मानव नेत्र के विभिन्न भाग एवं उनके कार्य :-
दृढ़ पटल :- मनुष्य का नेत्र लगभग एक खोखले गोले के समान होता है। इसकी सबसे बाहरी पर्त अपारदर्शी, श्वेत तथा दृढ़ होती है। इसे दृढ़ पटल कहते हैं। इसके द्वारा नेत्र के भीतरी भागों की सुरक्षा होती है।
रक्तक पटल :- दृढ़ पटल के भीतरी पृष्ठ से लगी काले रंग की एक झिल्ली होती है, जिसे रक्तक पटल कहते हैं। यह नेत्र के भीतरी भागों में परावर्तन रोकती है।
श्वेत मंडल /कॉर्निया :- नेत्र के अग्र भाग पर एक पारदर्शी झिल्ली होती है जिसे श्वेत मंडल या कॉर्निया कहते है। नेत्र में प्रवेश करने वाली प्रकाश किरणों का अधिकांश अपवर्तन कॉर्निया के बाहरी पृष्ठ पर होता है।
नेत्र गोलक :- इसकी आकृति लगभग गोलाकार होती है। इसका व्यास लगभग 2.3cm होती है।
लेंस :- यह एक उत्तल लेंस है जो प्रकाश को रेटिना पर अभिसरित करता है। यह एक रेशेदार जहेलीवत पदार्थ का बना होता है। लेंस केवल विभिन्न दूरियों पर रखी वस्तुओं को रेटिना पर क्रेन्द्रित करने के लिए आवश्यक फोकस दूरी में सूक्ष्म समायोजन करता है।
परितारिका :- कॉर्निया के पीछे एक गहरा पेशीय डायफ्राम होता है जो पुतली के आकार को नियंत्रित करता है।
पुतली :- यह परिवर्ती द्धारक की भांति कार्य करती है। जिसका साइज परितारिका की सहायता से बदला जाता है। यह आंख में प्रवेश होने वाले प्रकाश की मात्रा को नियंत्रित करती है।
अभिनेत्र लैंस :- यह एक उत्तल लैस है। जो प्रकाश को रेटिना पर अभिसारित करता है और वस्तु का उल्टा तथा वास्तविक प्रतिबिंब बनाता है। यह एक रेशेदार जेलीवत पदार्थ का बना होता है।
पक्ष्भामी पेशियां :- अभिनेत्र लैंस की वक्रता को नियंत्रित करती है। अभिनेत्र लैंस की वक्रता में परिवर्तन होने पर इसकी फोकस दूरी भी परिवर्तित हो जाती है ताकि हम वस्तु का स्पष्ट प्रतिबिंब देख सकें।
रेटीना :- यह एक कोमल सूक्ष्म झिल्ली है जिसमें प्रकाश सुग्राही कोशिकाएं अधिक संख्या में पाई जाती हैं। प्रदीप्त होने पर प्रकाश सुग्राही कोशिकाएँ सक्रिय हो जाती हैं तथा विद्युत सिग्नल पैदा करती हैं। ये सिग्नल दृक् तंत्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क तक पहुँचा दिए जाते हैं। मस्तिष्क इन सिग्नलों की व्याख्या करता है और हम वस्तुओं को देख पाते हैं।
दूर बिंदु :- वह दूरतम बिंदु जिस तक कोई नेत्र वस्तुओं को सुस्पष्ट देख सकता है, नेत्र का दूर बिंदु कहलाता है। सामान्य नेत्र के लिए यह अनंत दूरी पर होता है।
निकट बिंदु :- वह न्यूनतम दूरी जिस पर रखी कोई वस्तु बिना तनाव के अत्यधिक स्पष्ट देखी जा सकती है, उसे नेत्र का निकट बिंदू कहते हैं।
समंजन क्षमता :- अभिनेत्र लेंस की वह क्षमता जिसके कारण वह अपनी फोकस दूरी को समायोजित कर लेता है समंजन कहलाती है।
सुस्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी :- किसी सामान्य दृष्टि के कारण वयस्क के लिए निकट बिंदू आँख से लगभग 25cm की दूरी पर होता है। इसे सुस्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी भी कहते हैं
दृष्टि दोष तथा उनका संशोधन :-
मोतियाबिंद :-
अधिक उम्र के कुछ व्यक्तियों के नेत्र का क्रिस्टलीय लेंस दूधिया तथा धुँधला हो जाता है। इस स्थिति को मोतियाबिंद कहते हैं। इसके कारण नेत्र की दृष्टि में कमी या पूर्ण रूप से दृष्टि क्षय हो जाती है।
मोतियाबिंद की शल्य चिकित्सा के बाद दृष्टि का वापस लौटना संभव होता है।
निकट–दृष्टि दोष :- इस दोष में व्यक्ति निकट रखी वस्तुओं को तो स्पष्ट देख सकता है परंतु दूर रखी वस्तुओं को वह सुस्पष्ट नहीं देख पाता। ऐसे दोषयुक्त व्यक्ति का दूर – बिंदु अनंत पर न होकर नेत्र के पास आ जाता है।
दोष उत्पन्न होने के कारण :-
अभिनेत्र लेंस की वक्रता का अत्यधिक होना।
नेत्र गोलक का लंबा हो जाना।
निवारण :- इस दोष को किसी उपयुक्त क्षमता के अवतल लेंस (अपसारी लेंस) के उपयोग द्वारा संशोधित किया जा सकता है। उपयुक्त क्षमता का अवतल लेंस वस्तु के प्रतिबिंब को वापस दृष्टिपटल (रेटिना) पर ले आता है, तथा इस प्रकार इस दोष का संशोधन हो जाता है
दीर्घ – दृष्टि दोष दीर्घ :- दृष्टि दोषयुक्त कोई व्यक्ति दूर की वस्तुओं को तो स्पष्ट देख सकता है परंतु निकट रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट नहीं देख पाता। ऐसे दोषयुक्त व्यक्ति का निकट बिंदु सामान्य निकट बिंदु (25cm) से दूर हट जाता है।
दोष उत्पन्न होने के कारण :-
अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी का अत्यधिक हो जाना।
नेत्र गोलक का छोटा हो जाना।
निवारण :- इस दोष को उपयुक्त क्षमता के अभिसारी लेंस (उत्तल लेंस) का उपयोग करके संशोधित किया जा सकता है। उत्तल लेंस युक्त चश्मे दृष्टिपटल पर वस्तु का प्रतिबिंब फोकसित करने के लिए आवश्यक अतिरिक्त क्षमता प्रदान करते हैं।
जरा – दूरदृष्टिता :- आयु में वृद्धि होने के साथ साथ मानव नेत्र में समंजन क्षमता घट जाती है। अधिकांश व्यक्तियों का निकट बिंदु दूर हट जाता है। इस दोष को जरा दूरदृष्टिता कहते हैं।
दोष उत्पन्न होने के कारण :- यह पक्ष्माभी पेशियों के धीरे - धीरे दुर्बल होने तथा क्रिस्टलीय लेंस के लचीलेपन में कमी आने के कारण उत्पन्न होता है।
निवारण :-
उत्तल लेंस के प्रयोग से।
कभी – कभी किसी व्यक्ति के नेत्र में दोनों ही प्रकार के दोष निकट - दृष्टि तथा दूर - दृष्टि दोष होते हैं ऐसे व्यक्तियों के लिए प्रायः द्विफोकसी लेंसों की आवश्यकता होती ऊपरी भाग अवतल लेंस और निचला भाग उत्तल लेंस होता है।
आजकल संस्पर्श लेंस अथवा शल्य हस्तक्षेप द्वारा दृष्टि दोषों का संशोधन संभव है
दोनों नेत्रों का सिर पर सामने की ओर स्थित होने का लाभ :-
इससे हमें त्रिविम चाक्षुकी का लाभ मिलता है।
इससे हमारा दृष्टि - क्षेत्र विस्तृत हो जाता है।
इससे हम धुंधली चीजों को भी देख पाते हैं।
प्रिज्म से प्रकाश अपवर्तन :- प्रिज्म के दो त्रिभुजाकार आधार तथा तीन आयताकार पार्श्व पृष्ठ होते हैं
प्रिज्म कोण :- प्रिज्म के दो पार्श्व फलकों के बीच के कोण को प्रिज्म कोण कहते हैं।
विचलन कोण :- आपतित किरण एवं निर्गत किरण के बीच के कोण को विचलन कोण कहते हैं।
काँच के प्रिज्म द्वारा श्वेत प्रकाश का विक्षेपण :- सूर्य का श्वेत प्रकाश जब प्रिज्म से होकर गुजरता है तो प्रिज्म श्वेत प्रकाश को सात रंगों की पट्टी में विभक्त कर देता है। यह सात रंग है बैंगनी , जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी तथा लाल। प्रकाश के अवयवी वर्गों के इस बैंड को स्पेक्ट्रम ( वर्णक्रम) कहते हैं। प्रकाश के अवयवी वर्गों में विभाजन को विक्षेपण कहते हैं।
इंद्रधनुष :-
इंद्रधनुष वर्षा के पश्चात आकाश में जल के सूक्ष्म कणों में दिखाई देने वाला प्राकृतिक स्पेक्ट्रम है। यह वायुमंडल में उपस्थित जल की बूँदों द्वारा सूर्य के प्रकाश के परिक्षेपन के कारण प्राप्त होता है। इंद्रधनुष सदैव सूर्य के विपरीत दिशा में बनता है।
जल की सूक्ष्म बूंदें छोटे प्रिज्मों की भाँति कार्य करती है। सूर्य के आपतित प्रकाश की ये बूंदें अपवर्तित तथा विक्षेपित करती हैं, तत्पश्चात इसे आंतरिक परावर्तित करती हैं, अंततः जल की बूँद से बाहर निकलते समय प्रकाश को पुनः अपवर्तित करती है। प्रकाश के परिक्षेपण तथा आंतरिक परावर्तन के कारण विभिन्न वर्ण प्रेक्षक के नेत्रों तक पहुँचते हैं।
किसी प्रिज्म से गुजरने के पश्चात , प्रकाश के विभिन्न वर्ण , आपतित किरण के सापेक्ष अलग - अलग कोणों पर झुकते हैं।
लाल प्रकाश सबसे कम झुकता है जबकि बैंगनी प्रकाश सबसे अधिक झुकता है।
आइजक न्यूटन :-
आइजक न्यूटन ने सर्वप्रथम सूर्य का स्पेक्ट्रम प्राप्त करने के लिए काँच के प्रिज्म का उपयोग किया। एक दूसरा समान प्रिज्म उपयोग करके उन्होंने श्वेत प्रकाश के स्पेक्ट्रम के वर्गों को और अधिक विभक्त करने का प्रयत्न किया। किंतु उन्हें और अधिक वर्णों नहीं मिल पाए।
फिर उन्होंने एक दूसरा सर्वसम प्रिज्म पहले प्रिज्म के सापेक्ष उल्टी स्थिति में रखा। उन्होंने देखा कि दूसरे प्रिज्म से श्वेत प्रकाश का किरण पुंज निर्गत हो रहा है। इससे न्यूटन ने यह निष्कर्ष निकाला कि सूर्य का प्रकाश सात वर्गों से मिलकर बना है।
वायुमंडलीय अपवर्तन :- वायुमंडलीय अस्थिरता के कारण प्रकाश का अपवर्तन वायुमंडलीय अपवर्तन कहलाता है।
वायुमंडलीय अपवर्तन के प्रभाव :-
तारों का टिमटिमाना
अग्रिम सूर्योदय तथा विलम्बित सूर्यास्त
तारों का वास्तविक स्थिति से कुछ ऊँचाई पर प्रतीत होना।
गरम वायु में से होकर देखने पर वस्तु की आभासी स्थिति का परिवर्तित होना।
तारों का टिमटिमाना :- दूर स्थित तारा हमें प्रकाश के बिंदु स्रोत के समान प्रतीत होता है। चूंकि तारों से आने वाली प्रकाश किरणों का पथ थोड़ा - थोड़ा परिवर्तित होता रहता है, अत : तारे की आभासी स्थिति विचलित होती रहती है तथा आँखों में प्रवेश करने वाले तारों के प्रकाश की मात्रा झिलमिलाती रहती
है। जिसके कारण कोई तारा कभी चमकीला प्रतीत होता है तो कभी धुंधला, जो कि टिमटिमाहट का प्रभाव है।
अग्रिम सूर्योदय तथा विलम्बित सूर्यास्त :- वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण सूर्य हमें वास्तविक सूर्योदय से लगभग 2 मिनट पूर्व दिखाई देने लगता है तथा वास्तविक सूर्यास्त के लगभग 2 मिनट पश्चात् तक दिखाई देता रहता है।
तारों का वास्तविक स्थिति से कुछ ऊँचाई पर प्रतीत होना :- पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने के पश्चात् पृथ्वी के पृष्ठ पर पहुँचने तक तारे का प्रकाश निरंतर अपवर्तित होता जाता है। वायुमंडलीय अपवर्तन उसी माध्यम में होता है जिसका क्रमिक परिवर्ती अपवर्तनांक हो। क्योंकि वायुमंडल तारे के प्रकाश को अभिलंब की ओर झुका रहता है
अतः क्षितिज के निकट देखने पर कोई तारा अपनी वास्तविक स्थिति से कुछ ऊँचाई पर प्रतीत होता है।
गरम वायु में से होकर देखने पर वस्तु की आभासी स्थिति का परिवर्तित होना :-
आग के तुरंत ऊपर की वायु अपने ऊपर की वायु को तुलना में अधिक गरम हो जाती है। गरम वायु अपने ऊपर की ठंडी वायु की तुलना में कम सघन होती है तथा इसका अपवर्तनांक ठंडी वायु की अपेक्षा थोड़ा कम होता है। क्योंकि अपवर्तक माध्यम (वायु) की भौतिक अवस्थाएँ सिथर नहीं हैं। इसलिए गरम वायु में से होकर देखने पर वस्तु की आभासी स्थिति परिवर्तित होती रहती है।
प्रकाश का प्रकीर्णन :-
टिंडल प्रभाव :- जब कोई प्रकाश किरण का पुंज वायुमण्डल के महीन कणों जैसे धुआँ, जल की सूक्ष्म बूंदें, धूल के निलंबित कण तथा वायु के अणु से टकराता है तो उस किरण पुंज का मार्ग दिखाई देने लगता है। कोलाइडी कणों के द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन की परिघटना टिंडल प्रभाव उत्पन्न करती है।
उदाहरण :-
जब धुएँ से भरे किसी कमरे में किसी सूक्ष्म छिद्र से कोई पतला प्रकाश किरण पुंज प्रवेश करता है तो हम टिंडल प्रभाव देख सकते हैं।
जब किसी घने जंगल के वितान से सूर्य का प्रकाश गुजरता है तो भी टिन्डल प्रभाव को देखा जा सकता है।
Rayleigh का नियम :-
प्रकीर्णित a = 1/λ⁴
λ- प्रकाश किरण की तरंग दैर्ध्य
प्रकीर्णित प्रकाश का वर्णन किस पर निरभर करता है :- प्रकीर्णित प्रकाश का वर्णन प्रकीर्णन न करने वाले कणों के आकार पर निर्भर करता है। जैसे
अत्यंत सूक्ष्म कण मुख्य रूप से नीले प्रकाश को प्रकीर्ण करते हैं।
बड़े आकार के कण अधिक तरंगदैर्ध्य के प्रकाश को प्रकीर्ण करते हैं।
यदि प्रकीर्णन करने वाले कणों का साइज बहुत अधिक है तो प्रकीर्णित प्रकाश श्वेत भी प्रतीत हो सकता है।
ग्रह क्यों नहीं टिमटिमाते :- तारों की अपेक्षा पृथ्वी के काफी नजदीक होते हैं। इसलिए उसे प्रकाश का बड़ा स्रोत माना जाता है। यदि गृह की प्रकाश के बिंदु स्रोतों का संग्रह माने तो प्रत्येक स्रोत द्वारा, हमारे आँखों में प्रवेश करने वाले प्रकाश की मात्रा में कुल परिवर्तत का औसत मान शून्य होगा, जिस कारण ग्रह टिमटिमाते नहीं।
‘खतरे‘ का संकेत लाल रंग का क्यों होता है :- खतरे के संकेत का प्रकाश लाल रंग का होता है। लाल रंग कुहरे या धुएँ से सबसे कम प्रकीर्ण होता है। इसलिए यह दूर से देखने पर भी दिखाई देता है।
स्वच्छ आकाश का रंग नीला क्यों होता है
वायुमंडल में वायु के अणु तथा अन्य सूक्ष्म कणों का आकार दृश्य प्रकाश की तरंगदैर्ध्य के प्रकाश की अपेक्षा छोटा है। ये कण कम तरंगदैर्ध्य के प्रकाश को प्रकीर्णित करने में अधिक प्रभावी हैं।
लाल वर्ण के प्रकाश की तरंगदैर्ध्य नीले प्रकाश की अपेक्षा 1.8 गुनी है।
अतः जब सूर्य का प्रकाश वायुमंडल से गुजरता है, वायु के सूक्ष्म कण लाल रंग की अपेक्षा नीले रंग को अधिक प्रबलता से प्रकीर्ण करते हैं। प्रकीर्णित हुआ नीला प्रकाश हमारे नेत्रों में प्रवेश करता है।
बादल सफेद क्यों प्रतीत होते हैं :- बादल सूक्ष्म पानी की बूंदों से बने होते हैं ये सूक्ष्म बूंदों का आकार दृश्य किरणों की तरंगदैर्ध्य की सीमा से अधिक है। इसलिए जब श्वेत प्रकाश इन कणों से टकराता है तो सभी दिशा में परावर्तित या प्रकीर्ण हो जाता है। क्योंकि श्वेत प्रकाश के सभी रंग परावर्तित या प्रकीर्ण अधिकतम समान रूप से होते हैं। इसलिए हमें श्वेत रंग ही दिखाई देता है।
NCERT SOLUTIONS
प्रश्न (पृष्ठ संख्या 211)
प्रश्न 1 नेत्र की समंजन क्षमता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर- नेत्र के लैंस की वह क्षमता जिसके कारण वह अपनी फोकस दूरी को समायोजित कर लेता है,जो समंजन कहलाती है इसी के कारण नेत्र अल्पतम दूरी और दूर-बिंदु को नियोजित कर पाता है। सामान्य अवस्था में नेत्र की समंजन क्षमता चार डायोप्टर होती है।
प्रश्न 2 निकट दृष्टिदोष का कोई व्यक्ति 1.2m से अधिक दूरी पर रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट नहीं देख सकता।इस दोष को दूर करने के लिए प्रयुक्त संशोधक लेंस किस प्रकार का होना चाहिए?
उत्तर- यह निकट दृष्टिदोष है, जिसे दूर करने के लिए उचित क्षमता का अवतल लेंस लेना चाहिए।
प्रश्न 3 मानव नेत्र की सामान्य दृष्टि के लिए दूर बिंदु तथा निकट बिंदु नेत्र से कितनी दूरी पर होते हैं?
उत्तर- सामान्य दृष्टि के लिए दूर बिदुं नेत्र से अनंत दुरी तक तथा निकट बिंदु नेत्र से 25CM की दुरी पर होती है
प्रश्न 4 अंतिम पंक्ति में बैठे किसी विद्यार्थी को श्यामपट्ट पढ़ने में कठिनाई होती है। यह विद्यार्थी किस दृष्टि दोष से पीडि़त है? इसे किस प्रकार संशोधित किया जा सकता है?
उत्तर- इस विद्यार्थी को निकट-दृष्टि दोष है निकट दृष्टि दोष (मायोपिया) को किसी उपयुक्त क्षमता के अवतल लेंस द्वारा संशोधित किया जाता है
अभ्यास प्रश्न (पृष्ठ संख्या 219-220)
प्रश्न 1 मानव नेत्र अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी को समायोजित करके विभिन्न दूरियों पर रखी वस्तुओं को फोकसित कर सकता है। ऐसा हो पाने का कारण है
जरा-दूरद्दष्टिता
समंजन
निकट-दृष्टि
दीर्घ-दृष्टि
उत्तर-
समंजन
प्रश्न 2 मानव नेत्रा जिस भाग पर किसी वस्तु का प्रतिबिंब बनाते हैं वह है
कॉर्निया
परितारिका
पुतली
दृष्टिपटल
उत्तर-
दृष्टिपटल
प्रश्न 3 सामान्य दृष्टि के वयस्क के लिए सुस्पष्ट दर्शन की अल्पतम दूरी होती है, लगभग-
25m
2.5cm
25cm
2.5m
उत्तर-
25m
प्रश्न 4 अभिनेत्रा लेंस की फोकस दूरी में परिवर्तन किया जाता है
पुतली द्वारा
दृष्टिपटल द्वारा
पक्ष्माभी द्वारा
रितारिका द्वारा
उत्तर-
पक्ष्माभी द्वारा
प्रश्न 5 किसी व्यक्ति को अपनी दूर की दृष्टि को संशोधित करने के लिए -5.5 डाइऑप्टर क्षमता के लैंस की आवश्यकता है। अपनी निकट की दृष्टि को संशोधित करने के लिए उसे +1.5 डाइऑप्टर क्षमता के लैंस की आवश्यकता है। संशोधित करने के लिए आवश्यक लैंस की फोकस दूरी क्या होगी
दूर की दृष्टि के लिए
निकट की दृष्टि के लिए
उत्तर-
दूर की दृष्टि को संशोधित करने के लिए लैंस की क्षमता
P1 = −5.5D
इस भाग की फोकस दूरी,
F1=1P=1-5.5m=-1055m
=-211m=-20011m=-18.2cm
निकट दृष्टि के लिए फोकस दूरी
F21P2=11.5=1015
F2=23m
=2003cm
F2+66.7cm
प्रश्न 6 किसी निकट-दृष्टि दोष से पीड़ित व्यक्ति का दूर बिंदु नेत्र के सामने 80cm दूरी पर है। इस दोष को संशोधित करने के लिए आवश्यक लेंस की प्रकृति तथा क्षमता क्या होगी?
उत्तर- निकट दृष्टि दोष से पीड़ित व्यक्ति के लिए-
u=-
v=-80cm
संशोधित लेंस की फोकस दुरी
f = ?
1v-1u=1f
1-80-1-=1f
1-80cm=1f
f=-80cm=-0.80cm
∴संशोधित लेंस की क्षमता P=1f=1-80m=-1.25D
प्रश्न 7 चित्र बना कर दर्शाइए कि दीर्घ-दृष्टि दोष कैसे संशोधित किया जाता है। एक दीर्घ दृष्टि दोषयुक्त नेत्र का निकट बिंदु 1 मी है। इस दोष को संशोधित करने के लिए आवश्यक लैंस की क्षमता क्या होगी? यह मान लीजिए कि सामान्य नेत्र का निकट बिंदु 25 सेमी है।
उत्तर- उचित फोकस दूरी का उत्तल लेंस प्रयोग करके दीर्घ-दृष्टिदोष को दूर किया जा सकता है।
दिया जा सकता है।
दिया है वस्तु की दुरी u = −25cm
प्रतिबिब की दुरी v = −1m = −100cm
माना, फोकस दुरी = f
सूत्र के 1f=1v-1u अनुसार
1f=1-100-1-25
1f=-1+4100=3100
f=1003cm=13m
अतः इस दोष को संशोधित करने के लिए 3 डाइऑप्टर क्षमता वाले अवतल लेंस की आवश्यकता होगी।
प्रश्न 8 सामान्य नेत्र 25 सेमी से निकट रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट क्यों नहीं देख पाते?
उत्तर- 25 सेंटीमीटर से कम की दूरी पर ऑब्जेक्ट को रेटिना पर फ़ोकस नहीं किया जा सकता है, जिससे आँखों पर तनाव बढ़ता है और वस्तु धुंधली दिखाई देती है। इसलिए सामान्य नेत्र 25 सेमी से निकट रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट नहीं देख पाते।
प्रश्न 9 जब हम नेत्रा से किसी वस्तु की दूरी को बढ़ा देते हैं तो नेत्र में प्रतिबिंब-दूरी का क्या होता है?
उत्तर- प्रतिबिंब दूरी सदैव एक जैसी रहती है इसका कारण है कि वस्तु की दुरी मानव नेत्र के लेंस की फोकस दुरी इस प्रकार समायोजित हो जाती है जिससे प्रतिबिंब दृष्टि पटल पर ही बने
प्रश्न 10 तारे क्यों टिमटिमाते हैं?
उत्तर-तारों से आने वाले प्रकाश का वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण तारे टिमटिमाते हुए प्रतीत होते हैं। पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने के बाद तारे के प्रकाश को विभिन्न अपवर्तनांक वाले वायुमंडल से गुजरना होता है, इसलिए प्रकाश का लगातार अपवर्तन होते रहने के कारण प्रकाश की दिशा बदलती रहती है, जिससे तारे टिमटिमाते हुए प्रतीत होते हैं
प्रश्न 11 व्याख्या कीजिए कि ग्रह क्यों नहीं टिमटिमाते?
उत्तर- ग्रह तारों की अपेक्षा पृथ्वी के बहुत पास हैं और इसलिए इन्हें विस्तृत स्रोत की भांति माना जा सकता है। यदि हम ग्रह को बिंदु-आकर के अनेक प्रकाश स्रोतों का संग्रह मान लें, तो सभी बिंदु आकर के प्रकाश स्रोतों से हमारे नेत्रों में प्रवेश करने वाली प्रकाश की मात्रा में कुल परिवर्तन का औसत शून्य होगा, इसी कारण टिमटिमाने का प्रभाव निष्प्रभावित हो जाएगा। अतः, ग्रह, तारों की तरह नहीं टिमटिमा पाते हैं।
प्रश्न 12 सूर्योदय के समय सूर्य रक्ताभ क्यों प्रतीत होता है?
उत्तर- सूर्योदय के समय सूर्य क्षितिज के निकट होता है। सूर्य की किरणों को हम तक पहुँचने के लिए वातावरणीय मोटी परतों से गुजर कर पहुँचना पड़ता है। नीले और कम तरंगदैर्घ्य के प्रकाश का अधिकांश भाग वहाँ उपस्थित कणों के द्वारा प्रकीर्णित कर दिया जाता है। हमारी आँखों तक पहुँचने वाला प्रकाश अधिक तरंगदैर्घ्य का होता है। इसलिए सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य रक्ताभ प्रतीत होता है।
प्रश्न 13 किसी अतंरिक्षयात्री को आकाश नीले की अपेक्षा काला क्यों प्रतीत होता है?
उत्तर- अतंरिक्ष पर वायुमंडल ना होने के कारण वहाँ प्रकाश का प्रकीर्णन नहीं होता है, क्योंकि वायु के महीन कण ही प्रकाश को प्रकिर्णित करते है यही कारण है कि अतंरिक्ष यात्रियों को आकाश काला दिखाई देता है