विद्युत आवेश :-
घर्षणीक विद्युत :- रगड़ या घर्षण से उत्पन्न विद्युत को घर्षणीक विद्युत कहते हैं|
विद्युत आवेश :- विद्युत आवेश दो प्रकार के होते हैं|
1. धन आवेश :- कांच कि छड को जब रेशम के धागे से रगडा जाता है तो इससे प्राप्त आवेश को धन आवेश कहते हैं|
2. ऋण आवेश :- एबोनाईट कि छड को ऊन के धागे से रगडा जाता है तो इस प्रकार प्राप्त आवेश को ऋण आवेश कहा जाता है|
इलेक्ट्रानों कि कमी के कारण धन आवेश उत्पन्न होता है|
इलेक्ट्रानों कि अधिकता से ऋण आवेश उत्पन्न होता है|
विद्युत स्थैतिकता का आधारभूत नियम :-
समान आवेश एक दुसरे को प्रतिकर्षित करती हैं|
असमान आवेश एकदूसरे को आकर्षित करती हैं|
स्थैतिक विद्युत :- जब विद्युत आवेश विराम कि स्थिति में रहती हैं तो इसे स्थैतिक विद्युत कहते हैं|
धारा विद्युत :- जब विद्युत आवेश गति में होता है तो इसे धारा विद्युत कहते हैं|
विद्युत धारा एवं आवेश :- जब किसी चालक से विद्युत आवेश बहता है तो हम कहते है कि चालक में विद्युत धारा है |
दुसरे शब्दों में, विद्युत आवेश के बहाव को विद्युत धारा कहते है|
विद्युत धारा को इकाई समय में किसी विशेष क्षेत्र से विद्युत आवेशों की मात्रा के बहाव से व्यक्त किया जाता है|
विद्युत धारा किसी चालक/ तार से होकर बहता है|
विद्युत धारा एक सदिश राशि है|
इलेक्ट्रोनों का बहाव :- इलेक्ट्रोंस बैटरी के ऋणात्मक टर्मिनल पर ऋण आवेश के द्वारा प्रतिकर्षित होते हैं तथा धन टर्मिनल पर धन आवेश पर आकर्षित होते हैं| इसलिए इलेक्ट्रोंस ऋण टर्मिनल धन टर्मिनल की ओर प्रवाहित होते हैं| जब ये इलेक्ट्रॉन्स धन टर्मिनल तक पहुँचते हैं तो एक रासायनिक प्रतिक्रिया से वे बैट्री के अंदर स्थान्तरित हो जाते हैं और और पुन: ऋण टर्मिनल पर आ जाते हैं| इस प्रकार इलेक्ट्रॉन्स प्रवाहित होते हैं|
चालक :- वे पदार्थ जो अपने से होकर विद्युत आवेश को आसानी से प्रवाहित होने देते हैं चालक कहलाते हैं| उदाहरण : तांबा, सिल्वर, एल्युमीनियम इत्यादि|
अच्छे चालक धारा के प्रवाह का कम प्रतिरोध करते हैं|
कुचालकों का धारा के प्रवाह की प्रतिरोधकता बहुत अधिक होती है|
कुचालक :- वे पदार्थ जो अपने से होकर विद्युत धारा को प्रवाहित नहीं होने देते हैं वे पदार्थ विद्युत के कुचालक कहलाते हैं| उदाहरण : रबड़, प्लास्टिक, एबोनाईट और काँच इत्यादि|
चालकता :- चालकता किसी चालक का वह गुण है जिससे यह अपने अंदर विद्युत आवेश को प्रवाहित होने देते हैं|
अतिचालकता :- अतिचालकता किसी चालक में होने वाली वह परिघटना है जिसमें वह बहुत कम ताप पर बिल्कुल शून्य विद्युत प्रतिरोध करता है|
कूलाम्ब का नियम :- किसी चालक के दो बिन्दुओं के बीच आवेशों पर लगने वाले आकर्षण या प्रतिकर्षण बल, आवेशों के गुणनफल (q1q2) के अनुक्रमानुपाती होते हैं और उनके बीच की दुरी (r) के वर्ग का व्युत्क्रमानुपाती होते हैं|
गणितीय विधि से ,
F ∝ q1q2 ......................... (i)
F ∝ 1/ r2 ..........................(ii)
F=q1 q1r2
k एक स्थिरांक है परन्तु k का मान दो आवेशों के बीच उपस्थित माध्यम की प्रकृति पर निर्भर करता है|
k का निर्वात में आवेश 9 × 109 Nm2/C2 होता है|
विद्युत परिपथ :- किसी विद्युत धारा के सतत तथा बंद पथ को विद्युत परिपथ कहते हैं|
विद्युत का प्रवाह :- आवेशों की रचना इलेक्ट्रोन करते हैं| विद्युत धारा को धनआवेशों का प्रवाह माना गया तथा धनावेश के प्रवाह की दिशा ही विद्युत धारा की दिशा माना गया| परिपाटी के अनुसार किसी विद्युत परिपथ में इलेक्ट्रॉनों जो ऋणआवेश हैं, के प्रवाह की दिशा के विपरीत दिशा को विद्युत धारा की दिशा माना जाता है।
यदि किसी चालक की किसी भी अनुप्रस्थ काट से समय t में नेट आवेश Q प्रवाहित होता है तब उस अनुप्रस्थ काट से प्रवाहित विद्युत धाराI को इस प्रकार व्यक्त करते हैंः
I = Q/t
विद्युत आवेश का SI मात्रक (unit) कूलम्ब (C) है, जो लगभग 6 × 1018 इलेक्ट्रोनों में समाए आवेश के तुल्य होता है|
कूलम्ब :- विद्युत आवेश का SI मात्रक (unit) कूलम्ब (C) है, जो लगभग 6 × 1018 इलेक्ट्रोनों में समाए आवेश के तुल्य होता है |
एक इलेक्ट्रान पर आवेश = -1.6 × 10-19 कूलम्ब (C).
एक प्रोटोन पर आवेश = 1.6 × 10-19 कूलम्ब (C).
आवेश संरक्षण का नियम :- विद्युत आवेशों को न तो उत्पन्न किया जा सकता है और न ही विनाश किया जा सकता है| इसका सिर्फ एक पिंड से दुसरे पिंड तक स्थानांतरण किया जा सकता है|
एम्पियर :- यह विद्युत धारा का SI मात्रक है| जब एक कूलम्ब आवेश को किसी चालक से 1 सेकंड तक प्रवाहित किया जाता है तो इसे 1 एम्पियर धारा कहते है|
1A = 1C/1s;
धारा की छोटी मात्रा को मिलीएम्पियर में मापा जाता है |
(1 mA = 10-3 A) या मिलीएम्पियर (1 μA = 10-6 A)
विद्युत धारा परिपथ में बैट्री या सेल के धन टर्मिनल (+) से ऋण टर्मिनल (-) की ओर प्रवाहित होती है|
ऐमीटर :- परिपथों की विद्युत धारा मापने के लिए जिस यंत्र का उपयोग करते हैं उसे ऐमीटर कहते हैं। इसे सदैव जिस परिपथ में विद्युत धारा मापनी होती है, उसके श्रेणीक्रम में संयोजित करते हैं।
गैल्वेनोमीटर :- It गैल्वेनोमीटर एक युक्ति है जो किसी विद्युत परिपथ में उपस्थित धारा का पता लगाता है|
परंपरागत धारा :- परंपरागत रूप से, धन आवेशों की गति की दिशा को धारा की दिशा माना जाता है| परंपरागत धारा की दिशा, प्रवाहित होने वाले इलेक्ट्रोनों की दिशा का विपरीत होता है|
वैद्युतस्थैतिक विभव :- विद्युत स्थैतिक विभव अनंत से किसी विद्युत क्षेत्र के किसी बिंदु तक एक कूलाम्ब के इकाई धन आवेश को लाने में किए गए कार्य की मात्रा से परिभाषित किया जाता है| इसका S.I मात्रक वोल्ट है|
बिभावंतर :- इलेक्ट्रोंस तभी गति करते हैं जब किसी परिपथ या चालक के दोनों सिरों के बीच वैद्युत दाब के अंतर हो, वैद्युत दाब में इस अंतर को विभवान्तर कहते हैं|
इस विभवान्तर को बैटरी, एक या एक से अधिक सेलों को जोड़कर अथवा डायनेमो द्वारा उत्पन्न किया जाता है|
किसी सेल के भीतर होने वाली रासायनिक अभिक्रिया सेल के टर्मिनलों के बीच विभवांतर उत्पन्न कर देती है, ऐसा उस समय भी होता है जब सेल से कोई विद्युत धारा नहीं ली जाती।
जब सेल को किसी चालक परिपथ अवयव से संयोजित करते हैं तो विभवांतर उस चालक के आवेशों में गति ला देता है और विद्युत धारा उत्पन्न हो जाती है। किसी विद्युत परिपथ में विद्युत धारा बनाए रखने के लिए सेल अपनी संचित रासायनिक ऊर्जा खर्च करता है।
वोल्टमीटर :- वोल्टमीटर एक यन्त्र है जिससे किसी चालक के दो सिरों के बीच उत्पन्न विभवान्तर को मापा जाता है|
परिभाषा : विभवांतर की माप एक यंत्रा द्वारा की जाती है जिसे वोल्टमीटर कहते हैं।
वोल्ट विभवान्तर :- यदि किसी विद्युत धारावाही चालक के दो बिन्दुओं के बीच एक कूलॉम आवेश को एक दूसरे बिंदु तक ले जाने में 1 जूल कार्य किया जाता है तो उन दो बिन्दुओं के बीच विभवांतर 1 वोल्ट होता है।
1 वोल्ट=1 जून1कुलोम्ब
1 Volt=1 joule1 coulomb OR 1V=1 j2 C
वोल्टमीटर का संयोजन :- वोल्टमीटर को सदैव उन बिन्दुओं से पार्श्वक्रम या समांतर क्रम में संयोजित करते हैं जिनके बीच विभवांतर मापना होता है।
ऊपर दिए आकृति में जो की एक विद्युत परिपथ है में प्रतिरोधक R2 के दोनों सिरों के बीच उत्पन्न विभवान्तर मापना है तो इसके दो सिरों पर वोल्टमीटर को पार्श्व क्रम या समांतर क्रम में संयोजित कर देंगे| जैसा आकृति में दिखाया गया है, इस प्रकार के संयोजन को पार्श्व क्रम या समान्तर क्रम कहते हैं|
सेल या बैटरी :- यह एक युक्ति है जो किसी चालक के दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर को बनाये रखने में सहायता करता है|
सेल :- सेल एक युक्ति है जो अपने अन्दर संचित रासायनिक ऊर्जा का उपयोग कर किसी चालक के दो सिरों के बीच विभवान्तर उत्पन्न करता है, जिससे आवेशों के गति आती है और विद्युत धारा उत्पन्न करता है|
बैटरी :- दो या दो से अधिक सेलों के संयोजन से बने युक्ति को बैटरी कहते है|
ओम का नियम :- "किसी धातु के तार में प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा उस तार के सिरों के बीच विभवांतर के अनुक्रमानुपाती होती है, परंतु तार का ताप समान रहना चाहिए। इसे ओम का नियम कहते हैं।" इस नियम के अनुसार,
V ∝ I
Or V = RI
इस विभव-धारा ग्राफ को देखिए
हम देखते हैं कि विभवान्तर बढ़ने के साथ-साथ विद्युत धारा का मान भी बढ़ जाता है और विभवान्तर घटने से धारा भी घट जाता है अर्थात इनमें अनुक्रमानुपातिक संबंध है| इसे ही ओम का नियम कहते है|
प्रतिरोध :- प्रतिरोध चालक का वह गुण है जिससे वह अपने से होकर प्रवाहित होने वाले विद्युत धारा के प्रवाह का विरोध करता है| चालक के इस गुण को प्रतिरोध कहते हैं| ओम के नियम के उपयोग से:
प्रतिरोध = विभवान्तर/ धारा
प्रतिरोध का SI मात्रक Ohm(Ω) है|
V/I = R, जो कि एक स्थिरांक है|
ओम प्रतिरोध :- if यदि किसी चालक के दोनों सिरों के बीच विभवान्तर 1 V है तथा उससे 1 A विद्युत धारा प्रवाहित होती है, तब उस चालक का प्रतिरोध R, 1 Ω होता है|
जब परिपथ में से 1 ऐम्पियर की धारा प्रवाहित हो रही हो तथा विभवांतर एक वोल्ट का हो तो प्रतिरोध 1 ओम कहलाता है।
परिवर्ती प्रतिरोध :- स्रोत की वोल्टता में बिना कोई परिवर्तन किए परिपथ की विद्युत धारा को नियंत्रित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले अवयव को परिवर्ती प्रतिरोध कहते हैं
धारा नियंत्रक :- परिपथ में प्रतिरोध को परिवर्तित करने के लिए जिस युक्ति का उपयोग किया जाता है उसे धारा नियंत्रक कहते हैं।
वे कारक जिन पर एक चालक का प्रतिरोध निर्भर करता है :-
चालक की लम्बाई के समानुपाती होता है।
अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
तापमान के समानुपाती होता है।
पदार्थ की प्रकृति पर भी निर्भर करता है।
प्रतिरोधता :- 1 मीटर भुजा वाले घन के विपरीत फलकों में से धारा गुजरने पर जो प्रतिरोध उत्पन्न होता है वह प्रतिरोधता कहलाता है।
प्रतिरोधकता का SI मात्रक Ωm है।
प्रतिरोधकता चालक की लम्बाई व अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के साथ नहीं बदलती परन्तु तापमान के साथ परिवर्तित होती है।
धातुओं व मिश्रधातुओं का प्रतिरोधकता परिसर -10-8 -10-6 Ωm ।
मिश्र धातुओं की प्रतिरोधकता उनकी अवयवी धातुओं से अपेक्षाकृतः अधिक होती है।
मिश्र धातुओं का उच्च तापमान पर शीघ्र ही उपचयन (दहन) नहीं होता अतः इनका उपयोग तापन युक्तियों में होता है।
तांबा व ऐलूमिनियम का उपयोग विद्युत संरचरण के लिए किया जाता है क्योंकि उनकी प्रतिरोधकता कम होती है।
प्रतिरोधकों का श्रेणी क्रम संयोजन :-
श्रेणीक्रम संयोजन :- जब दो या तीन प्रतिरोधकों को एक सिरे से दूसरा सिरा मिलाकर जोड़ा जाता है तो संयोजन श्रेणीक्रम संयोजन कहलाता है।
श्रेणीक्रम में कुल प्रभावित प्रतिरोध :- RS = R₁ + R₂ + R₃
V = V₁ + V₂ + V₃
V₁ = IR₁ V₂ = IR₂ V₃ = IR₃
V₁ + V₂ + V₃ = IR₁ + IR₂ + IR₃
V = I(R₁ + R₂ + R₃) (V₁ + V₂ + V₃ = V)
IR = I(R₁ + R₂ + R₃)
R = R₁ + R₂ + R₃
अत : एकल तुल्य प्रतिरोध सबसे बड़े व्यक्तिगत प्रतिरोध से बड़ा है।
पार्श्वक्रम में संयोजित प्रतिरोधक :-
पार्श्वक्रम संयोजन :- जब तीन प्रतिरोधकों को एक साथ बिंदुओं X तथा Y के बीच संयोजित किया जाता है तो संयोजन पार्श्वक्रम संयोजन कहलाता है।
पार्श्वक्रम में प्रत्येक प्रतिरोधक के सिरों पर विभवांतर उपयोग किए गए विभवांतर के बराबर होता है। तथा कुल धारा प्रत्येक व्यष्टिगत प्रतिरोधक में से गुजरने वाली धाराओं के योग के बराबर होती है।
I = I₁ + I₂ + I₃
एकल तुल्य प्रतिरोध का व्युत्क्रम प्रथक।
प्रतिरोधों के व्युत्क्रमों के योग के बराबर होता है।
श्रेणीक्रम संयोजन की तुलना में पार्यक्रम संयोजन के लाभ :-
श्रेणीक्रम संयोजन में जब एक अवयव खराब हो जाता है तो परिपथ टूट जाता है तथा कोई भी अवयव काम नहीं करता।
अलग-अलग अवयवों में अलग-अलग धारा की जरूरत होती है , यह गुण श्रेणी क्रम में उपयुक्त नहीं होता है क्योंकि श्रेणीक्रम में धारा एक जैसी रहती है।
पार्श्वक्रम संयोजन में प्रतिरोध कम होता है।
विधुत धारा का तापीय प्रभाव :- यदि एक विद्युत् परिपथ विशुद्ध रूप से प्रतिरोधक है तो स्रोत की ऊर्जा पूर्ण रूप से ऊष्मा के रूप में क्षयित होती है, इसे विद्युत् धारा का तापीय प्रभाव कहते हैं।
ऊर्जा = शक्ति x समय
H = P × t
H = VIt। P = VI
H = I²Rt V = IR
H = ऊष्मा ऊर्जा
अत : उत्पन्न ऊर्जा ( ऊष्मा ) = I²Rt
जूल का विद्युत् धारा का तापन नियम इस नियम के अनुसार :-
किसी प्रतिरोध में तत्पन्न उष्मा विद्युत् धारा के वर्ग के समानुपाती होती है।
प्रतिरोध के समानुपाती होती है।
विद्युत धारा के प्रवाहित होने वाले समय के समानुपाती होती है।
तापन प्रभाव हीटर, प्रेस आदि में वांछनीय होता है परन्तु कम्प्यूटर, मोबाइल आदि में अवांछनीय होता है
विद्युत बल्ब में अधिकांश शक्ति ऊष्मा के रूप प्रकट होती है तथा कुछ भाग प्रकाश के रूप में उत्सर्जित होता है।
विद्युत बल्ब का तंतु टंगस्टन का बना होता है क्योंकि
यह उच्च तापमान पर उपचयित नहीं होता है ।
इसका गलनांक उच्च (3380° C) है ।
बल्बों में रासानिक दृष्टि से अक्रिय नाइट्रोजन तथा आर्गन गैस भरी जाती है जिससे तंतु की आयु में वृद्धि हो जाती है।
विधुत शक्ति :- कार्य करने की दर को शक्ति कहते हैं। ऊर्जा के उपभुक्त होने की दर को भी शक्ति कहते हैं। किसी विद्युत परिपथ में उपभुक्त अथवा क्षयित विद्युत ऊर्जा की दर प्राप्त होती है। इसे विद्युत शक्ति भी कहते हैं। शक्ति P को इस प्रकार व्यक्त करते हैं। P = VI
शक्ति का SI मात्रक = वाट है ।
1 वाट 1 वोल्ट × 1 ऐम्पियर
ऊर्जा का व्यावहारिक मात्रक = किलोवाट घंटा (Kwh)
1 kwh = 3.6 x 10⁶J
1 kwh = विद्युत ऊर्जा की एक यूनिट
NCERT SOLUTIONS
प्रश्न (पृष्ठ संख्या 222)
प्रश्न 1 विद्युत परिपथ का क्या अर्थ है?
उत्तर- किसी विद्युत् धारा के सतत् और बंद पथ को विद्युत् परिपथ कहते हैं
प्रश्न 2 विद्युत धारा के मात्रक की परिभाषा लिखिए।
उत्तर- विद्युत धारा का SI मात्रक ऐम्पियर है। यदि किसी चालक से प्रति सेकंड 1 कूलॉम आवेश प्रवाहित होता है, तो विद्युत धारा का मान 1 ऐम्पियर कहलाता है। अतः 1A=1C1S
प्रश्न 3 एक कूलाम आवेश की रचना करने वाले इलेक्ट्रान की संख्या परिकलित कीजिए।
उत्तर- हम जानते हैं कि एक इलेक्ट्रान का कुल आवेश = 1.6 × 10 - 19C, इसलिए
=11.610-19=6.251018
कुल आवेश 1इलेक्ट्रान का आवेश 1.6 × 10 - 19 = 6.25 × 1018
अतः, एक कूलाम आवेश की रचना करने वाले इलेक्ट्रान की संख्या 6 × 108 है।
प्रश्न (पृष्ठ संख्या 224)
प्रश्न 1 उस युक्ति का नाम लिखिए जो किसी चालक के सिरों पर विभवांतर बनाए रखने में सहायता करती है?
उत्तर- आवश्यक युक्ति सैल या सैलों से बनी बैटरी यह विभवांतर बनाए रखने में सहायता करती है।या बैटरी वह उपकरण है जो किसी चालक के सिरों पर विभवांतर बनाए रखने में सहायता करती है।
प्रश्न 2 यह कहने का क्या तात्पर्य है कि दो बिंदुओं के बीच विभवांतर 1V है?
उत्तर- जब हम कहते हैं दो बिंदुओं के बीच विभवांतर 1V है, तो इसका यह तात्पर्य है कि एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक 1 कूलॉम (1C) आवेश को ले जाने में 1 जूल (1J) कार्य करना पड़ेगा।
प्रश्न 3 6V बैटरी से गुजरने वाले हर एक कूलॉम आवेश को कितनी ऊर्जा दी जाती है?
उत्तर- दिया है Q = 1 कुलाम, तब v = 6 वोल्ट
V=WQW=VQ=61=6J
अतः 6V बेटरी से गुजरने वाले हर एक कुलाम आवेश को 6J ऊर्जा दी जाती है
प्रश्न (पृष्ठ संख्या 232)
प्रश्न 1 किसी चालक का प्रतिरोध किन कारकों पर निर्भर करता है?
उत्तर- एक चालक का प्रतिरोध निम्न कारकों पर निर्भर करता है
चालक की प्रकृति
चालक की लम्बाई
चालक के अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल
प्रश्न 2 समान पदार्थ के दो तारों में यदि एक पतला तथा दूसरा मोटा हो, तो इनमें से किसमें विद्युत धारा आसानी से प्रवाहित होगी जबकि उन्हें समान विद्युत स्रोत से संयोजित किया जाता है? क्यों?
उत्तर- हम जानते हैं कि किसी चालक तार का प्रतिरोध उसके अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है। अर्थात् R 1A चूँकि मोटे तार के अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल अधिक होता है। अतः मोटे तार का प्रतिरोध पतले तार के प्रतिरोध की अपेक्षा कम होगा, जिसके फलस्वरूप मोटे तार से विद्युत धारा आसानी से प्रवाहित होगी।
प्रश्न 3 मान लीजिए किसी वैद्युत अवयव के दो सिरों के बीच विभवांतर को उसके पूर्व के विभवांतर की तुलना में घटाकर आधा कर देने पर भी उसका प्रतिरोध नियत रहता है। तब उस अवयव से प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा में क्या परिवर्तन होगा?
उत्तर- हम जानते हैं कि नियत प्रतिरोध पर, किसी वैद्युत अवयव के दो सिरों के बीच विभवान्तर उसमें प्रवाहित होने वाली वैद्युत धारा के अनुक्रमानुपाती होता है। अर्थात Vα I
अतः विभवान्तर को घटाकर आधा कर देने पर, विद्युत धारा भी आधी हो जाएगी।
प्रश्न 4 विद्युत् टोस्टरों तथा विद्युत् इस्तरियों के तापन अवयव शुद्ध धातु के न बनाकर किसी मिश्रधातु के क्यों बनाए जाते हैं?
उत्तर- विद्युत् टोस्टरों तथा विद्युत् इस्तरियों के तापन अवयव शुद्ध धातु के न बनाकर एक मिश्रधातु के बनाए। जाते हैं। इसके निम्नलिखित कारण हैं
नाइक्रोम (Nichrome) मिश्रधातु (Ni + Cr + Mn + Fe) का प्रतिरोध अधिक होता है
इसका गलनांक अधिक होता है।
मिश्रित धातु उच्च तापमान पर आसानी से ऑक्सीकरण (या जला) नहीं करते हैं।
प्रश्न 5 निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तालिका 12.2 में दिए गए आँकड़ों के आधार पर दीजिए
आयरन (Fe) तथा मर्करी (Hg) में कौन अच्छा विद्युत चालक है?
कौन-सा पदार्थ सर्वश्रेष्ठ चालक है।
उत्तर-
हम जानते हैं कि अच्छे चालकों की प्रतिरोधकता कम होती है।
अतः आयरन (Fe), मर्करी (Hg) से एक अच्छा चालक है।
तालिका (12.2) के आधार पर सिल्वर (Ag) एक सर्वश्रेष्ठ चालक है, क्योंक तालिका में सबसे ऊपर स्थित है।
प्रश्न (पृष्ठ संख्या 237)
प्रश्न 1 किसी विद्युत परिपथ की व्यवस्था आरेख खींचिए जिसमें 2V के तीन सेलों की बैट्री, एक 5Ω प्रतिरोधक, एक 8Ω प्रतिरोधक, एक 12Ω प्रतिरोधक तथा एक प्लग कुंजी सभी श्रेणीक्रम में संयोजित हों।
उत्तर- विद्युत परिपथ का व्यवस्था आरेख निचे दिया गया है-
प्रश्न 2 प्रश्न 1 का परिपथ दुबारा खींचिए तथा इसमें प्रतिरोधकों से प्रवाहित विद्युत धारा को मापने के लिए ऐमीटर तथा 12Ω के प्रतिरोधक सिरों के बीच विभवांतर मापने के लिए वोल्टमीटर लगाइए। ऐमीटर तथा वोल्टमीटर के क्या पाठ्यांक होंगे?
उत्तर- प्रतिरोधक श्रेणीक्रम में सयोजित है अतः कुल प्रतिरोध = 5Ω + 8Ω + 12Ω = 25Ω
कुल विभवान्तर = 6V
ओम के नियम से, V=IR,6=I25I=625=0.24A
अब 12Ω के प्रतिरोध के लिए वव = विद्युत् धारा = 0.24A
अतः ओम के नियम से विभवान्तर V = 0.24 × 12V = 2.88V
अतः एमिटर का पठयाक 0.24A तथा वोल्ट्मीटर का पठयाक 2.88V है
प्रश्न (पृष्ठ संख्या 240)
प्रश्न 1
1Ω तथा 106Ω
1Ω,103Ω तथा 106Ω के प्रतिरोध पार्श्वक्रम में संयोजित किए जाते हैं तो इनके तुल्य प्रतिरोध के संबंध में आप क्या निर्णय करेंगे?
उत्तर-
इसमें भी कुल प्रतिरोध वह लगभग 12 या 12 से कम होगा क्योंकि पार्श्वक्रम में लगाए हुए प्रतिरोधों का कुल प्रतिरोध उन सबमें से सबसे छोटे प्रतिरोध से भी कम होता है।
प्रश्न 2 100Ω का एक विद्युत लैम्प, 50Ω का एक विद्युत टोस्टर तथा 5002 का एक जल फिल्टर 220V के विद्युत स्रोत से पाश्र्वक्रम में संयोजित है। उस विद्युत इस्तरी का प्रतिरोध क्या है, जिसे यदि समान स्रोत के साथ संयोजित कर दें, तो वह इतनी ही विद्युत धारा लेती है, जितनी तीनों युक्तियाँ लेती हैं? यह भी ज्ञात कीजिए कि इस विद्युत इस्तरी से कितनी विद्युत धारा प्रवाहित होती है?
उत्तर-
अतः विद्युत् इस्तरी का प्रतिरोध 31.25Ω है तथा इसमें 7.04 A विद्युत् धारा प्रवाहित होती है
प्रश्न 3 श्रेणीक्रम में संयोजित करने के स्थान पर वैद्युत युक्तियों को पाश्र्वक्रम में संयोजित करने के क्या लाभ हैं?
उत्तर- वैद्युत युक्तियों को पाश्र्वक्रम में संयोजित करने के निम्नलिखित लाभ हैं-
प्रत्येक युक्ति के लिए विभवांतर समान होगी तथा युक्तियाँ अपने प्रतिरोध के अनुसार धारा ग्रहण कर सकती हैं।
पार्श्वक्रम में प्रत्येक युक्ति के लिए अलग-अलग ऑन/ ऑफ स्विच लगा सकते हैं।
पाश्र्वक्रम में यदि किसी कारणवश कोई एक युक्ति खराब भी हो जाए तो अन्य युक्तियाँ प्रभावित नहीं होती। हैं। वे सुचारू रूप से कार्य करती रहेंगी।
पार्श्वक्रम में कुल प्रतिरोध का मान कम हो जाता है, जिसके कारण धारा का मान बढ़ जाता है।
प्रश्न 4 2Ω, 3Ω तथा 6Ω के तीन प्रतिरोधकों को किस प्रकार संयोजित करेंगे कि संयोजन का कुल प्रतिरोध
4Ω
1Ω हो?
उत्तर-
कुल प्रतिरोध 4Ω के लिए उपरोक्त तीन प्रतिरोधों को इस प्रकार जोड़ना चाहिए 3Ω को 6Ω को पार्श्व क्रम में जोड़ने पर
प्रतिरोध =363+6=2 अब इस कुल प्रतिरोध को 2Ω वाले प्रतिरोध के साथ श्रेणीक्रम में लगाने पर
कुल प्रतिरोध = 2Ω + 2Ω = 4Ω
12 का प्रतिरोध पाने के लिए 22, 32 तथा 692 को पावं क्रम में लगाना पड़ेगा। इससे कुल प्रतिरोध होगा
प्रश्न 5 4Ω,8Ω,12Ω तथा 24Ω प्रतिरोध की चार कुंडलियों को किस प्रकार संयोजित करें कि संयोजन से
अधिकतम
निम्नतम प्रतिरोध प्राप्त हो सके?
उत्तर-
प्रश्न (पृष्ठ संख्या 242)
प्रश्न 1 किसी विद्युत् हीटर की डोरी क्यों उत्तप्त नहीं होती जबकि उसका sतापन अवयव उत्तप्त हो जाता है?
उत्तर- विद्युत् हीटर की डोरी कॉपर के मोटे तार की बनी होती है, जिसका प्रतिरोध उसके अवयव की उपेक्षा बहुत कम होता है। इसलिए यदि इन दोनों में से विद्युत् धारा प्रवाहित हो तो अवयव को तापन ( H = I2RT) डोरी के तापन की अपेक्षा बहुत अधिक होगा, इस प्रकार अवयव अत्यधिक गर्म होकर उत्तप्त होता है परंतु डोरी उत्तप्त नहीं होती क्योंकि वह अधिक गर्म नहीं होती।
प्रश्न 2 एक घंटे में 50w विभवांतर से 96000 कूलॉम आवेश को स्थानांतरित करने में उत्पन्न ऊष्मा परिकलित कीजिए।
उत्तर-
प्रश्न 3 20Ω प्रतिरोध की कोई विद्युत इस्तरी 5A विद्युत धारा लेती है। 30s में उत्पन्न ऊष्मा परिकलित कीजिए।
उत्तर- जूल के नियम से विद्युत धरा (I) से उतपन होने वाली उष्मा H = VIt
जहाँ V = IR = 5A × 20Ω = 100V
I = 5A
और t = 30 सेकेण्ड
इसलिए, H = 100 × 5 × 30J = 1500J = 1.5 × 104J
प्रश्न (पृष्ठ संख्या 245)
प्रश्न 1 विद्युत् धारा द्वारा प्रदत्त ऊर्जा की दर का निर्धारण कैसे किया जाता है?
उत्तर- P = I2R विद्युत् धारा द्वारा प्रदत्त ऊर्जा की दर का निर्धारण विद्युतपथ के प्रतिरोध द्वारा किया जाता है।
प्रश्न 2 कोई विद्युत् मोटर 220V के विद्युत् स्रोत से 5.0A विद्युत्धारा लेता है। मोटर की शक्ति निर्धारित कीजिए तथा 2 घंटे में मोटर द्वारा उपभुक्त ऊर्जा परिकलित कीजिए।
उत्तर- I = 5 A, V = 220 V, 1 = 2h = 2 × 60 × 60 = 7200S
शक्ति P = IV = 220 × 5 = 1100W
2 घंटे में उपभुक्त ऊर्जा = 1100 W × 2h = 2200 Wh
= 2.2 KWh
अभ्यास प्रश्न (पृष्ठ संख्या 246-248)
प्रश्न 1 प्रतिरोध R के किसी तार के टुकड़े को पाँच बराबर भागों में काटा जाता है। इन टुकड़ों को फिर पार्श्वक्रम में संयोजित कर देते हैं। यदि संयोजन का तुल्य प्रतिरोध R’ है तो R/ R′ अनुपात का मान
क्या है-
125
15
5
25
उत्तर-
प्रश्न 2 निम्नलिखित में से कौन-सा पद विद्युत् परिपथ में विद्युत् शक्ति को निरूपित नहीं करता?
I2R
IR2
VI
V2R
उत्तर-
IR2
स्पस्टीकरण:
विद्युत् शक्ति
P = V = (IR)R = I2R
=VVR=V2R
केवल I2R विद्युत् परिपथ में विद्युत् शक्ति को निरूपित नहीं करता
प्रश्न 3 किसी विद्युत बल्ब का अनुमतांक 220V 100W है। जब इसे 110V पर प्रचालित करते हैं, तब इसके द्वारा उपभुक्त शक्ति कितनी होती है?
100w
75W
50w
25w
उत्तर-
25w
स्पस्टीकरण:
संकेत- [चूँकि अनुमतांक 220V, 100w है।
∴P=V2RR=V2p=220220100=484
जब बल्ब 110V पर प्रचालित करते है
p'=V'2R=110110484=25WJ
प्रश्न 4 दो चालक तार जिनके पदार्थ, लंबाई तथा व्यास समान हैं किसी विद्युत परिपथ में पहले श्रेणीक्रम में और फिर पार्श्वक्रम में संयोजित किए जाते हैं। श्रेणीक्रम तथा पार्श्वक्रम संयोजन में उत्पन्न ऊष्माओं का अनुपात क्या होगा?
1:2
2:1
1:4
4:1
उत्तर-
1:4
स्पस्टीकरण:
चालक के पदार्थ, लंबाई तथा व्यास समान हैं,
प्रश्न 5 किसी विद्युत परिपथ में दो बिंदुओं के बीच विभवांतर मापने के लिए वोल्टमीटर किस प्रकार संयोजित किया जाता है?
उत्तर- विभवांतर मापने के लिए वोल्टमीटर को दो बिंदुओं के बीच पाश्र्वक्रम में संयोजित किया जाता है।
प्रश्न 6 किसी ताँबे के तार का व्यास 0.5mm तथा प्रतिरोधकता 1.6 × 10−8Ωm है। 10Ω प्रतिरोध का प्रतिरोधक बनाने के लिए कितने लंबे तार की आवश्यकता होगी? यदि इससे दो गुने व्यास का तार लें, तो प्रतिरोध में क्या अंतर आएगा?
उत्तर-
प्रश्न 7 किसी प्रतिरोधक के सिरों के बीच विभवांतर V के विभिन्न मानों के लिए उससे प्रवाहित विद्युत धाराओं के संगत मान आगे दिए गए हैं।
V तथा I के बीच ग्राफ खींचकर इस प्रतिरोधक का प्रतिरोध ज्ञात कीजिए।
उत्तर-
R=VA-VBIA-IB=12v-6v3.5A-1.75A=6v1.75A=3.4
∴R=3.4
प्रश्न 8 किसी अज्ञात प्रतिरोध के प्रतिरोधक के सिरों से 12V की बैट्री को संयोजित करने पर परिपथ में 2.5mA विद्युत धारा प्रवाहित होती है। प्रतिरोधक का प्रतिरोध परिकलित कीजिए।
उत्तर- बैट्री की वोल्टता V = 12V
दिय गए परिपथ से प्रवाहित धारा (I) = 2.5mA = 2.5 × 10−3A
∴प्रतिरोधR=VI(ओम के नियम से)
=122.510-3=1210325=4800=48001000K=4.8K
प्रश्न 9 9V की किसी बैट्री को 0.2Ω, 0.3Ω, 0.4Ω, 0.5Ω तथा 12Ω के प्रतिरोधकों के साथ श्रेणीक्रम में संयोजित किया जाता है। 122 के प्रतिरोधक से कितनी विद्युत धारा प्रवाहित होगी?
उत्तर- प्रतिरोधकों को श्रेणीक्रम में जोड़ने पर, तुल्य प्रतिरोध
R = R1 + R3 + R4 + R5
R=0.2+0.3+0.4+0.5+12=13.4
ओम के नियम के अनुसार, V = IR
I=VR=913.4=0.67A
यहाँ, सभी प्रतिरोधक श्रेणीक्रम में लगे हुए हैं, इसलिए, विद्युत धारा का कोई विभाजन नहीं हो रहा है। अतः, 12Ω के प्रतिरोधक से भी समान विद्युत धारा 0.67 A ही प्रवाहित होगी।
प्रश्न 10 176Ω प्रतिरोध के कितने प्रतिरोधकों को पार्श्वक्रम में संयोजित करें कि 220V के विद्युत स्रोत से संयोजन से 5A विद्युत धारा प्रवाहित हो?
उत्तर-माना कि 176Ω प्रतिरोध वाले n प्रतिरोधकों को पार्श्वक्रम में संयोजित किए गए हैं।
अतः तुल्य प्रतिरोध (Rp) का मान होगा-
1Rp=1176+1176+ …n
1Rp=n1176Rp=176n …1
V = 220V, I = 5A
∴Rp=VI=2205=44
समीकरण (1) में Rp का मान प्रतिस्थापित करने पर हमे प्राप्त होता है
44=176nn=17644=4
अतः प्रतिरोधको की सख्या (n) = 4
प्रश्न 11 यह दर्शाइए कि आप 62 प्रतिरोध के तीन प्रतिरोधकों को किस प्रकार संयोजित करेंगे कि प्राप्त संयोजन का प्रतिरोध
9Ω
4Ω हो।
उत्तर-9Ω तुल्य प्रतिरोध प्राप्त करने के लिए, 60 के दो प्रतिरोधकों को पहले पार्श्वक्रम में जोड़ना होगा और फिर उसके तुल्य प्रतिरोध के साथ एक 60 के प्रतिरोध को श्रेणीक्रम में जोड़ना होगा। जैसा आकृति में दिया गया है।
पार्श्वक्रम में जोड़े गए दो प्रतिरोधों का तुल्य प्रतिरोध R12 निम्नलिखित प्रकार से परिकलित कर सकते हैं
1R12=1R1+1R2
1R12=16+16=26=13
R12=3
अब, R12 और 61 दोनों श्रेणीक्रम में हैं, इसलिए, तुल्य प्रतिरोध
R = R12 + 6Ω = 3Ω + 6Ω = 9
4Ω तुल्य प्रतिरोध प्राप्त करने के लिए, 6Ω के दो प्रतिरोधकों को पहले श्रेणीक्रम में जोड़ना होगा और फिर उसके तुल्य प्रतिरोध के साथ एक 6Ω के प्रतिरोध को पार्यक्रम में जोड़ना होगा। जैसा आकृति में दिया गया है।
श्रेणीक्रम में तुल्य प्रतिरोध
R12=R1+R2=6+6=12
अब R12 और 6Ω दोनों पार्शवकर्म में है इसलिए तुल्य प्रतिरोध
1R=1R12+16
1R=112+16=312=14
⇒ R = 4Ω
प्रश्न 12 220V की विद्युत लाइन पर उपयोग किए जाने वाले बहुत से बल्बों का अनुमतांक 10W है। यदि 220V लाइन से अनुमन अधिकतम विद्युतधारा 5A है तो इस लाइन के दो तारों के बीच कितने बल्ब पाश्र्वक्रम में संयोजित किए जा सकते हैं?
उत्तर-दिया है- प्रत्येक बल्ब की शक्ति P = 10W और वोल्टता V = 220V है।
अतः प्रत्येक बल्ब द्वारा उपयुक्त विधुत धारा I=PV
चुकी 220V लाइन से अनुमत अधिकतम विघुत धारा Imax = 5A
∴ पार्श्वकर्म में सयोजित बल्बों की सख्या
=ImaxI=5A122A=5221=110 बल्ब
प्रश्न 13 किसी विद्युत भट्टी की तप्त प्लेट दो प्रतिरोधक कुंडलियाँ A तथा B की बनी हैं, जिनमें प्रत्येक का प्रतिरोध 24Ω है तथा इन्हें पृथक-पृथक, श्रेणीक्रम में अथवा पाश्र्वक्रम में संयोजित करके उपयोग किया जाता है। यदि यह भट्टी 220V विद्युत स्रोत से संयोजित की जाती है, तो तीनों प्रकरणों में प्रवाहित विद्युत धाराएँ क्या हैं?
उत्तर- दिया है: विभवान्तर V = 220V और प्रत्येक कुंडली का प्रतिरोध R = 2410
जब कुंडलियों को पृथक-पृथक संयोजित किया जाता है तो विद्युत धारा
I=VR=22024=556=9.16A
श्रेणीक्रम में जोड़ने पर कुंडलियों का तुल्य प्रतिरोध
R=R1+R2=24+24=48
जब कुंडलियों को श्रेणीक्रम में संयोजित किया जाता है तो विद्युत धारा
I=VR=2248=5512=4.58A
प्रश्न 14 निम्नलिखित परिपथों में प्रत्येक में 2Ω प्रतिरोधक द्वारा उपभुक्त शक्तियों की तुलना कीजिए।
6V की बैट्री से संयोजित 1Ω तथा 2Ω श्रेणीक्रम संयोजन
4V बैट्री से संयोजित 12Ω तथा 2Ω का पार्श्वक्रम संयोजन
उत्तर-
बैट्री की वोल्टता V = 6V श्रेणीक्रम में 1Ω तथा 2Ω के संयोजन से प्राप्त कुल प्रतिरोध
R = R1 + R2 = 1 + 2 = 3Ω
परिपथ से प्रवाहित धारा IS=VR=632A
चूँकि श्रेणीक्रम में संयोजित सभी प्रतिरोधों से समान विद्युत धारा प्रवाहित होती है।
इसलिए. 2Ω के प्रतिरोधक द्वारा उपभुक्त शक्ति P1 = (I1)2R = (2)2 × 2 = 8W
V = 4V, R1 = 12Ω
R2 = 2Ω
∴ पार्श्वक्रम में अलग-अलग प्रतिरोधों से प्रवाहित धारा भिन्न-भिन्न परंतु सिरों के बीच विभवांतर समान रहती है।
∴ 2Ω के प्रतिरोध द्वारा उपभुक्त शक्ति P2=V2R=4V22=8W
अतः दोनों प्रकरणों में 2Ω प्रतिरोधक समान विद्युत शक्ति उपभुक्त करेगी P1 = P2
प्रश्न 15 दो विद्युत लैम्प जिनमें से एक का अनुमतांक 100W, 220V तथा दूसरे का 60W, 220V है, विद्युत मेन्स के साथ पार्श्वक्रम में संयोजित हैं। यदि विद्युत आपूर्ति की वोल्टता 220V है, तो विद्युत मेन्स से कितनी धारा ली जाती है?
उत्तर- हले लैंप के लिए: विद्युत शक्ति P1 = 100W और विभवान्तर V = 220V
इसलिए, I1=P1V=100220=0.455A
दूसरे लैंप के लिए: विद्युत शक्ति P2 = 60w और विभवान्तर V = 220V
इसलिए, I2=P2V=601220=0.273A
अतः, विद्युत मेंस से ली गई कुल धारा। = 11 + 12 = 0.455 + 0.273 = 0.728A
प्रश्न 16 किसमें अधिक विद्युत ऊर्जा उपभुक्त होती हैं- 250W का टी.वी. सेट जो एक घंटे तक चलाया जाता है अथवा 120w का विद्युत हीटर जो 10 मिनट के लिए चलाया जाता है?
उत्तर- TV सेट के लिएदिया है-
TV. सेट की शक्ति (P) = 250W
समय (t1) = 1 घंटा
∴ T.V. सेट द्वारा उपभुक्त ऊर्जा E1 = P1 × t1 = 250 × 1 = 250 wh
इसी प्रकार, विद्युत हीटर के लिए- P2 = 120w, t2 = 10 मिनट =1060h.
∴E2=P2t2=1201060=20wh
E1>E2
इसलिए T.V. सेट द्वारा अधिक विद्युत ऊर्जा उपभुक्त होती है।
प्रश्न 17 18Ω प्रतिरोध का कोई विद्युत हीटर विद्युत मेन्स से 2 घंटे तक 15A विद्युत धारा लेता है। हीटर में उत्पन्न ऊष्मा की दर परिकलित कीजिए।
उत्तर- विद्युत हीटर द्वारा उपभुक्त ऊर्जा H = I2Pt
जहाँ, विदयुत धारा 1 = 15 A, प्रतिरोध R = 80 और समय t = 2 घंटे
हीटर में उत्पन्न ऊष्मा की दर,
H=I2Rtt=I2R=1528=1800J/s
प्रश्न 18 निम्नलिखित को स्पष्ट कीजिए-
विद्युत लैम्पों के तंतुओं के निर्माण में प्रायः एकमात्र टंगस्टन का ही उपयोग क्यों किया जाता है?
विद्युत तापन युक्तियों जैसे ब्रेड-टोस्टर तथा विद्युत इस्तरी के चालक शुद्ध धातुओं के स्थान पर मिश्र धातुओं (मिश्रातुओं) के क्यों बनाए जाते हैं?
घरेलू विद्युत परिपथों में श्रेणीक्रम संयोजन का उपयोग क्यों नहीं किया जाता है?
किसी तार का प्रतिरोध उसकी अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल में परिवर्तन के साथ किस प्रकार परिवर्तित होता है?
विद्युत संचारण के लिए प्राय: कॉपर तथा ऐलुमिनियम के तारों का उपयोग क्यों किया जाता है?
उत्तर-
विद्युत लैम्पों के तंतुओं के निर्माण में प्रायः एकमात्र धातु टंगस्टन का उपयोग किया जाता है, क्योंकि यह उच्च गलनांक (3380°C) की एक प्रबल धातु है, जो अत्यंत तप्त होकर प्रकाश उत्पन्न करते हैं, परंतु पिघलते नहीं।
विद्युत तापन युक्तियों जैसे ब्रेड-टोस्टर तथा विद्युत इस्तरी के चालक शुद्ध धातुओं के स्थान पर मिश्रातुओं (मिश्र धातुओं) के निम्न कारणों से बनाए जाते हैं।
मिश्र धातुओं की प्रतिरोधकता शुद्ध धातुओं की तुलना में अधिक होती है।
उच्च ताप पर मिश्रातुओं का उपचयन (ऑक्सीकरण) शीघ्र नहीं होता है।
ताप वृद्धि के साथ इनकी प्रतिरोधकता में नगण्य परिवर्तन होता है।
घरेलू विद्युत परिपथों में श्रेणीक्रम संयोजन का उपयोग निम्नलिखित कारणों से नहीं किया जाता है
विभिन्न उपकरणों (युक्तियों) के साथ अलग-अलग स्विच ऑन/ ऑफ के लिए नहीं लगा सकते। एक
उपकरण खराब होने पर दूसरा भी कार्य करना बंद कर देता है।
श्रेणीक्रम संयोजन में सभी युक्तियों या उपकरणों से समान धारा प्रवाहित होती है, जिसकी हमें आवश्यकता नहीं है।
परिपथ का कुल प्रतिरोध (R = R1 + R2 + …….) अधिक होने के कारण धारा का मान अत्यंत कम हो जाता है।
किसी तार का प्रतिरोध उसकी अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
i.e R1A
जैसे-जैसे तार की मोटाई बढ़ेगी (अर्थात् तार का व्यास बढ़ेगा) अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल भी बढ़ेगा और तार के प्रतिरोध का मान कम हो जाएगा।
विद्युत संचारण के लिए प्राय: कॉपर तथा ऐलुमिनियम के तारों का उपयोग करते हैं क्योंकि
ये विद्युत के बहुत अच्छे चालक हैं।
इनकी प्रतिरोधकता बहुत कम है, जिसके कारण तार जल्द गर्म नहीं होते हैं।
इनसे सुगमतापूर्वक तार बनाए जा सकते हैं।