्प लक्षण-रुध्रि वर्ग-‘A’ अथवा ‘O’ प्रभावी लक्षण हैं? अपने उत्तर का स्पष्टीकरण दीजिए।
उत्तर- यह सुचना पर्याप्त नहीं हैं। कुछ लक्षण जीनोम में निहित होते हैं। परन्तु जानकारी के अनुसार हम कह सकते हैं। कि रूधिर वर्ग (O) प्रभावी हैं। कुछ लक्षण जीन में छुपे होते है केवल प्रभावी लक्षण दिखाई देते हैं।
प्रश्न 4 मानव में बच्चे का लिंग निर्धारण कैसे होता है?
उत्तर- मानवों में लिंग का निर्धारण विशेष लिंग गुणसूत्रों के आधार पर होता है। नर में XY गुणसूत्र होते हैं और मादा में XX गुणसूत्र विद्यमान होते हैं। इससे स्पष्ट है कि मादा के पास Y गुणसूत्र होता ही नहीं है। जब नर-मादा के संयोग से संतान उत्पन्न होती है तो मादा किसी भी अवस्था में नर शिशु को उत्पन्न करने में समर्थ हो ही नहीं सकती क्योंकि नर शिशु में XY गुणसूत्र होने चाहिएँ।
निषेचन क्रिया में यदि पुरुष का X लिंग गुणसूत्र स्त्री के X लिंग गुणसूत्र से मिलता है तो इससे XX जोड़ा बनेगा अत: संतान लड़की के रूप में होगी लेकिन जब पुरुष का Y लिंग गुणसूत्र स्त्री के X लिंग गुणसूत्र से मिलकर निषेचन करेगा तो XY बनेगा। इससे लड़के का जन्म होगा। किसी भी परिवार में लड़के या लड़की का जन्म पुरुष के गुणसूत्रों पर निर्भर करता है क्योंकि Y गुणसूत्र को तो केवल स्त्री के पास होता है।
प्रश्न (पृष्ठ संख्या 165)
प्रश्न 1 वे कौन से विभिन्न तरीके हैं, जिनके द्वारा एक विशेष लक्षण वाले व्यष्टि जीवों की संख्या समष्टि में बढ़ सकती है?
उत्तर- निम्नलिखित तरीकों द्वारा एक विशेष लक्षण वाले व्यष्टि जीवों की संख्या समष्टि में बढ़ सकती है।
प्राकृतिक चयन (Natural selection)- प्रकृति द्वारा लाभप्रद विविधताओं वाली समष्टि को सतत् बनाए रखना प्राकृतिक चयन कहलाता है। वे लक्षण जो किसी व्यष्टि जीव के उत्तरजीविता तथा प्रजनन में लाभदायक होती हैं, अगली पीढ़ी (संतति) में हस्तान्तरित (passed on) हो जाती हैं। परंतु जिनसे कोई लाभ नहीं होता वे लक्षण संतति में नहीं जाते।
उदाहरण- जितने अधिक कौए होंगे उतने अधिक लाल शृंग उनके शिकार बनेंगे तथा समष्टि में हरे भृगों की संख्या बढ़ती जाएगी, क्योंकि हरी पत्तियों की झाड़ियों में हरे भुंग को कौए नहीं देख पाते हैं।
आनुवंशिक विचलन (Genetic drift)- कभी-कभी आकस्मिक दुर्घटना के कारण किसी समष्टि के ज्यादातर जीव मर जाते हैं ऐसी स्थिति में जीन सीमित रह जाते हैं इसके कारण उस समष्टि का रूप बदल जाता है तथा उनकी संतति में केवल जीवित सदस्यों के लक्षण ही दिखाई देते हैं। इसे आनुवंशिक विचलन (Genetic drift) कहा जाता है। जैसे- महामारी तथा परभक्षण (Predation) आदि की स्थिति में।
विभिन्नताएँ एवं अनुकूलन- विभिन्नताएँ एवं अनुकूलता पर्यावरण में जीवों की उत्तरजीविता कायम रखने में सहायक होते हैं।
प्रश्न 2 एक एकल जीव द्वारा उपार्जित लक्षण सामान्यतः अगली पीढ़ी में वंशानुगत नहीं होते। क्यों?
उत्तर- एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक प्रभावी लक्षण डी.एन.ए द्र्वारा स्थानांतरित होते है उपार्जित लक्षण डी.एन.ए में नहीं आते अत: ये अगली पीढ़ी में वंशानुगत नहीं होते।
प्रश्न 3 बाघों की संख्या में कमी अनुवांशिकता के दृष्टिकोण से चिंता का विषय क्यों है।
उत्तर- बाघों की संख्या में कमी का अर्थ है उनके गुणसूत्रों में कम विविधताएँ हैं अर्थात इन बाघों में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में होने वाले परिवर्तन, जो उन्हें पर्यावरण की विषम परिस्थितिओं में भी जिन्दा रखने में सहायक होता है, बहुत कम हैं। इसलिए, बाघों की संख्या में कमी अनुवांशिकता के दृष्टिकोण से चिंता का विषय है।
प्रश्न (पृष्ठ संख्या 166)
प्रश्न 1 वे कौन-से कारक हैं, जो नयी स्पीशीज़ के उद्भवे में सहायक हैं?
उत्तर- नयी स्पीशीज़ के उद्भव में सहायक कारक निम्न हैं-
जीन प्रवाह (genetic flow) का स्तर कम होना।
प्राकृतिक चयन (वरण) (Natural selection)
विभिन्नताएँ।
भौगोलिक पृथक्करण के कारण जनन पृथक्करण (Reproductive isolation)
आनुवंशिक विचलन (genetic drift)
प्रश्न 2 क्या भौगोलिक पृथक्करण स्वपरागित स्पीशीज के पौधों के जाति-उद्भव का प्रमुख कारण होगा? क्यों या क्यों नहीं?
उत्तर- हाँ, भौगोलिक पृथक्क़रण स्वपरागित स्पीशीज़ के पौधों की स्पीशीज़ के पौधों की स्पीशीज़ के उद्भव का प्रमुख कारण हो सकता है, क्योंकि:
पृथक्क़रण के कारण दो जनसंख्याओं के बीच जीनों के जाती कम हो जाती है और लंबे समय के पश्चात दोनों जनसंख्याएँ आपस में संकरण नहीं कर सकेंगी।
अनियमित अनियोजित संलयन के कारण भी नए लक्षण उतपन्न होते हैं।
अर्धसूत्री विभाजन के समय युग्मक बनने में क्रॉसिंग ऑवर के कारण विभिन्नताएँ उतपन्न होती हैं।
युग्मक जनन के समय नए पुनर्योजन उतपन्न होते हैं।
प्रश्न 3 क्या भौगोलिक पृथक्करण अलैंगिक जनन वाले जीवों के जाति उद्र्भव का प्रमुख कारक हो सकता है? क्यों अथवा क्यों नहीं?
उत्तर- अलैंगिक जनन में उत्पन्न जिव लगभग एक दुसरे के सामान होते है तथा उनमें बहुत थोड़ा अन्तर होता है। इस क्रिया में विभिन्नताएँ DNA प्रतिकृति के दौरान ही होती है तथा ये विभिन्नताएँ बहुत कम होती है। भौगोलिक पृथक्करण इनमें जाति उद्र्भव का प्रमुख कारक हो सकता है क्योंकि इसके कारण ही नए वातावरण में जीवित रहने वी जीव अपने अन्दर नए उत्पन्न करते है।
प्रश्न (पृष्ठ संख्या 171)
प्रश्न 1 उन अभिलक्षणों का एक उदाहरण दीजिए जिनका हम दो स्पीशीज़ के विकासीय संबंध निर्धारण के लिए करते हैं?
उत्तर- समजात अंगों की उपस्थिति से हमें दो स्पीशीज़ के सदस्यों में विकासीय संबंध स्थापित करने में सहायता मिलती है। उदाहरण- पक्षियों, सरीसृप एवं जल-स्थलचर (Amphibians) की तरह स्तरधारियों के चार पैर (पाद) होते हैं। सभी में पैरों की आधारभूत संरचना एक समान होती है, परंतु कार्यों में भिन्न होते हैं। ऐसे अंग समजात अंग कहलाते हैं। ये अभिलक्षण ईंगित करते हैं कि वे समान जनक से वंशानुगत हुए हैं।
प्रश्न 2 क्या एक तितली और चमगादड़ के पंखों को समजात अंग कहा जा सकता हैं? क्यों अथवा क्यों नहीं?
उत्तर- नहीं, तितली और चमगादड़ के पंखों को समजात अंग नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि चमगादड़ के पंख मुख्यतः उसकी दिर्घित अंगुली के मध्य भाग की त्वचा के फैलने से बने हैं लेकिन तितली के पंख उसकी पूरी अग्रबाहु की त्वचा के फैलाव का नतीजा है, जो परों से ढकी रहती है। इस प्रकार दोनों के पंखों की संरचना एवम् संघटकों में बहुत अंतर है। वे एक जैसे दिखाई देते हैं क्योंकि वे एक जैसे ही काम (उड़ान ले लिए) हेतु प्रयोग होते हैं परन्तु उनकी उत्पत्ति पूरी तरह से समान नहीं है। इसलिए यह उन्हें समरूप अभिलक्षण बनाता है न कि समजात अभिलक्षण।
प्रश्न 3 जीवाश्म क्या हैं? वह जैव-विकास प्रक्रम के विषय में क्या दर्शाता है?
उत्तर- मृत जीवों के अवशेष, चट्टानों पर के चिन्ह या उम्नके साँचे व शरीर की छाप जो हजारों साल पूर्व जीवित थे। इस तरह के सुरक्षित अवशेष जीवाश्म कहलाते है। ये जीवाश्म हमें जैव- विकास प्रकम के बारे में कई बातें बताते है जैसे कौन से जीवाश्म नवीन है तथा कौन से पुराने, कौन सी स्पीशीज विलुप्त हो गई है। ये जीवाश्म विकास विभिन्न रूपों तथा वर्गों कभी वर्णन करते गुणों को भी ज्ञात कर सकते है। वर्तमान समय में पाए जाने वाले सभी जीव पहले अस्तित्व में नहीं आए थे।
इनसे निम्नलिखित जानकारियाँ प्राप्त होती हैं-
आज पाए जाने वाले जीवजंतुओं से पुरातन काल में पाए जाने वाले जीव-जंतु बहुत भिन्न थे।
विभिन्न पौधों और जंतुओं के वर्गों के विकास क्रम का पता चलता है।
टैरिडोफाइट और जिम्नोस्पर्म से एन्जियोस्पर्म विकसित हुए।
सरल जीवों से ही जटिल जीवों का विकास हुआ।
पक्षियों का विकास सरीसृपों से हुआ।
मानव विकास कि प्रक्रिया का पता चलता है।
प्रश्न (पृष्ठ संख्या 173)
प्रश्न 1 क्या कारण है कि आकृति, आकार, रंग-रूप में इतने भिन्न दिखाई पड़ने वाले मानव एक ही स्पीशीज के सदस्य हैं?
उत्तर- सभी मानव एक ही स्पीशीज के सदस्य है। जैसे- उत्खनन, समय निर्धारण व जीवाश्म अध्य्य के साथ डी.एन.ए. अन्रुक्रम के निर्धारण से मानव के विभिन्न चरणों का ज्ञान होता है। मानव पूर्वजों का उद्र्भव अफ्रीका से हुआ। अफ्रीका से पूर्वज विभिन्न क्षेत्रों में फ़ैल गए तथा कुछ वहीँ पर रह गए। अत: आभासी प्रजातियों का कोई जैविक आधार नहीं है।
प्रश्न 2 विकास के आधार पर क्या आप बता सकते हैं कि जीवाणु, मकड़ी मछली तथा चिम्पैंजी में किसका शारीरिक अभिकल्प उत्तम है? अपने उत्तर की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- जैव विकास में यह प्रवृत्ति दिखाई देती है कि समय के साथ-साथ उसके शारीरिक अभिकल्प की जटिलता में वृद्धि होती है। इस आधार पर चिम्पैंजी का शारीरिक अभिकल्प उत्तम प्रतीत होता है, परंतु प्रतिकूल एवं अत्यंत कठिन परिस्थितियों में उत्तरजीविता की दृष्टि से सरलतम अभिकल्प वाला एक समूह-जीवाणु-विषम पर्यावरण जैसे ऊष्ण झरने, गहरे समुद्र के गर्म स्रोत तथा अंटार्कटिका की बर्फ में भी पाए जाते हैं। अतः यह आवश्यक नहीं कि जटिल शारीरिक अभिकल्प वाले जीव जैवविकासीय दृष्टि से सरल शारीरिक अभिकल्प वाले जीवों से उत्तम हों। क्योंकि ये कठिन परिस्थितियों में भी जीवित रह पाते हैं।
अभ्यास प्रश्न (पृष्ठ संख्या 174-175)
प्रश्न 1 मेंडल के एक प्रयोग में लंबे मटर के पौधे जिनके बैंगनी पुष्प थे, का संकरण बौने पौधों जिनके सफ़ेद पुष्प थे, से कराया गया। इनकी संतति के सभी पौधों में पुष्प बैंगनी रंग के थे। परंतु उनमें से लगभग आधे-बौने थे। इससे कहा जा सकता है कि लंबे जनक पौधों की आनुवंशिक रचना निम्न थी।
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उत्तर-
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प्रश्न 2 समजात अंगों का उदाहरण है-
हमारा हाथ तथा कुत्ते के अग्रपाद।
हमारे दाँत तथा हाथी के दाँत।
आलू एवं घास के उपरिभूस्तारी।
उपरोक्त सभी।
उत्तर-
उपरोक्त सभी।
प्रश्न 3 विकासीय दृष्टिकोण से हमारी किस से अधिक समानता है?
चीन के विद्यार्थी
चिम्पैंजी
मकड़ी
जीवाणु
उत्तर-
चीन के विद्यार्थी।
प्रश्न 4 एक अध्ययन से पता चला कि हल्के रंग की आँखों वाले बच्चों के जनक (माता-पिता) की आँखें भी हलके रंग की होती हैं। इसके आधार पर क्या हम कह सकते हैं कि आँखों के हल्के रंग का लक्षण प्रभावी अथवा अप्रभावी? अपने उत्तर कि व्याख्या कीजिए।
उत्तर- माना, हल्के रंग की आँखों वाले बच्चे के लक्षण AA, aa या Aa हैं। यदि बच्चे के लक्षण AA हैं तो उसके जनक (माता-पिता) के लक्षण भी AA हो सकते हैं।
यदि बच्चे के लक्षण aa हैं तो उसके जनक (माता-पिता) के लक्षण भी aa हो सकते हैं।
अतः हम यह स्पष्ट रूप से नहीं कह सकते हैं कि आँखों के हल्के रंग का लक्षण प्रभावी अथवा अप्रभावी।
प्रश्न 5 जैव-विकास तथा वर्गीकरण का अध्ययन क्षेत्र किस प्रकार परस्पर संबंध्ति है।
उत्तर- मानव के पूर्वज एक ही थे। धीरे-धरे जीवों का विकास हुआ तथा इसी विकास के कारण जीव सरलता से जटिलता की ओर अग्रसर हुए तथा विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत हुए। इस प्रकार जैव विकास ही वर्गीकरण की सीढ़ी है।
प्रश्न 6 समजात अंग एवं समरूप अंगों को उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर- वे अंग जो आधारभूत संरचना में एक समान है परन्तु भिन्न-भिन्न कार्य करते है, समजात अंग कहलाते है उदाहरण-पक्षी, जल-स्थलचर अन्य के चार पैर होते है परन्तु सबके कार्य भिन्न है। इसके ठीक विपरीत वे अंग जिनकी आधारभूत संरचना एक समान नंही होती परन्तु भिन्न-भिन्न जीवों में एक ही सामान कार्य करते है, समरूप अंग कहलाते है।
उदाहरण- चमगादड़ व पक्षी के पंख। चमगादड़ के पंख दिर्घित अंगुली के बीच की त्वचा के फैलने से परन्तु पक्षी पूरी अग्रबाहू की त्वचा के फैलने से बनती है।
प्रश्न 7 कुत्ते की खाल का प्रभावी रंग ज्ञात करने के उद्देश्य से एक प्रोजेक्ट बनाइए।
उत्तर-
प्रभावी रंग- सफ़ेद, अप्रभावी रंग- काला
प्रश्न 8 विकासीय संबंध स्थापित करने में जीवाश्म का क्या महत्त्व है?
उत्तर- जीवाश्म द्वारा हम जान पाते हैं कि अंगों की रचना केवल वर्तमान स्पीशीज पर ही आधारित नहीं है बल्कि उन स्पीशीज पर भी आधारित है जो अब जीवित नहीं हैं परन्तु कभी अस्तित्व में थे। खुदाई में मिले जीवाश्म की गहराई तथा फ़ॉसिल डेटिंग के आधार पर हम यह भी जान सकते हैं कि इन जीवों का अस्तित्व कब था। इस प्रकार पुरातन जीवों के समय-निर्धारण तथा अंगों की संरचना के आधार पर आज के जीवों के विकास क्रम को समझा जा सकता है।
प्रश्न 9 किन प्रमाणों के आधार पर हम कह सकते हैं कि जीवन की उत्पत्ति पदार्थों से हुई है?
उत्तर- विभिन्न जातियों के विकासीय संबंधों का अध्ययन यही दर्शाता है कि जीवन की उत्पत्ति एक ही जाति से हुई है। एक ब्रिटिश वैज्ञानिक जे.बी.एस. हाल्डेन ने सब से पहली बार सुझाव दिया था कि जीवों की उत्पत्ति उन अजैविक पदार्थों से हुई होगी जो पृथ्वी की उत्पत्ति के समय बने थे। सन् 1953 में स्टेनल एल० मिलर और हेराल्ड सी० डरे ने ऐसे कृत्रिम वातावरण का निर्माण किया था जो प्राचीन वातावरण के समान था। इस वातावरण में ऑक्सीजन नहीं थी। इसमें अमोनिया, मीथेन और हाइड्रोजन सल्फाइड थे। उस में एक पात्र में जल भी था जिस का तापमान 100°C से कम रखा गया था। जब गैसों के मिश्रण से चिंगारियाँ उत्पन्न की गईं जो आकाशीय बिजलियों के समान थीं। मीथेन से 15% कार्बन सरल कार्बनिक यौगिक यौगिकों में बदल गए। इनमें एमीनो अम्ल भी संश्लेषित हुए जो प्रोटीन के अणुओं का निर्माण करते हैं। इसी आधार पर कह सकते हैं कि जीवन की उत्पत्ति अजैविक पदार्थों से हुई है।
प्रश्न 10 अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न विभिन्नताएँ अधिक स्थायी होती हैं, व्याख्या कीजिए। यह लैंगिक प्रजनन करने वाले जीवों वेफ विकास को किस प्रकार प्रभावित करता है?
उत्तर- अलैंगिक जनन विभिन्नताएँ बहुत कम होती है क्योंकि DNA प्रतिकृति लगभग समान होती है। अतः संतान में भी अत्यधिक समानता पाई जाती को जन्म देते है। इस प्रकिया में DNA की विभिन्नताएँ स्थायी होती है तथ स्पीशीज के असितत्व के लिए भी लाभप्रद है।
प्रश्न 11 संतति में नर एवं मादा जनकों द्वारा आनुवंशिक योगदान में बराबर की भागीदारी किस प्रकार सुनिश्चित की जाती है?
उत्तर- लैंगिक जनन क्रिया में क्रोमोसोम (गुणसूत्र) अर्धसूत्री विभाजन द्वारा दो भागों में बाँटे जाते हैं और जब निषेचन क्रिया होती है, तो युग्मनज में आधे गुणसूत्र पिता से और आधे गुणसूत्र माता से आकर आपस में संयोजित हो जाते हैं। अर्थात् नर से (23 गुणसूत्र) तथा मादा से (23 गुणसूत्र) मिलकर संतति में 46 गुणसूत्र होते हैं तथा बराबरी की भागीदारी होती है। यही कारण है कि प्रत्येक पीढी के लक्षणों में विभिन्न्ताएँ आती रहती हैं।
प्रश्न 12 केवल वे विभिन्नताएँ जो किसी एकल जीव (व्यष्टि) के लिए उपयोगी होती है, समष्टि में अपना अस्तित्व बनाए रखती हैं। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? क्यों एवम् क्यों नहीं?
उत्तर- हाँ, क्योंकि जो विभिन्नताएँ जीव के लिए पर्यावरण में जीवित रहने के लिए उपयोगी होती हैं, उनकी वंशागति होती है। इन विभिन्नताओं से ही जीव वातावरण के अनुसार अपने आप को ढाल सकता है और न केवल अधिक समय तक जीवित रह सकता है बल्कि समष्टि में अपना अस्तित्व भी बनाए रखता है।