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16 प्राकृतिक संसाधन


प्राकृतिक संसाधन : वे संसाधन जो हमें पृकृति ने दिए हैं और जो जीवों के द्वारा इस्तेमाल किए जाते हैं| 

Over 99.9% Scientific Papers Agree Humans Caused Climate Change: Study

प्राकृतिक संसाधनों का उदाहरण :- 

मिटटी, जल, कोयला, पेट्रोलियम, वन्य जीव और वन इत्यादि| 

प्रदूषण :- प्राकृतिक संसाधनों का दूषित होना प्रदुषण कहलाता है|

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प्रदुषण के प्रकार : 

  1. जल प्रदुषण 
  2. मृदा प्रदूषण 
  3. वायु प्रदुषण 

पर्यावरण समस्याएँ :- पर्यावरण समस्याएँ वैश्विक समस्याएँ हैं तथा इनके समाधान अथवा परिवर्तन में हम अपने आपको असहाय पाते हैं इनके लिए अनेक अंतर्राष्ट्रीय कानून एवं विनियमन हैं तथा हमारे देश में भी पर्यावरण संरक्षण हेतु अनेक कानून हैं। अनेक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठन भी पर्यावरण संरक्षण हेतु कार्य कर रहे हैं।

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प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन की आवश्यकता :-

  1. प्राकृतिक संसाधनों के संपोषित विकास लिए|
  2. विविधता को बचाने के लिए| 
  3. पारिस्थितिक तंत्र को बचाने के लिए| 
  4. प्राकृतिक संसाधनों को दूषित होने से बचाने के लिए|
  5. संसाधनों को समाज के सभी वर्गों में उचित वितरण और शोषण से बचाना|

संसाधनों के दोहन का अर्थ :- जब हम संसाधनों का अंधाधुन उपयोग करते है तो बडी तीव्रता से प्रकृति से इनका हा्रास होने लगता है। इससे हम पर्यावरण को क्षति पहुँचाते है। जब हम खुदाई से प्राप्त धातु कर निष्कर्षण करते है तो साथ ही साथ अपशिष्ट भी प्राप्त होता है जिनका निपटारा नहीं करने पर पर्यावरण को प्रदूषित करता है। जिसके  कारण बहुत सी प्राकृतिक आपदाएँ होती रहती है| ये संसाधन हमारे ही नहीं अपितु अगली कई पिढियों के भी है। 

Exploitation of natural resources - Free ZIMSEC & Cambridge Revision Notes

गंगा कार्य परियोजना :- यह कार्ययोजना करोड़ों रूपयों का एक प्रोजेक्ट है। इसे सन् 1985 में गंगा स्तर सुधारने के लिए बनाया गया।

Ganga Water Pollution Severe, Only One Of 39 Locations Clean: CPCB

गंगा कार्य परियोजना का उदेश्य :-

  1. गंगा के जल की गुणवता बहुत कम हो गई थी| 
  2. गंगा के जल स्तर सुधारने के लिए| 

जल की गुणवता जाँचने के तरीके :- 

  1. जल का pH जो आसानी से सार्व सूचक की मदद से मापा जा सकता है।
  2. जल में कोलिफार्म जीवाणु की उपस्थिति जो मानव की आंत्र में पाया जाता है| इसकी उपस्थिति जल का संदूषित होना दिखाता है।

तीन R का अर्थ और महत्त्व :- तीन R का अर्थ है (कम करना), (पुन: चक्रण), (पुन: प्रयोग) है| 

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(कम प्रयोग) :- संसाधनों के कम से कम प्रयोग कर व्यर्थ उपयोग रोक सकते है कम उपयोग से प्रदुषण भी कम फैलता है|

(पुन: चक्रण) :- प्लास्टिक, कागज, काँच, धातु की वस्तुएँ आदि का (पुनः चक्रण) कर उपयोगी वस्तुएँ बनाना चाहिए। जल्द समाप्त होने वाली संसाधनों को बचाया जा सके और ये पर्यावरण को प्रदूषित न कर सके। यू ही फेंक देने से ये पर्यावरण में प्रदूषण फैलाती हैं।

संपोषित विकास :- संपोषित विकास की संकल्पना से तात्पर्य है ऐसा विकास जो पर्यावरण को बिना नुकसान पहुँचाए मनुष्य की वर्त्तमान अवश्यकातों की पूर्ति और विकास के साथ साथ भावी संतति के लिए संसाधनों का संरक्षण भी करती है।

संपोषित विकास का उदेश्य :-

  1. मनुष्य की वर्तमान आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति एवं विकास को प्रोत्साहित करना|
  2. पर्यावरण को नुकसान से बचाना और भावी पीढ़ी के लिए संसाधनों का संरक्षण करना|
  3. पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास को बढ़ाना|

प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन करते समय किन-किन बातों पर ध्यान देना चाहिए : 

  1. दीर्घकालिक दृष्टिकोण : ताकि ये संसाधन अगली पीढ़ियों तक उपलब्ध हो सके| 
  2. इन्हें दोहन या शोषण से बचाया जा सके|
  3. यह भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि इनका वितरण सभी वर्गों में सामान रूप से हो न कि मात्र मुटठी भर अमीर और शक्तिशाली लोगों को इनका लाभ मिले|
  4. संपोषित प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन में अपशिष्टों के सुरक्षित निपटान की भी व्यवस्था होनी चाहिए।

वन्य एवं वन्य जीवन :-

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वन जैव विविधता के तप्त स्थल है :- वास्तव में केवल वन ही एक ऐसा स्थल है जिसे जैव विविधता का तप्त स्थल कहा जा सकता है क्योंकि वनों में जैव विविधता के अनेकों उदाहरण संरक्षित है| ये उस स्थल के सभी प्राणीजात और वनस्पति जात को न केवल प्राकृतिक संरक्षण प्रदान करता है अपितु वन उनके वृद्धि और विकास के लिए पोषण प्रदान करता है| 

जैव विविधता :- जैव विविधता किसी एक क्षेत्र में पाई जाने वाली विविध स्पीशीज की संख्या है जैसे पुष्पी पादप, पक्षी, कीट, सरीसृप, जीवाणु और कवक आदि।

जैव विविधता के नष्ट होने के परिणाम :- प्रयोगों और वस्तुस्थिति के अध्ययन से हमें पता चलता है कि विविधता के नष्ट होने से पारिस्थितिक स्थायित्व भी नष्ट हो सकता है। क्योंकि किसी पारिस्थितिक तंत्र में उपस्थिति जैव और अजैव घटक उस पारिस्थितिक तंत्र को संतुलन प्रदान करते हैं| जैसे ही ये जैव विविधतता नष्ट होती है पारिस्थितिक तंत्र में असंतुलन उत्पन होता है और यह नष्ट हो जाता है| 

तप्त स्थल :- ऐसा क्षेत्र जहा अनेक प्रकार की संपदा पाई जाती है।

Hot Spots | National Geographic Society

दावेदार :- ऐसे लोग जिनका जीवन, कार्य किसी चीज पर निर्भर हो, वे उसके दावेदार होते हैं।

1,806 Criminal Psychology Stock Photos, Pictures & Royalty-Free Images -  iStock

वनों के दावेदार :- 

  1. स्थानीय लोग :- वन के अंदर एवं इसके निकट रहने वाले लोग अपनी अनेक आवश्यकताओं के लिए वन पर निर्भर रहते हैं।
  2. सरकार और वन विभाग :- सरकार और वन विभाग जिनके पास वनों का स्वामित्व है तथा वे वनों से प्राप्त संसाधनों का नियंत्रण करते हैं।
  3. वन उत्पादों पर निर्भर व्यवसायी :- ऐसे छोटे व्यवसायी जो तेंदु पत्ती का उपयोग बीड़ी बनाने से लेकर कागज मिल तक विभिन्न वन उत्पादों का उपयोग करते हैं, परंतु वे वनों के किसी भी एक क्षेत्र पर निर्भर नहीं करते।
  4. वन्य जीव और पर्यावरण प्रेमी :- वन जीवन एवं प्रकृति प्रेमी जो प्रकृति का संरक्षण इसकी आद्य अवस्था में करना चाहते हैं।

मानव गतिविधियाँ जो वनों को प्रभावित करती हैं :-

  1. स्थानीय लोग ईधन के लिए जलावन की काफी मात्रा में उपयोग करते है। 
  2. झोपड़ी बनाने के लिए, भोजन एकत्र करने के लिए एवं भण्डारण के लिए लकड़ी का प्रयोग करते है।
  3. खेती के औजार एवं अन्य उपयोगी साधन मानव वन से प्राप्त करते हैं। 
  4. औषधि और पशुओं का चारा वन से प्राप्त करते हैं।

अम्लीय वर्षा का वनों एवं कृषि पर प्रभाव :- जब वर्षा होती हैं तो सल्फर तथा नाइट्रोजन के ऑक्साइड बिजली की चमक के कारण पानी में घुल जाते हैं जो तेजाब के रूप में वर्षा के साथ गिरते हैं इसे अम्लीय वर्षा कहते है। ये कृषि उत्पादकता तथा वन को प्रभावित करते हैं तथा जब ये अम्ल हरे पत्तों पर पड़ते हैं तो पत्ते के साथ साथ पौधा भी सूख जाता हैं। 

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संसाधनों के दोहन :- जब हम संसाधनों का अंधाधुन उपयोग करते है तो बडी तीव्रता से प्रकृति से इनका ह्रास होने लगता है। इसे ही संसाधनों का दोहन कहते है|

How a small Scottish isle proves that good ideas can take root | The  National

संसाधनों के दोहन से होने वाली हानियाँ :-

  1. इससे हम पर्यावरण को क्षति पहुँचाते है।
  2. जब हम खुदाई से प्राप्त धातु कर निष्कर्षण करते है तो साथ ही साथ अपशिष्ट भी प्राप्त होता है जिनका निपटारा नहीं करने पर पर्यावरण को प्रदूषित करता है।
  3. ये संसाधन हमारे ही नहीं अपितु अगली कई पिढियों के भी है, हम आने वाली कई पीढ़ियों को उनके हक़ से वंचित करते है।

चिपकों आन्दोलन :- यह आंदोलन गढ़वाल के 'रेनी' नामक गाँव में 1970 के प्रारम्भिक दशक में हुआ था। लकड़ी के ढेकेदारों ने गाँव के समीप के वृक्षों को काट रहे थे। उस गाँव में उस वक्त पुरूष नहीं थे। इस बात से निडर महिलाँए फौरन वहाँ पहुँच गई और पेड़ो कों अपनी बाहों पकड़कर चिपक गई। अंततः ठेकेदार को विचलित होकर काम रोकना पड़ा। यह आंदोलन तीव्रता से बहुत से समुदायों में फ़ैल गया और सरकार को वन संसाधनों के उपयोग के लिए प्राथमिकता निश्चित करने पर पुनः विचार करने पर मजबूर कर दिया। यह आंदोलन चिपको आंदोलन के नाम से प्रसिद्ध हैं। 

Chipko movement started in Balod district of Chhattisgarh | 3000 पेड़ों को  कटने से बचाने छत्तीसगढ़ के इस जिले में शुरू हुआ चिपको आंदोलन, लोगों ने कहा  सांसों की नहीं ...

अमृता देवी विश्नोई राष्ट्रीय पुरस्कार :- अमृता देवी विश्नोई राष्ट्रीय पुरस्कार भारत सरकार द्वारा जैव सरंक्षण के लिए दिया जाता हैं। यह पुरस्कार अमृता देवी विश्नोई की याद में दिया जाता हैं  जिन्होंने 1731 में राजस्थान के जोधपुर के पास खेजराली गाँव में खेजरी वृक्षों को बचाने हेतु 363 लोगों के साथ अपने आप को बलिदान कर दिया।

वनों पर निर्भर उद्योग :- बीडी उद्योग, टिम्बर (इमारती लकड़ी), कागज, लाख तथा खेल के समान आदि|

वनों के संरक्षण में स्थानीय लोगों की भागीदारी :- पश्चिम बंगाल के मिदनापुर के अराबाड़ी वन क्षेत्र में एक योजना प्रारंभ की। यहाँ वन विभाग के एक दूरदर्शी अधिकारी ए.के बनर्जी ने ग्रामीणों को अपनी योजना में शामिल किया तथा उनके सहयोग से बुरी तरह से क्षतिग्रस्त साल के वन की 1272 हेक्टेयर क्षेत्र का संरक्षण किया। इसके बदले में निवासियों को क्षेत्र की देखभाल की जिम्मेदारी के लिए रोजगार मिला साथ ही उन्हें वहाँ से उपज की 25 प्रतिशत के उपयोग का अधिकार भी मिला और बहुत कम मूल्य पर ईंधन के लिए लकड़ी और पशुओं को चराने की अनुमति भी दी गई। स्थानीय समुदाय की सहमति एवं सक्रिय भागीदारी से 1983 तक अराबाड़ी का सालवन समृद्ध हो गया तथा पहले बेकार कहे जाने वाले वन का मूल्य 12.5 करोड़ आँका गया।

जल संग्रहण :- 

जल संरक्षण की कृषि में उपयोगिता

जल संग्रहण :- इसका मुख्य उद्देश्य है भूमि एवं जल के प्राथमिक स्रोतों का विकास करना।

वर्षा जल संचयन :- वर्षा जल संचयन से वर्षा जल को भूमि के अंदर भौम जल के रूप में संरक्षित किया जाता है।

जल संग्रहण की देशी विधियाँ :- 

  1. कुआँ 
  2. ताल 
  3. कूल्ह 
  4. तालाब 

बांध :- बांध में जल संग्रहण काफी मात्रा में किया जाता है जिसका उपयोग सिंचाई में ही नहीं बल्कि विद्युत उत्पादन में भी किया जाता है। बड़े-बड़े नदियों पर बांध बनाकर बहुउद्देश्यीय नदी परियोजनाएँ चलायी जाती है| जिसके कई लाभ हैं|

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नदियों पर बाँध :- 

  1. टिहरी बांध - नदी भगीरथी (गंगा)
  2. सरदार सरोवर बांध - नर्मदा नदी
  3. भाखड़ा नांगल बांध - सतलुज नदी।

बांधों को लेकर विरोध और आन्दोलन :- गंगा नदी पर बना टिहरी बाँध को लेकर कई वर्षों तक आन्दोलन हुआ| नर्मदा बचाओं आन्दोलन हुआ जो नर्मदा नदी पर बने सरदार सरोवर बाँध को लेकर विरोध हुआ| 

बांधों के लाभ :-

  1. सिंचाई के लिए पर्याप्त जल सुनिश्चित करना।
  2. विद्युत उत्पादन
  3. क्षेत्रों में जल का लगातार वितरण करना।
  4. पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकास 
  5. मत्स्य पालन 

बांधों की हानियाँ :-

  1. कृषि योग्य भूमि का ह्रास और स्थानीय लोगों का विस्थापन 
  1. पारिस्थितिक तंत्र का असंतुलन 
  2. जैव विविधता को हानि होती है|
  3. बाढ़ का खतरा 
  4. जीवों के प्राकृतिक आवास नष्ट हो जाता है|

भौम जल के लाभ :-

1. यह वाष्प बनकर नहीं उड़ता हैं। 

2. भौम जल छोटे-छोटे जलाशयों के जल स्तर मे सुधार लाता हैं। 

3. पौधों को नमी पहुँचाता हैं। 

4. यह मच्छरों एवं जंतुओं के अपशिष्ट से सुरक्षित रहता हैं।

5. यह जल संदूषण से बचा रहता है|  

चैक डैम :- चैक डैम जल संग्रहण के लिए अर्धचंद्रकार मिट्टी के गढ्ढे अथवा निचले स्थान पर कंकरीट अथवा छोटे कंकड़ पत्थरों द्वारा बनाए जाते हैं। ये वर्षा ऋतु में पूरी तरह भर जाने वाली नालियाँ या प्राकृतिक जलमार्ग पर बनाए जाते हैं। 

जल संभर प्रबंधन :- जल संभर प्रबंधन में मिट्टी एवं जल संरंक्षण पर जोर दिया जाता हैं जिससे कि जैव मात्रा उत्पादन में वृद्धि हो सके। इसका मुख्य उद्वेश्य भूमि एवं प्राथमिक स्त्रोतों का विकास, द्वितीयक संसाधन पौधा एवं जंतुओं का उत्पादन इस प्रकार करना जिसे पारिस्थितिक असंतुलन पैदा ना हो।

जल प्रदुषण का कारण :-

  1. जलाशयों में उद्योगों का कचरा डालना।
  2. जलाशयों के नजदीक कपड़े धोना या माल-मूत्र डालना।
  3. जलाशयों के अवांछित पदार्थ डालना।
  4. नदियों में मरे हुए जीवों को बहाना| 

जल प्रदूषण के लिए उत्तरदायी मनुष्यों के क्रियाकलाप :-

  1. घर एवं कारखानों (कागज उद्ध्योग) द्वारा छोड़ा गया विषैला एवं रसायन युक्त पानी| 
  2. कृषि कार्य में उपयोग होने वाले पीड़कनाशी या उर्वरक आदि का जलशयों में मिल जाना (iii) नदियों में मरे हुए जीवों को प्रवाहित करना आदि|

कोयला और पेट्रोलियम :-


जीवाश्मी ईंधन :- कोयला और पेट्रोलियम का महत्व  

  1. जीवाश्म ईंधन अर्थात कोयला एवं पेट्रोलियम जो ऊर्जा के प्रमुख स्रोत हैं।
  2. औद्योगिक क्रांति के समय से हम उत्तरोत्तर अधिक ऊर्जा की खपत कर रहे हैं। 
  3. इस ऊर्जा का प्रयोग हम दैनिक ऊर्जा आवश्यकता की पूर्ति तथा जीवनोपयोगी पदार्थों के उत्पादन हेतु कर रहे हैं।
  4. ऊर्जा संबंधी यह आवश्यकता हमें कोयला तथा पेट्रोलियम से प्राप्त होती है।
  5. आज भी हम अपनी ऊर्जा खपत का 70 % हिस्सा कोयला और पेट्रोलियम पर निर्भर हैं| 

कोयला और पेट्रोलियम जैसे ईंधनों का संरक्षण :-

कोयला और पेट्रोलियम जैसे ईंधनों का संरक्षण की आवश्यकता है क्योंकि

  1. पेट्रोलियम एवं कोयला लाखों वर्ष पूर्व जीवों की जैव-मात्रा के अपघटन से प्राप्त होते हैं।
  2. अतः चाहे हम जितनी भी सावधानी से इनका उपयोग करें फिर भी यह स्रोत भविष्य में समाप्त हो जाएँगे। अतः तब हमें ऊर्जा के विकल्पी स्रोतों की खोज करने की आवश्यकता होगी।

जीवाश्मी ईंधनों के उपयोग के होने वाली हानियां :- 

(i) वायु प्रदुषण :- कोयला एवं पेट्रोलियम जैव-मात्रा से बनते हैं जिनमें कार्बन के अतिरिक्त हाइड्रोजन, नाइट्रोजन एवं सल्फर (गंधक) भी होते हैं। जब इन्हें जलाया (दहन किया) जाता है तो कार्बनडाइऑक्साइड, जल, नाइट्रोजन के ऑक्साइड तथा सल्फर के ऑक्साइड बनते हैं।

Health Effects of Air Pollution and Solutionsv

(ii) बीमारियाँ :- अपर्याप्त वायु (ऑक्सीजन) में जलाने पर कार्बन डाइऑक्साइड के स्थान पर कार्बन मोनोऑक्साइड बनाती है। इन उत्पादों में से नाइट्रोजन एवं सल्फर के ऑक्साइड तथा कार्बन मोनोऑक्साइड विषैली गैसें हैं जिससे कई प्रकार की श्वसन संबंधी समस्याएँ उत्पन्न होती है| जैसे - खांसी, दमा और अन्य कई फेंफडे की बिमारियाँ होती हैं| 

The Politics of Combating Infectious Diseases in Southeast Asia and the  Middle East | Middle East Institute

(iii) वैश्विक ऊष्मन :- कोयला एवं पेट्रोलियम पर विचार करने का एक अन्य दृष्टिकोण यह भी है कि ये कार्बन के विशाल भंडार हैं, यदि इनकी संपूर्ण मात्रा का कार्बन जलाने पर कार्बन डाइऑक्साइड में परिवर्तित हो गया तो वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा अत्यधिक हो जाएगी जिससे तीव्र वैश्विक ऊष्मण होने की संभावना है।

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ऊर्जा खपत बचाने या कम करने के उपाय :-

  1. बस में यात्रा, अपना वाहन प्रयोग में लाना अथवा पैदल/ साइकिल से चलना।
  2. अपने घरों में बल्ब, फ्रलोरोसेंट ट्यूब का प्रयोग करना।
  3. लिफ्ट का प्रयोग करना अथवा सीढि़यों का उपयोग करना।
  4. सर्दी में एक अतिरिक्त स्वेटर पहनना अथवा हीटर या सिगड़ी का प्रयोग करना।

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प्रश्न (पृष्ठ संख्या 303)

प्रश्न 1 पर्यावरण मित्र बनने के लिए आप अपनी आदतों में कौन-से परिवर्तन ला सकते हैं?

उत्तर- 

  • व्यर्थ बहते जल की बर्बादी रोक कर।
  • सोच-समझ कर विद्युत् उपकरणों का इस्तेमाल करके।
  • पॉलीथीन का इस्तेमाल न करना।
  • नालियों में रसायन तथा इस्तेमाल किया हुआ तेल न डाल कर।
  • जल संरक्षण को बढ़ावा देकर।
  • सीसा रहित पैट्रोल का प्रयोग करके।
  • ठोस कचरे का कम-से-कम उत्पादन कर।
  • धुआँ रहित वाहनों का प्रयोग करके।
  • पुन: चक्रण हो सकने वाली वस्तुओं का इस्तेमाल करके।
  • तेल से चालित वाहनों का कम-से-कम इस्तेमाल करके।
  • वनों की कटाई पर रोक लगाकर।
  • 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मना कर।
  • वृक्षारोपण।

ऐसे ही कई तरीकों को अपनाकर हम पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं.

प्रश्न 2 संसाधनों के दोहन के लिए कम अवधि के उद्देश्य के परियोजना के क्या लाभ हो सकते हैं?

उत्तर- संसाधनों के दोहन के लिए कम अवधि वाली परियोजनाएँ वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर बनाई जाती हैं। इससे तत्काल भोजन, पानी तथा ऊर्जा की पूर्ति होती है, परंतु यह परियोजना पर्यावरण को क्षति पहुँचा सकती है।

प्रश्न 3 यह लाभ, लंबी अवधि को ध्यान में रखकर बनाई गई परियोजनाओं के लाभ से किस प्रकार भिन्न है?

उत्तर- प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन से लाभ लंबी अवधि को ध्यान में रखकर बनाई गई परियोजनाओं से, आने वाली पीढ़ियों के लिए भी ये संसाधन बचे रहेंगे। यह प्रबंधन लोगों के बीच समान रूप से संसाधनों के वितरण को सुनिश्चित करता है। यह कई वर्षों तक प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करता है, न कि कुछ वर्षों के लिए, जैसा कि प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में एक कम अवधि के उद्देश्य की परियोजना के मामले में होता है।

प्रश्न 4 क्या आपके विचार में संसाधनों का समान वितरण होना चाहिए? संसाधनों के समान वितरण के विरुद्ध कौन-कौन सी ताकतें कार्य कर सकती हैं?

उत्तर- पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों को लोगों के बीच समान रूप से वितरित किया जाना चाहिए ताकि प्रत्येक को संसाधन का हिस्सा मिल सके। मानव का लालच, भ्रष्टाचार और अमीर तथा शक्तिशाली लोगों का प्रभाव, संसाधनों के समान वितरण के खिलाफ काम करने वाली ताकतें हैं।

प्रश्न (पृष्ठ संख्या 308)

प्रश्न 1 हमें वन एवं वन्य जीवन का संरक्षण क्यों करना चाहिए? अथवा पर्यावरण में वनों की क्या भूमिका हैं?

उत्तर- वन एवं वन्य जीवन को निम्नलिखित कारणों से सुरक्षित रखना चाहिए-

  • वन्य प्राणियों से ऊन, अस्थियाँ, सींग, दाँत, तेल, वसा, त्वचा आदि प्राप्त करने के लिए।
  • धन प्राप्ति के अच्छे स्रोत के रूप में।
  • मृदा अपरदन एवं बाढ़ पर नियंत्रण करने के लिए।
  • प्रकृति में पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने के लिए।
  • वृक्षों के वायवीय भागों से पर्याप्त मात्रा में जल का वाष्पन होता है जो वर्षा के स्रोत का कार्य करते हैं।
  • स्थलीय खाद्य श्रृंखला की निरंतरता के लिए।
  • फल, मेवे, सब्ज़ियाँ तथा औषधियाँ प्राप्त करने के लिए।
  • इमारती तथा जलाने वाली लकड़ी प्राप्त करने के लिए।
  • प्राणियों की प्रजाति को बनाये रखने के लिए।
  • पर्यावरण में गैसीय संतुलन बनाने के लिए।
  • वन्य जीवों को आश्रय प्रदान करने के लिए।

वन्य जीवन का संरक्षण राष्ट्रीय पार्क तथा पशुओं और पक्षियों के लिए शरण स्थल बनाने से किया जा सकता है। पशुओं का शिकार करने की निषेध आज्ञा का कानून प्राप्त करके किया जा सकता है।

प्रश्न 2 वनों के संरक्षण के लिए कुछ उपाय सुझाइए।

उत्तर- वनों के संरक्षण के कुछ उपाय निम्न हैं-

  • टिम्बर तथा जलावन की लकड़ी के लिए पेड़ों की कटाई पर रोक लगा देनी चाहिए तथा इसे एक दंडनीय अपराध के अंतर्गत लाना चाहिए।
  • जंगलों में लगने वाले आग को रोकने तथा नियंत्रित करने के लिए उचित कदम उठाने चाहिए।
  • स्थानीय समुदायों को जंगलों के संरक्षण के लिए शामिल करना चाहिए। इससे उन्हें रोजगार भी मिलेगा तथा वनों का संरक्षण भी होगा।
  • स्टेकहोल्डरों (दावेदारों) को वनों के संरक्षण के प्रति जिम्मेदारीपूर्वक आगे आना चाहिए।
  • राष्ट्रीय उद्यान एवं वनों में भेड़ एवं अन्य जानवरों को चराने (grazing) पर रोक लगानी चाहिए।
  • अधिक से अधिक वृक्ष लगाने चाहिए।
  • जीवाश्म ईंधन का कम से कम उपयोग करें।

प्रश्न (पृष्ठ संख्या 311)

प्रश्न 1 अपने निवास क्षेत्र के आस-पास जल संग्रहण की परंपरागत पद्धति का पता लगाइए।

उत्तर- भारत वर्ष के विभिन्न राज्यों में जल संग्रहण की पद्धति (तरीका) भिन्न-भिन्न होती है। यहाँ कुछ राज्यों की पद्धतियाँ निम्न हैं

  • महाराष्ट्र - बंधारस एवं ताल
  • कर्नाटक, - कट्टा
  • बिहार - अहार तथा पाइन
  • MP और UP - बंधिस
  • हिमाचल प्रदेश - कुल्ह
  • राजस्थान - खादिन, बड़े पात्र, एवं नाड़ी
  • दिल्ली - बावड़ी तथा तालाब
  • जम्मू के काँदी क्षेत्र में - तालाब
  • केरल - सुरंगम।
  • तमिलनाडु - एरिस (Tank)

प्रश्न 2 इस पद्धति की पेय जल व्यवस्था (पर्वतीय क्षेत्रों में, मैदानी क्षेत्र अथवा पठार क्षेत्र) से तुलना कीजिए।

उत्तर- पर्वतीय क्षेत्रों में पेयजल व्यवस्था-

  • लद्दाख- के क्षेत्रों में जिंग द्वारा जल संरक्षण किया जाता है, जिसमें बर्फ के ग्लेशियर को रखा जाता है जो दिन के समय पिघल कर जल की कमी को पूरा करता है।
  • बाँस की नालियाँ- जल संरक्षण की यह प्रणाली मेघालय में सदियों पुरानी पद्धति है। इसमें जल को बॉस की नालियों द्वारा संरक्षित करके उन्हें पहाड़ों के निचले भागों में उन्हीं बाँस की नालियों द्वारा लाया जाता है।

मैदानी क्षेत्रों में पेयजल व्यवस्था-

  • तमिलनाडु- क्षेत्र में बारिश के पानी को किसी टैंक में इकट्ठा किया जाता है और जरूरत पड़ने पर इसका इस्तेमाल किया जाता है.
  • बावरियाँ- ये राजस्थान में पाए जाते हैं। ये छोटे-छोटे तालाब हैं जो प्राचीन काल में बंजारों द्वारा पीने के पानी की पूर्ति करने के लिए बनाए जाते थे.

पठारी क्षेत्रों में पेयजल व्यवस्था-

  • भंडार-ये महाराष्ट्र में पाए जाते हैं, जिसमें नदियों के किनारे ऊंची दीवारें बनाकर बड़ी मात्रा में पानी को इकट्ठा किया जाता है.
  • जोहड़- ये पठारी क्षेत्रों की जमीन पर पाए जाने वाले प्राकृतिक छोटे खड्डे होते हैं। जो कि बारिश के पानी को इकट्ठा करने में के काम आता है.

प्रश्न 3 अपने क्षेत्र में जल के स्रोत का पता लगाइए, क्या इस स्रोत से जल क्षेत्र के सभी निवासियों को उपलब्ध है?

उत्तर- हमारे क्षेत्र में पानी का स्रोत भूजल है। इस स्रोत से पानी उस क्षेत्र में रहने वाले सभी लोगों के लिए उपलब्ध है।

अभ्यास प्रश्न (पृष्ठ संख्या 314)

प्रश्न 1 अपने घर को पर्यावरण-मित्र बनाने के लिए आप उसमे कौन-कौन परिर्वतन सुझा सकतें हैं?

उत्तर- कम उपयोग- इसका अर्थ हैं की आपको कम, से कम वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए करना चाहिए। जैसे- बिजली के पंखे एवचं बल्ब का स्विच बंद कर देना, खराब नल की मरम्मत करना, ताकि जल व्यर्थ टपके आदि

पुन: चक्रण- इसका अर्थ हैं की आपको प्लास्टिक, कागज और धातु की वस्तुओ को कचरे में नही फेकना चाहिए बल्कि उनका उपयोग करना चाहिए

पुन: उपयोग- यह पुन: चक्रण से भी अच्छा तरीका है क्योंकि उसमे भी कुछ ऊर्जा व्यय होती है इसमें हम किसी वस्तु का उपयोग बार-बार कर सकते है

प्रश्न 2 क्या आप अपने स्कूल में कुछ परिवर्तन सुझा सकते हैं जिनसे इसे पर्यानुकूलित बनाया जा सके?

उत्तर- निम्नलिखित परिवर्तनों द्वारा हम अपने स्कूल में पर्यानुकूलित वातावरण बना सकते हैं-

  1. बच्चों को शिक्षा देनी चाहिए कि फूल तथा पत्तियों को न तोड़ें।
  2. स्कूल का भवन साफ-सुथरा रखना चाहिए।
  3. हमें कूड़ा-कचरा इधर-उधर नहीं फेंकना चाहिए, बल्कि चीज़ों का पुन: इस्तेमाल करना चाहिए।
  4. स्कूल के आस-पास कचरे के ढेर और रुका हुआ गंदा जल नहीं होना चाहिए।
  5. शौचालय और मूत्रालयों की नियमित सफाई-धुलाई की जानी चाहिए।
  6. कमरों में ज्यादा-से-ज्यादा खिड़कियाँ बनानी चाहिए ताकि सूर्य की रोशनी अंदर आए और कम-से-कम बिजली खर्च हो.
  7. विद्युत् Wastage को नियंत्रित करना चाहिए।
  8. हमें स्कूल में ज्यादा से ज्यादा पेड़-पौधे लगाने चाहिएं।
  9. हमें जल का Wastage रोकना चाहिए।

प्रश्न 3 अकेले व्यकित के रूप भिन्न प्राकृतिक उत्पादों की खपत कम करने के लिए किया कर सकते है?

उत्तर- प्राकृतिकं पदों की खपत कम निम्न तरीको से की जा सकती है-

  • CFlS का प्रयोग कर
  • सौर कूकर, सौर जल उष्मक का प्रयोग कर कोयले करोसीन और LPG की बचत की जा सकती हैं
  • टपकने वाले नलों की मरम्मत कर हम पानी की बचत कर सकते हैं
  • रेड लाइट, पर कार या एनी वाहनों को बंद करके पेट्रोल/ डीजल की बचत की जा सकती हैं

प्रश्न 4 अकेले व्यक्ति के रूप में आप निम्न के प्रबंधन में क्या योगदान दे सकते हैं।

  1. वन एवं वन्य जंतु
  2. जल संसाधन
  3. कोयला एवं पेट्रोलियम

उत्तर-

  1. वन एवं वन्य जंतु- कम से कम कागज का प्रयोग करके, कागज़ बर्बाद न करके, वनों एव वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए बने नियम का पालन करके, जानवरों के खाल (skin), हड्डियों (bons), सींग (horm), बाल (fur) तथा दाँतों (teeth) से बनी वस्तुओं को प्रयोग न करके इत्यादि।
  2. जल संसाधन- बहते हुए जल में मुँह धोना, स्नान करना आदि का परित्याग करके, स्नान करते समय फव्वारों की जगह बाल्टी या मग का प्रयोग करके, वाशिंग मशीन के जल का बाथरूम में प्रयोग करके, ख़राब नल को तुरंत ठीक करवा कर आदि।
  3. कोयला एवं पेट्रोलियम- बिजली के पंखे, बल्ब को अनावश्यक न चलने दें, स्विच ऑफ कर दें, कम दूरी के लिए स्कूटर, कार के स्थान पर साइकिल/ पैदल का प्रयोग करके, CFLS (बल्ब की जगह) उपयोग करके, लिफ्ट की जगह सीढ़ियों का प्रयोग करके, रेड लाइट पर वाहनों को बंद करके, CNG का प्रयोग करके, निजी वाहनों के स्थान पर बसों, मेट्रो, रेल आदि का प्रयोग करके, AC तथा हीटर का प्रयोग कम करके इत्यादि।

प्रश्न 5 अकेले व्यक्ति के रूप में आप विभिन्न प्राकृतिक उत्पादों की खपत कम करने के लिए क्या कर सकते हैं?

उत्तर- प्राकृतिक संसाधन जैसे पानी, जंगल, कोयला और पेट्रोलियम आदि मानव के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण हैं। निम्नलिखित तरीकों से हम इनकी खपत को कम कर सकते हैं-

  • हमें पेड़ों की कटाई (वनों की कटाई) को रोकना चाहिए।
  • पेड़ों की कटाई को कम करने के लिए हमें पुनर्नवीनीकरण कागज का उपयोग करना चाहिए।
  • हमें पानी की बर्बादी नहीं करनी चाहिए।
  • हमें वर्षा जल संचयन का प्रयास करना चाहिए।
  • हमें पेट्रोलियम के अत्यधिक उपयोग से बचने के लिए कार पूलिंग करनी चाहिए।
  • हमें ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों जैसे कि हाइड्रो-ऊर्जा और सौर ऊर्जा का उपयोग करना चाहिए।

प्रश्न 6 निम्न से संबंधित ऐसे पाँच कार्य लिखिए जो आपने पिछले एक सप्ताह में किए हैं-

  1. अपने प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण।
  2. अपने प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव को और बढ़ाया है।

उत्तर- अपने प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण-

  • पर्यावरण के संरक्षण से संबंधित जागरूकता अभियान में भाग लिया।
  • नहाने में कम-से-कम पानी का उपयोग किया।
  • रोशनी के लिए CFL’S का प्रयोग करके।
  • स्कूल आने-जाने के लिए अपने वाहन की जगह सरकारी वाहनों का प्रयोग करके।
  • विद्युत् उपकरणों का व्यर्थ उपयोग नहीं किया।

अपने प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव को और बढ़ाया है-

  • कंप्यूटर पर प्रिंटिंग के लिए अधिक कागजों का प्रयोग किया।
  • मोटर साइकिल का अत्यधिक प्रयोग करके।
  • पंखा चलते छोड़कर कमरे से बाहर गया।
  • दीवाली पर पटाखे जलाकर।
  • आहार को व्यर्थ किया।

प्रश्न 7 इस अध्याय में उठाई गई समस्याओं के आधार पर आप अपनी जीवन-शैली में क्या परिवर्तन लाना चाहेंगे, जिससे हमारे संसाधनों के संपोषण को प्रोत्साहन मिल सके?

उत्तर- हमारे संसाधनों के उपयोग की दिशा में हमें जीवन-शैली में निम्नलिखित परिवर्तनों को शामिल करना चाहिए-

  • पेड़ों को काटना कम करें या बंद करें और वक्षारोपण करें।
  • माल ढोने के लिए प्लास्टिक और पॉलिथीन बैग का उपयोग बंद करें।
  • पुनर्नवीनीकरण कागज का उपयोग करें।
  • जैव-निम्नीकरनीय और अजैव निम्नीकरनीय कचरे को अलग-अलग डिब्बे में फेंके।
  • वर्षा जल संचयन का प्रयास करें।
  • कम दूरी के लिए वाहनों के उपयोग से बचें। लंबी दूरी तय करने के लिए, निजी वाहनों का उपयोग करने के बजाय बस अथवा अन्य सार्जनिक वाहन लेना चाहिए।
  • उपयोग में न होने पर बिजली के उपकरणों को बंद कर दें।
  • सीढ़ियों का प्रयोग करें और लिफ्ट के उपयोग से बचें।
  • सर्दियों के दौरान, हीटर का उपयोग करने से बचने के लिए एक अतिरिक्त स्वेटर पहनें।

 


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