चुम्बक के ध्रुव :-
उत्तर दिशा की ओर संकेत करने वाले सिरे को उत्तरोमुखी ध्रुव अथवा उत्तर ध्रुव कहते हैं।
दूसरा सिरा जो दक्षिण दिशा की ओर संकेत करता है उसे दक्षिणोमुखी ध्रुव अथवा दक्षिण ध्रुव कहते हैं।
चुम्बकीय क्षेत्र :- एक मैगनेट के चारों के क्षेत्र जिसमें चुम्बक का पता लगाया जा सकता है, चुम्बकीय क्षेत्र कहलाता है|
चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ :- चुम्बक के चारों ओर बहुत सी रेखाएँ बनती हैं, जो चुम्बक के उतारी ध्रुव से निकल कर दक्षिणी ध्रुव में प्रवेश करती प्रतीत होती हैं, इन रेखाओं को चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ कहते हैं|
चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं की विशेषताएँ :-
चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ उत्तरी ध्रुव से निकलकर दक्षिणी ध्रुव में समाहित हो जाती है|
चुम्बक के अंदर, चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा इसके दक्षिणी ध्रुव से उत्तरी ध्रुव की ओर होता है|
चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ बंद वक्र होती हैं|
जहाँ चुम्बकीय क्षेत्र रेखाए घनी होती हैं वहाँ चुम्बकीय क्षेत्र मजबूत होता है|
दो चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ कभी एक दुसरे को प्रतिच्छेद नहीं करती हैं|
धारावाही चालक के चारो ओर चुम्बकीय क्षेत्र :-
एक धातु चालक से होकर गुजरने वाली विद्युत धारा इसके चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र बनाता है|
जब एक धारावाही चालक को दिक्सूचक सुई के पास और उसके सुई के समांतर ले जाते है तो विद्युत धारा की बहाव की दिशा दिकसुचक के विचलन की दिशा को उत्क्रमित कर देता है जो कि विपरीत दिशा में होता है|
यदि धारा में वृद्धि की जाती है तो दिक्सूचक के विचलन में भी वृद्धि होती हैं
जैसे जैसे चालन में धारा की वृद्धि होती है वैसे वैसे दिए गए बिंदु पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र का परिमाण भी बढ़ता है|
जब हम एक कंपास (दिक्सूचक) को धारावाही चालक से दूर ले जाते हैं तो सुई का विचलन कम हो जाता है|
तार में प्रवाहित विद्युत धारा के परिमाण में वृद्धि होती है तो किसी दिए गए बिंदु पर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र के परिमाण में भी वृद्धि हो जाती है।
किसी चालक से प्रवाहित की गई विद्युत धरा के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र चालक से दूर जाने पर घटता है।
जैसे-जैसे विद्युत धरावाही सीधे चालक तार से दूर हटते जाते हैं, उसके चारों ओर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र को निरूपित करने वाले संकेंद्री वृत्तों का साइज़ बड़ा हो जाता है।
दक्षिण हस्त अंगुष्ठ नियम :-
कल्पना कीजिए कि आप अपने दाहिने हाथ में विद्युत धरावाही चालक को इस प्रकार पकड़े हुए हैं कि आपका अँगूठा विद्युत धरा की दिशा की ओर संकेत करता है, तो आपकी अँगुलियाँ चालक के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाओं की दिशा में लिपटी होंगी| इस नियम को दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम कहते हैं|
इस नियम को मैक्सवेल का कॉर्कस्क्रू नियम भी कहते हैं|
विद्युत धरावाही वृत्ताकार पाश के कारण चुंबकीय क्षेत्र :- किसी विद्युत धरावाही चालक के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र उससे दूरी के व्युत्क्रम पर निर्भर करता है। इसी प्रकार किसी विद्युत धरावाही पाश के प्रत्येक बिंदु पर उसके चारों ओर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र को निरूपित करने वाले संकेंद्री वृत्तों का साइज़ तार से दूर जाने पर निरंतर बड़ा होता जाता है।
विद्युत धरावाही वृत्ताकार पाश के कारण चुंबकीय क्षेत्र का गुण :-
वृत्ताकार पाश के केंद्र पर इन बृहत् वृत्तों के चाप सरल रेखाओं जैसे प्रतीत होने लगते हैं।
विद्युत धरावाही तार के प्रत्येक बिंदु से उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ पाश के केंद्र पर सरल रेखा जैसी प्रतीत होने लगती हैं।
पाश के भीतर सभी चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ एक ही दिशा में होती हैं
किसी विद्युत धरावाही तार के कारण किसी दिए गए बिंदु पर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र प्रवाहित विद्युत धरा पर अनुलोमत निर्भर करता है।
यदि हमारे पास n फेरों की कोई कुंडली हो तो उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र परिमाण में एकल फेरों द्वारा उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र की तुलना में n गुना अधिक प्रबल होगा। इसका कारण यह है कि प्रत्येक फेरों में विद्युत धारा के प्रवाह की दिशा समान है, अतः व्यष्टिगत फेरों के चुंबकीय क्षेत्र संयोजित हो जाते हैं।
परिनालिका :- पास-पास लिपटे विद्युतरोधी ताँबे के तार की बेलन की आकृति की अनेक फेरों वाली कुंडली को परिनालिका कहते हैं।
परिनालिका में प्रवाहित विद्युत धारा के कारण चुम्बकीय क्षेत्र :- जब विद्युत धारा किसी परिनालिका से होकर गुजरती है| तो इसका एक सिरा चुम्बक के उतरी ध्रुव की तरह व्यवहार करता है जबकि दूसरा सिरा दक्षिणी ध्रुव की तरह व्यवहार करता है|
परिनालिका के भीतर और उसके चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाओं का गुण :-
परिनालिका के भीतर चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ समांतर सरल रेखाओं की भाँति होती हैं।
यह निर्दिष्ट करता है कि किसी परिनालिका के भीतर सभी बिंदुओं पर चुंबकीय क्षेत्र समान होता है। अर्थात परिनालिका के भीतर एकसमान चुंबकीय क्षेत्र होता है।
परिनालिका के भीतर चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ समांतर सरल रेखाओं की भाँति होती हैं। परिनालिका के चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं के इस गुण का उपयोग विद्युत चुम्बक बनाने में किया जाता है|
परिनालिका के भीतर एक प्रबल चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है|
विद्युत चुम्बक :- परिनालिका के भीतर उत्पन्न प्रबल चुंबकीय क्षेत्र का उपयोग किसी चुंबकीय पदार्थ, जैसे नर्म लोहे, को परिनालिका के भीतर रखकर चुंबक बनाने में किया जाता है। इस प्रकार बने चुंबक को विद्युत चुंबक कहते हैं।
विद्युत चुंबक का गुण :-
1. समान्यत: इसके द्वारा उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र अधिक प्रबल होता है|
2. चुम्बकीय क्षेत्र की ताकत को परिनालिका में फेरों की संख्या और विद्युत धारा जैसे नियंत्रण करने वाली विभिन्न कारकों के द्वारा नियंत्रित की जा सकती है|
3. परिनालिका से उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र का ध्रुवत्व प्रवाहित विद्युत की दिशा में परिवर्तन कर उत्क्रमित किया जा सकता है|
विद्युत चुंबक और स्थायी चुंबक में अंतर :-
किसी चुम्बकीय क्षेत्र में धारावाही चालक पर लगने वाला बल :-
एक प्रबल नाल चुंबक इस प्रकार से व्यवस्थित कीजिए कि छड़ नाल चुंबक के दो ध्रुवों के बीच में हो तथा चुंबकीय क्षेत्रा की दिशा उपरिमुखी हो। ऐसा करने के लिए नाल चुंबक का उत्तर ध्रुव ऐलुमिनियम की छड़ के ऊर्ध्वाधरत नीचे हो एवं दक्षिण ध्रुव ऊर्ध्वाधरत ऊपर हो जब विद्युत धारा एल्युमीनियम छड के सिरा B से सिरा A तक होकर गुजरता है तो ऐसा देखा जाता है कि छड विस्थापित होता है| ऐसा भी देखा जाता है कि जब धारा की दिशा को परिवर्तित किया जाता है तो छड की विस्थापन की दिशा भी बदल (उत्क्रमित हो) जाती है|
निष्कर्ष :-
उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र इस चालक के निकट रखे किसी चुंबक पर कोई बल आरोपित करता है।
चुंबकीय क्षेत्र में रखने पर ऐलुमिनियम की विद्युत धरावाही छड़ पर एक बल आरोपित होता है।
चालक में प्रवाहित विद्युत धरा की दिशा उत्क्रमित करने पर बल की दिशा भी उत्क्रमित हो जाती है।
विद्युत धरावाही छड़ पर आरोपित बल की दिशा उत्क्रमित हो जाती है। इससे यह प्रदर्शित होता है |
चालक पर आरोपित बल की दिशा विद्युत धारा की दिशा और चुंबकीय क्षेत्र की दिशा दोनों पर निर्भर करती है।
चालक पर बल :- चालक पर लगने वाला बल निम्नलिखित दो बातों पर निर्भर करता है :
धारा की दिशा और
चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा पर|
फ्लेमिंग का वामहस्त नियम :- इस नियम के अनुसार, अपने बाएँ हाथ की तर्जनी, मध्यमा तथा अँगूठे को इस प्रकार फैलाइए कि ये तीनों एक-दूसरे के परस्पर लंबवत हों| यदि तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा और मध्यमा चालक में प्रवाहित विद्युत धारा की दिशा की ओर संकेत करती है तो अँगूठा चालक की गति की दिशा अथवा चालक पर आरोपित बल की दिशा की ओर संकेत करेगा। इसी नियम को फ्लेमिंग का वामहस्त नियम कहते है|
इसी नियम के आधार पर विद्युत मोटर कार्य करता है :- विद्युत मोटर, विद्युत जनित्र, ध्वनि विस्तारक यंत्र, माइक्रोप़ फोन तथा विद्युत मापक यंत्र कुछ ऐसी युक्तियाँ हैं जिनमें विद्युत धरावाही चालक तथा चुंबकीय क्षेत्रों का उपयोग होता है।
MRI - इसका पूरा नाम चुम्बकीय अनुनाद प्रतिबिम्बन है| यह एक विशेष तकनीक है जिससे शरीर के भीतर चुंबकीय क्षेत्र, शरीर के विभिन्न भागों के प्रतिबिंब प्राप्त करने का आधार बनता है| इन प्रतिबिंबों का विश्लेषण कर बिमारियों का निदान किया जाता है|
मानव शरीर के दो भाग जहाँ चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होते है :-
मानव मस्तिष्क
मानव ह्रदय
विद्युत मोटर :- विद्युत मोटर एक घूर्णन युक्ति है जिसमें विद्युत ऊर्जा का यांत्रिक ऊर्जा में रूपांतरण होता है| इस युक्ति का उपयोग विद्युत पंखे, रेफ्रीजिरेटरों, विद्युत मिक्सी, वाशिंग मशीन, कंप्यूटर, MP 3 प्लेयर आदि में किया जाता है|
विद्युत मोटर का सिद्धांत :- विद्युत मोटर का कार्य करने का सिद्धांत विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव पर आधारित है| चुंबकीय क्षेत्र में लौह-क्रोड़ पर लिपटी कुंडली से जब विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो वह एक बल का अनुभव करती है| जिससे मोटर का आर्मेचर चुंबकीय क्षेत्र में घूमने लगता है| कुंडली के घूमने की दिशा फ्लेमिंग के वामहस्त नियम के अनुसार होता है| यही विद्युत मोटर का सिद्धांत हैं|
विद्युत मोटर में विभक्त वलय की भूमिका :- विद्युत मोटर में विभक्त वलय दिक्-परिवर्तक का कार्य करता है| दिक्-परिवर्तक एक युक्ति है जो परिपथ में विद्युत-धारा के प्रवाह को उत्क्रमित कर देता है|
दिक्परिवर्तक :- वह युक्ति जो परिपथ में विद्युत धरा के प्रवाह को उत्क्रमित कर देती है, उसे दिकपरिवर्तक कहते हैं।
व्यावसायिक मोटरों के गुण :- व्यावसायिक मोटर एक शक्तिशाली मोटर होता है| इसके निम्न गुणों के कारण यह शक्तिशाली होता है|
स्थायी चुंबकों के स्थान पर विद्युत चुंबक प्रयोग किए जाते हैं,
विद्युत धरावाही कुंडली में फेरों संख्या अत्यधिक होती है तथा
कुंडली नर्म लौह-क्रोड पर लपेटी जाती है। वह नर्म लौह-क्रोड जिस पर कुंडली को लपेटा जाता है तथा कुंडली दोनों मिलकर आर्मेचर कहलाते हैं। इससे मोटर की शक्ति में वृद्धि हो जाती है।
वैद्युतचुंबकीय प्रेरण :- वह प्रक्रम जिसके द्वारा किसी चालक के परिवर्ती चुंबकीय क्षेत्र के कारण अन्य चालक में विद्युत धारा प्रेरित होती है, वैद्युतचुंबकीय प्रेरण कहलाता है|
वैद्युतचुंबकीय प्रेरण की खोज माइकल फैराडे ने किया था| फैराडे की इस खोज ने कि ‘किसी गतिशील चुंबक का उपयोग किस प्रकार विद्युत धारा उत्पन्न करने के लिए किया जा सकता है’|
चुंबक को कुंडली की ओर ले जाने पर कुंडली के परिपथ में विद्युत धरा उत्पन्न होती है, जिसे गैल्वेनोमीटर की सुई के विक्षेप द्वारा इंगित किया जाता है। कुंडली के सापेक्ष चुंबक की गति एक प्रेरित विभवांतर उत्पन्न करती है, जिसके कारण परिपथ में प्रेरित विद्युत धारा प्रवाहित होती है।
गैल्वानोमीटर :- गैल्वनोमीटर एक ऐसा उपकरण है जो किसी परिपथ में विद्युत धारा की उपस्थिति संसूचित करता है।
यदि इससे प्रवाहित विद्युत धारा शून्य है तो इसका संकेतक शून्य पर रहता है। यह अपने शून्य चिन्ह के या तो बाई ओर अथवा दाईं ओर विक्षेपित हो सकता है, यह विक्षेप विद्युत धरा की दिशा पर निर्भर करता है।
किसी कुंडली में विद्युत धारा प्रेरित करने के विभिन्न तरीके :- किसी कुंडली में विद्युत धारा प्रेरित करने के दो तरीके हैं
कुन्डली को किसी चुम्बकीय क्षेत्र में गति कराकर।
कुन्डली के चारों ओर के चुम्बकीय क्षेत्र में परिवर्तन कराकर।
कुन्डली को किसी चुम्बकीय क्षेत्र में गति कराकर प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न करना अधिक सुविधाजनक हैं।
फ्लेमिंग का दक्षिण-हस्त नियम :-
इस नियम के अनुसार, अपने दाएँ हाथ की तर्जनी, मध्यमा तथा अँगूठे को इस प्रकार फैलाइए कि ये तीनों एक-दूसरे के परस्पर लंबवत हों| यदि तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा और मध्यमा चालक में प्रवाहित विद्युत धारा की दिशा की ओर संकेत करती है तो अँगूठा चालक की गति की दिशा अथवा चालक पर आरोपित बल की दिशा की ओर संकेत करेगा। इसी नियम को फ्लेमिंग का दक्षिण-हस्त नियम कहते है|
विद्युत जनित्र :-
विद्युत जनित्र का सिद्धांत :- विद्युत जनित्र में यांत्रिक ऊर्जा का उपयोग चुंबकीय क्षेत्र में रखे किसी चालक को घूर्णी गति प्रदान करने में किया जाता है जिसके फलस्वरूप विद्युत धारा उत्पन्न होती है।
विद्युत जनित्र में एक घूर्णी आयताकार कुंडली ABCD होती है जिसे किसी स्थायी चुंबक के दो ध्रुवों के बीच रखा जाता है| इस कुंडली के दो सिरे दो वलयों R1 तथा R2 से संयोजित होते हैं। दो स्थिर चालक ब्रुशों B1 तथा B2 को पृथक-पृथक रूप से क्रमशः वलयों R1 तथा R2 पर दबाकर रखा जाता है। दोनों वलय R1 तथा R2 भीतर से धुरी होते हैं। चुंबकीय क्षेत्र के भीतर स्थित कुंडली को घूर्णन गति देने के लिए इसकी धुरी को यांत्रिक रूप से बाहर से घुमाया जा सकता है। स्थायी चुम्बक द्वारा उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र में, गति करती है तो कुंडली चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं को काटती है| जब कुंडली ABCD को दक्षिणावर्त घुमाया जाता है फ्लेमिंग के दक्षिण-हस्त नियम लागु करने पर इन भुजाओं में AB तथा CD दिशाओं के अनुदिश प्रेरित विद्युत धारा प्रवाहित होने लगती है|
प्रत्यावर्ती धारा :- ऐसी विद्युत धरा जो समान काल-अंतरालों के पश्चात अपनी दिशा में परिवर्तन कर लेती है, उसे प्रत्यावर्ती धरा (A.C) कहते हैं। विद्युत उत्पन्न करने की इस युक्ति को प्रत्यावर्ती विद्युत धरा जनित्र (ac जनित्र) कहते हैं।
दिष्ट धारा :- ऐसी विद्युत धारा जिसका प्रवाह एक ही दिशा में होती है दिष्ट धारा (D.C) कहते है|
प्रत्यावर्ती धारा और दिष्टधारा में अंतर :-
प्रत्यावर्ती धारा (a.c) :-
यह एक निश्चित समय के अंतराल पर अपनी दिशा बदलती रहती है।
इसे विद्युत जनित्र द्वारा उत्पन्न किया जाता है।
दिष्टधारा (d.c) :-
यह सदैव एक ही दिशा में प्रवाहित होती है।
इसे सेल या बैटरी द्वारा उत्पन्न किया जाता है।
दिष्टधारा (d.c) :- सेल या बैटरी से उत्पन्न होता है |
प्रत्यावर्ती धारा (a.c) :- विद्युत जनित्र
प्रत्यावर्ती धारा का लाभ :- प्रत्यवर्ती धारा का लाभ यह है कि विद्युत शक्ति को सुदूर स्थानों तक बिना अधिक ऊर्जा क्षय के प्रेषित किया जा सकता है।
भारत में प्रत्यावर्ती धारा की आवृति :-
(i) भारत में प्रत्यावर्ती धारा की आवृति 50 हाटर्ज है|
(ii) भारत में उत्पादित प्रत्यावर्ती विद्युत धारा 1 /100 s पश्चात् अपनी दिशा उत्क्रमित करती है|
भुसम्पर्क तार :- घरेलु विद्युत परिपथ में विद्युन्मय तार और उदासीन तार के अलावा एक अन्य तार होता है, जिस पर हरा विद्युतरोधन होता है। इसे भू-संपर्क तार कहते हैं|
घरेलु परिपथ में भू-संपर्क तार लगाने के फायदे :- भूसंपर्क तार एक सुरक्षा उपाय है जो यह सुनिश्चित करता है कि कोई उपकरण के धात्विक आवरण में विद्युत धारा आ जाता है तो उसका उपयोग करने वाला व्यक्ति को गंभिर क्षटका न लगे। इस तार को घरेलु परिपथ के अलावा इसका एक और छोर भूमि में गहराई में दबी धातु की प्लेट से संयोजित किया जाता हैं।
NCERT SOLUTIONS
प्रश्न (पृष्ठ संख्या 250)
प्रश्न 1 चुंबक के निकट लाने पर दिक्सूचक की सुई विक्षेपित क्यों हो जाती है?
उत्तर- दिक्सूचक की सूई एक छोटा छड़ चुंबक होती है जिस के दोनों सिरे उत्तर और दक्षिण दिशाओं की ओर संकेत करते हैं। जब एक छड़ चुम्बक दिक्सूचक के समीप लाया जाता है तो दिक्सूचक सुई विक्षेपित होती है। चुम्बक का चुंबकीय क्षेत्र दिक्सूचक के उत्तरी व दक्षिणी ध्रुवों पर बराबर व विपरीत बल लगता है। इसीलिए दिक्सूचक की सूई विक्षेपित हो जाती है।
प्रश्न (पृष्ठ संख्या 235)
प्रश्न 1 किसी छड़ चुंबक के चारों ओर चुंबकीय रेखाएं खींचिए।
उत्तर-
प्रश्न 2 चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के गुणों की सूची बनाइए।
उत्तर-चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं के निम्नलिखित गुण हैं-
चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ उत्तरी ध्रुव से निकलकर दक्षिणी ध्रुव में समाहित हो जाती है।
चुम्बक के अंदर, चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा इसके दक्षिणी ध्रुव से उत्तरी ध्रुव की ओर होता है।
चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ बंद वक्र होती हैं।
जहाँ चुम्बकीय क्षेत्र रेखाए घनी होती हैं वहाँ चुम्बकीय क्षेत्र मजबूत होता है।
दो चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ कभी एक दुसरे को प्रतिच्छेद नहीं करती हैं।
प्रश्न 3 दो चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ एक-दूसरे को प्रतिच्छेद क्यों नहीं करतीं?
उत्तर- यदि दो चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ एक-दूसरे को प्रतिच्छेद करेंगी तब उस बिंदु पर दिक्सूची को रखने पर उसकी सूई दो दिशाओं की ओर संकेत करेगी। चूंकि किसी एक बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र की दो दिशाएँ असंभव होती हैं। अत: क्षेत्र रेखाएँ प्रतिच्छेद नहीं कर सकतीं।
प्रश्न (पृष्ठ संख्या 256-257)
प्रश्न 1 मेज़ के तल में पड़े तार के वृत्ताकार पाश पर विचार कीजिए। मान लीजिए इस पाश में दक्षिण वर्त विद्युत् धारा प्रवाहित हो रही है। दक्षिण हस्त अंगुष्ठ नियम को लागू करके पाश के भीतर तथा बाहर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा ज्ञात कीजिए।
उत्तर- जब मेज़ के तल पर तार का वृत्ताकार पाश पड़ा हो तो पाश के अंतर चुंबकीय क्षेत्र तल के लंबवत् ऊपर से नीचे की तरफ होगा।
पारा के बाहर चुंबकीय क्षेत्र लंबवत् नीचे से ऊपर की ओर होगा।
प्रश्न 2 किसी दिए गए क्षेत्र में चुंबकीय क्षेत्र एकसमान है। इसे निरूपित करने के लिए आरेख खींचिए।
उत्तर- जब किसी क्षेत्र में चुंबकीय क्षेत्र एकसमान हो तो रेखायें एक-दुसरे के समान्तर, समान दुरी पर और समान लंबाई की होती हैं
प्रश्न 3 सही विकल्प चुनिए-
किसी विद्युत धारावाही सीधी लंबी परिनालिका के भीतर चुंबकीय क्षेत्र-
शून्य होता है।
इसके सिरे की ओर जाने पर घटता है।
इसके सिरे की ओर जाने पर बढ़ता है।
सभी बिंदुओं पर समान होता है।
उत्तर-
सभी बिंदुओं पर समान होता है।
स्पष्टीकरण-
प्रश्न (पृष्ठ संख्या 259)
प्रश्न 1 किसी प्रोटॉन का निम्नलिखित में से कौन-सा गुण किसी चुंबकीय क्षेत्र में मुक्त गति करते समय परिवर्तित हो जाता है? (यहाँ एक से अधिक सही उत्तर हो सकते हैं।)
द्रव्यमान
चाल
वेग
संवेग
उत्तर-
वेग
संवेग
स्पष्टीकरण-
किसी भी कण का द्रव्यमान सदैव स्थिर रहता है। चुंबकीय क्षेत्र में कण की चाल समान रहती है परन्तु दिशा बदलने के कारण उसका वेग बदलता रहता है। संवेग, वेग पर ही निर्भर करता है इसलिए यह भी बदलता रहता है।
प्रश्न 2 क्रियाकलाप 13.7 में हमारे विचार से छड़ AB का विस्थापन किस प्रकार प्रभावित होगा, यदि
छड़ AB में प्रवाहित विद्युत् धारा में वृद्धि हो जाए
अधिक प्रबल नाले चुंबक प्रयोग किया जाए
छड़ AB की लंबाई में वृद्धि कर दी जाए
उत्तर-
जब छड़ AB में प्रवाहित विद्युत् धारा में वृद्धि हो जाए तब चालक पर लगाया गया बल बढ़ जाएगा इसलिए छड़ का विस्थापन बढ़ जाएगा
जब प्रबल नाल चुंबक प्रयोग किया जाए तब चुंबकीय क्षेत्र का प्रभाव बढ़ जाता है जिस कारण छड़ पर लगा बल और छड़ का विस्थापन दोनों बढ़ जाते हैं
जब छड़ AB की लंबाई में वृद्धि कर दी जाती है तो बल में भी वृद्धि हो जाती है और छड़ का विस्थापन बढ़ जाएगा
प्रश्न 3 पश्चिम की ओर प्रक्षेपित कोई धनावेशित कण (अल्फ़ा-कण) किसी चुंबकीय क्षेत्र द्वारा उत्तर की ओर विक्षेपित हो जाता है। चुंबकीय क्षेत्र की दिशा क्या है?
दक्षिण की ओर
पूर्व की ओर
अधोमुखी
उपरिमुखी
उत्तर-
उपरिमुखी
प्रश्न (पृष्ठ संख्या 261)
प्रश्न 1 फ्लेमिंग का वामहस्त नियम लिखिए
उत्तर- फ्लेमिंग का वामहस्त नियम-इस नियम के अनुसार अपने बाएँ हाथ की तर्जनी, मध्यमा और अँगूठे को इस प्रकार फैलाइए कि ये तीनों एक-दूसरे के परस्पर लंबवत् हों। यदि तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा और मध्यमा चालक में प्रवाहित विद्युत धारा की दिशा प्रदर्शित करें तो अँगूठा चालक की गति की दिशा अथवा चालक पर आरोपित बल की दिशा की ओर संकेत करेगा
प्रश्न 2 विद्युत मोटर का क्या सिद्धांत है?
उत्तर- विद्युत मोटर का सिद्धांत:
विद्युत मोटर का कार्य करने का सिद्धांत विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव पर आधारित है चुंबकीय क्षेत्र में लौह-क्रोड़ पर लिपटी कुंडली से जब विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो वह एक बल का अनुभव करती है जिससे मोटर का आर्मेचर चुंबकीय क्षेत्र में घूमने लगता है कुंडली के घूमने की दिशा फ्लेमिंग के वामहस्त नियम के अनुसार होता है यही विद्युत मोटर का सिद्धांत हैं
प्रश्न 3 विद्युत मोटर में विभक्त वलय की क्या भूमिका है?
उत्तर- विद्युत मोटर में विभक्त वलय का कार्य प्रत्येक अर्धचक्र के बाद विद्युत धारा की दिशा बदलना है। इस प्रकार यह मोटर में एक दिक्-परिवर्तक का कार्य करता है। मोटर में विभक्त वलय ही दिक् परिवर्तक कुंडली के घूर्णन को निरंतर बनाए रखते हैं।
प्रश्न (पृष्ठ संख्या 264)
प्रश्न 1 किसी कुंडली में विद्युत् धारा प्रेरित करने के विभिन्न ढंग स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- किसी कुंडली में विद्युत् धारा प्रेरित करने के विभिन्न ढंग निम्नलिखित हैं-
चुंबक को कुंडली के भीतर या बाहर गति करने से।
कुंडली में प्रवाहित विद्युत् धारा में परिवर्तन करने से।
कुंडली को चुम्बकीय क्षेत्र में घुमाने से।
प्रश्न (पृष्ठ संख्या 265-266)
प्रश्न 1 विद्युत जनित्र का सिद्धांत लिखिए
उत्तर- विद्युत जनित्र का सिद्धांत विद्युत चुंबकीय प्रेरण (इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंडक्शन) पर आधारित है जब एक आयताकार कुंडली को एक सामान चुंबकीय क्षेत्र में घुमाया जाता है तो यह कुंडली के सिरों पर प्रेरित विद्युत उत्पन्न करता है यही विद्युत जनित्र का सिद्धांत है
प्रश्न 2 दिष्ट धारा के कुछ स्रोतों के नाम लिखिए
उत्तर- दिष्ट धारा के कुछ स्रोत निम्नलिखित हैं-शुष्क सेल, सेलों की बैट्री तथा दिष्ट धारा जनित्र (De generator or DC dynamo)
प्रश्न 3 प्रत्यावर्ती विद्युत धारा उत्पन्न करने वाले स्रोतों के नाम लिखिए
उत्तर- प्रत्यावर्ती विद्युत धारा उत्पन्न करने वाले स्रोत हैं-प्रत्यावर्ती विद्युत धारा जनित्र (ac जनित्र) तथा बैट्री आधारित उत्क्रमक (इनवर्टर)।
प्रश्न 4 सही विकल्प का चयन कीजिए-
ताँबे के तार की एक आयताकार कुंडली किसी चुंबकीय क्षेत्र में घूर्णी गति कर रही है। इस कुंडली में प्रेरित विद्युत धारा की दिशा में कितने परिभ्रमण के पश्चात् परिवर्तन होता है?
दो
एक
आधे
चौथाई
उत्तर-
आधे
प्रश्न (पृष्ठ संख्या 267)
प्रश्न 1 विद्युत् परिपथों तथा साधित्रों में सामान्यतः उपयोग होने वाले दो सुरक्षा उपायों के नाम लिखिए।
उत्तर-
भू-संपर्क तार (Earthing)
विद्युत् फ्यूज।
फ्यूज का उपयोग
प्रश्न 2 2kW शक्ति अनुमतांक का एक विद्युत तंदूर किसी घरेलू विद्युत परिपथ (220V) में प्रचालित किया जाता है जिसका विद्युत धारा अनुमतांक 5 है, इससे आप किस परिणाम की अपेक्षा करते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- विद्युत तंदूर की शक्ति (P) = 2kW = 2000W
अत: विद्युत तंदूर द्वारा ली गई धारा (I) = P/ V
=2000220 = 9.09A (लगभग)
जबकि विद्युत परिपथ का विद्युत धारा अनुमतांक 5A है और तंदूर 9.09 A की दर से धारा लेता है, इसलिए यह परिपथ अतिउष्मता अथवा अतिभारण के कारण टूट जायेगा
प्रश्न 3 घरेलू विद्युत परिपथों में अतिभारण से बचाव के लिए क्या सावधानी बरतनी चाहिए?
उत्तर- घरेलू विद्युत परिपथों में अतिभारण से बचाव के लिए हमें निम्नलिखित सावधानियाँ बरतनी चाहिए-
एक ही सॉकेट से बहुत से विद्युत साधित्रों को नहीं जोड़ना चाहिए।
घरो में दो पृथक-पृथक परिपथों में विद्युत आपूर्ति की जानी चाहिए। इसके लिए 15A विद्युत धारा अनुमतांक वाले तथा 5A विद्युत धारा अनुमतांक वाले दो पृथक-पृथक परिपथों में क्रमशः उच्च शक्ति वाले साधित्रों जैसे गीजर, कूलर आदि तथा निम्न शक्ति वाले साधित्रों; जैसे-पंखे, बल्ब आदि चलाने चाहिए।
उचित धारा अनुमतांक वाले पृथक-पृथक फ्यूज़ लगवाने चाहिए।
उत्तम गुणवत्ता वाले तार, विद्युतरोधी टेप का उपयोग करना चाहिए।
अभ्यास प्रश्न (पृष्ठ संख्या 269-270)
प्रश्न 1 निम्नलिखित में से कौन किसी लंबे विद्युत धरावाही तार के निकट चुंबकीय क्षेत्र का सही वर्णन करता है?
चुंबकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाएँ तार के लंबवत होती हैं।
चुंबकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाएँ तार के समांतर होती हैं।
चुंबकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाएँ अरीय होती हैं जिनका उदभव तार से होता है।
चुंबकीय क्षेत्र की संकेंद्री क्षेत्र रेखाओं का केंद्र तार होता है।
उत्तर-
चुंबकीय क्षेत्र की संकेंद्री क्षेत्र रेखाओं का केंद्र तार होता है।
प्रश्न 2 वैद्युतचुंबकीय प्रेरण की परिघटना-
किसी वस्तु को आवेशित करने की प्रक्रिया है।
किसी कुंडली में विद्युत धारा प्रवाहित होने के कारण चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करने की प्रक्रिया है।
कुंडली तथा चुंबक के बीच आपेक्षिक गति के कारण कुंडली प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न करना है।
किसी विद्युत मोटर की कुंडली को घूर्णन कराने की प्रक्रिया है।
उत्तर-
कुंडली तथा चुंबक के बीच आपेक्षिक गति के कारण कुंडली प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न करना है।
प्रश्न 3 विद्युत धारा उत्पन्न करने की युक्ति को कहते हैं μ
जनित्र
गैल्वेनोमीटर
ऐमीटर
मोटर
उत्तर-
जनित्र
प्रश्न 4 किसी ac जनित्रा तथा dc जनित्र में एक मूलभूत अंतर यह है कि-
ac जनित्र में विद्युत चुंबक होता है जबकि dc मोटर में स्थायी चुंबक होता है।
dc जनित्र उच्च वोल्टता का जनन करता है।
ac जनित्र उच्च वोल्टता का जनन करता है।
ac जनित्र में सर्पी वलय होते हैं जबकि कब जनित्र में दिक्परिवर्तक होता है।
उत्तर-
ac जनित्र में सर्पी वलय होते हैं जबकि कब जनित्र में दिक्परिवर्तक होता है।
प्रश्न 5 लघुपथन के समय परिपथ में विद्युत धारा का मान-
बहुत कम हो जाता है।
परिवर्तित नहीं होता।
बहुत अधिक बढ़ जाता है।
निरंतर परिवर्तित होता है।
उत्तर-
बहुत अधिक बढ़ जाता है।
प्रश्न 6 निम्नलिखित प्रकथनों में कौन-सा सही है तथा कौन-सा गलत है? इसे प्रकथन के सामने अंकित कीजिए-
विद्युत मोटर यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित करता है।
विद्युत जनित्र वैद्युतचुंबकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है।
किसी लंबी वृत्ताकर विद्युत धरावाही कुंडली के केंद्र पर चुंबकीय क्षेत्र समांतर सीधी क्षेत्र रेखाएँ होता है।
हरे विद्युतरोधन वाला तार प्रायः विद्युन्मय तार होता है।
उत्तर-
गलत।
सही।
सही।
गलत।
प्रश्न 7 चुंबकीय क्षेत्र के तीन स्रोतों की सूची बनाइए।
उत्तर- स्थायी चुंबक
विद्युत् चुंबक
पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र।
प्रश्न 8 परिनालिका चुंबक की भाँति कैसे व्यवहार करती है? क्या आप किसी छड़ चुंबक की सहायता से किसी विद्युत धारावाही परिनालिका के उत्तर ध्रुव तथा दक्षिण ध्रुव का निर्धारण कर सकते हैं?
उत्तर- पास-पास लिपटे विद्युतरोधी ताँबे के तार की बेलन की आकृति की अनेक फेरों वाली कुंडली को परिनालिका कहते हैं। जब इस परिनालिका से विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, तो इसमें छड़ चुंबक की तरह ही चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं का पैटर्न बनता है, जिसका एक सिरा N ध्रुव तथा दूसरा सिरा S ध्रुव की भाँति व्यवहार करता है। परिनालिका के अंदर क्षेत्र रेखाएँ समांतर सरल रेखाओं की भाँति होती हैं, जो यह दर्शाता है कि परिनालिका के भीतर एक समान चुंबकीय क्षेत्र है। हाँ, हम किसी विद्युत धारावाही परिनालिका के उत्तर ध्रुव तथा दक्षिण ध्रुव का निर्धारण छड़ चुंबक की सहायता से कर सकते हैं। इसके लिए किसी ज्ञात N ध्रुव वाले छड़ चुंबक को परिनालिका के एक सिरे के समीप लाते हैं। यदि प्रतिकर्षण हुआ तो सिरा N-ध्रुव तथा आकर्षण होने पर S-ध्रुव होगा। इसी प्रकार, परिनालिका के दूसरे सिरे के ध्रुव भी ज्ञात किए जा सकते हैं, क्योंकि समान ध्रुवों के बीच प्रतिकर्षण तथा असमान ध्रुवों के बीच आकर्षण होता है।
प्रश्न 9 किसी चुंबकीय क्षेत्र में स्थित विद्युत धारावाही चालक पर आरोपित बल कब अधिकतम होता है?
उत्तर- किसी चुंबकीय क्षेत्र में स्थित विद्युत धारावाही चालक पर आरोपित बल उस समय अधिकतम होता है जब विद्युत धारा की दिशा चुंबकीय क्षेत्र की दिशा के लंबवत होती है।
प्रश्न 10 मान लीजिए आप किसी चैंबर में अपनी पीठ को किसी दीवार से लगाकर बैठे हैं। कोई इलेक्ट्रॉन पुंज आपके पीछे की दीवार के सामने वाली दीवार की ओर क्षैतिजतः गमन करते हुए किसी प्रबल चुंबकीय क्षेत्र द्वारा आप के दायीं ओर विक्षेपित हो जाता है। चुंबकीय क्षेत्र की दिशा क्या है?
उत्तर- फ्लेमिंग के वामहस्त नियम के अनुसार आरोपित बल की दिशा चुंबकीय क्षेत्र तथा विद्युत् धारा दोनों की दिशाओं के लंबवत् होती है। विद्युत् धारा की दिशा इलेक्ट्रॉनों की गति की दिशा के विपरीत होती है। इसलिए चुंबकीय क्षेत्र की दिशा नीचे की ओर होगी।
प्रश्न 11 विद्युत मोटर का नामांकित आरेख खींचिए। इसका सिद्धांत तथा कार्यविधि स्पष्ट कीजिए। विद्युत मोटर में विभक्त वलय का क्या महत्व है?
उत्तर- सिद्धान्त-
जब किसी चुंबकीय क्षेत्र में समकोण पर रखे चालक में धारा प्रवाहित की जाती है, तो एक बल जो चुंबकीय क्षेत्र तथा चालक पर लगता है, वह दोनों चुंबकीय एवं चालक पर लंब होता है। चालक इस बल के लगने से गतिमान हो जाता है।
कार्यविधि-
विद्युत मोटर में विद्युतरोधी तार की एक आयताकार कुंडली ABCD होती है। यह कुंडली किसी चुंबकीय क्षेत्र के दो ध्रुवों के बीच इस प्रकार रखी होती है कि भुजाएँ AB तथा CD चुंबकीय क्षेत्र की दिशा के लंबवत रहें। कुंडली के दो सिरे विभक्त वलय के दो अर्धभागों P तथा Q से संयोजित होते है। P तथा Q के बाहरी चालक सिरे क्रमशः दो स्थिर चालक ब्रुशों x तथा Y से स्पर्श करते हैं। बैटरी से चलकर चालक ब्रुश X से होते हुए विद्युत धारा कुंडली ABCD में प्रवेश करती है तथा ब्रुश Y से होते हुए बैटरी के दूसरे टर्मिनल पर वापस भी आ जाती है। इस प्रकार कुंडली में धारा इसकी भुजा AB में A से B की ओर तथा भुजा CD में C से D की ओर प्रवाहित होती है। फ्लेमिंग के वामहस्त नियम के अनुसार, भुजा AB पर आरोपित बल इसे अधोमखी धकेलता है. जबकि भुजा CD पर आरोपित बल इसे उपरिमुखी धकेलता है। इस प्रकार किसी अक्ष पर घूमने के लिए स्वतंत्र कुंडली तथा धुरी वामावर्त घूर्णन करते हैं। आधे घूर्णन में Q का संपर्क ब्रुश x से होता है तथा P का संपर्क ब्रुश Y से होता है। अतः, कुंडली में विद्युत धारा उत्क्रमित होकर पथ DCBA के अनुदिश प्रवाहित होती है। विद्युत धारा के उत्क्रमित होने पर दोनों भुजाओं AB तथा CD पर आरोपित बलों की दिशाएँ भी उत्क्रमित हो जाती हैं। इस प्रकार कुंडली की भुजा AB जो पहले अधोमुखी धकेली गई थी, अब उपरिमुखी धकेली जाती है, तथा कुंडली की भुजा CD जो पहले उपरिमुख धकेली गई, अब अधोमुखी धकेली जाती है। अतः, कुंडली तथा धुरी उसी दिशा में अब आधा घूर्णन और पूरा कर लेती है। प्रत्येक आधे घूर्णन के पश्चात विद्युत धारा के उत्क्रमित होने का क्रम दोहराता रहता है जिसके फलस्वरूप कुंडली तथा धुरी का निरंतर घूर्णन होता रहता है। विभक्त वलय एक दिक्-परिवर्तक का कार्य करता है। मोटर में विभक्त वलय दिक् परिवर्तक कुंडली के घूर्णन को निरंतर बनाए रखते हैं।
प्रश्न 12 ऐसी कुछ युक्तियों के नाम लिखिए जिनमें विद्युत मोटर उपयोग किए जाते हैं।
उत्तर- विद्युत मोटर एक ऐसी युक्ति है, जिसमें विद्युत ऊर्जा का यांत्रिक ऊर्जा में रूपांतरण होता है। इसके कुछ उदाहरण निम्न हैं-विद्युत पंखे, ए सी, वाशिंग मशीन, मिक्सर ग्राईन्डर, कूलर, कंप्यूटर, जल पंप, गेहूँ पीसने वाली चक्की इत्यादि।
प्रश्न 13 कोई विद्युत् रोधी ताँबे की तार की कुंडली किसी गैल्वनोमीटर से संयोजित है। क्या होगा यदि कोई छड़ चुंबक
कुंडली में धकेला जाता है?
कुंडली के भीतर से बाहर खींचा जाता है?
कुंडली के भीतर स्थिर रखा जाता है?
उत्तर-
जैसे ही छड़ चुंबक कुंडली में धकेला जाता है वैसे ही गैल्वनोमीटर की सूई में Transient Distraction होता है। यह कुंडली में विद्युत् धारा की उपस्थिति का संकेत देता है।
जब चुंबक को कंडली के भीतर से बाहर खींचा जाता है तो सूई में क्षणिक विक्षेप होता है पर विपरीत दिशा में होता है।
यदि चुंबक को कुंडली के भीतर स्थिर रखा जाता है तो कुंडली में कोई विद्युत् धारा उत्पन्न नहीं होती। Deflection शून्य हो जाता है।
प्रश्न 14 दो वृत्ताकार कुंडली A तथा B एक-दूसरे के निकट स्थित हैं। यदि कुंडली A में विद्युत धारा में कोई परिवर्तन करें तो क्या कुंडली B में कोई विद्युत धारा प्रेरित होगा? कारण लिखिए।
उत्तर- हाँ, कुंडली B में विद्युत धारी प्रेरित होगी।
जब कुंडली A में प्रवाहित विद्युत धारा में परिवर्तन होता है, तो इसके चुंबकीय क्षेत्र में भी परिवर्तन होता है। चूंकि कुंडली B कुंडली A के निकट है इसलिए कुंडली B के चारों ओर भी. चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं में परिवर्तन होता है, जिसके कारण कुंडली B में प्रेरित धारा उत्पन्न होती है।
प्रश्न 15 निम्नलिखित की दिशा को निर्धारित करने वाली नियम लिखिए-
किसी विद्युत धारावाही सीधे चालक के चारों ओर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र
किसी चुंबकीय क्षेत्र में, क्षेत्र के लंबवत् स्थित, विद्युत धारावाही सीधे चालक पर आरोपित बल।
किसी चुंबकीय क्षेत्र में किसी कुंडली के घूर्णन करने पर उस कुंडली में उत्पन्न प्रेरित विद्युत धारा।
उत्तर-
दक्षिण हस्त अंगुष्ठ नियम-
यदि आप अपने दाहिने हाथ में विद्युत् धारा वाही चालक को इस प्रकार पकड़े हुए हैं कि आप का अंगूठा विद्युत् धारा की दिशा की ओर संकेत करता है तो आप की अंगुलियाँ चालक के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाओं की दिशा में लिपटी होंगी। इसे दक्षिण हस्त अंगुष्ठ नियम कहते हैं।
फ्लेमिंग का वामहस्त नियम-
अपने वामहस्त के अंगूठे, तर्जनी के मध्मा अंगुली को इस प्रकार फैलाओ कि वे परस्पर समकोण बनाएँ। तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र को दिखाएगी । मध्य अंगुली धारा के प्रवाह की दिशा को बताएगी और अंगूठा चालक की दिशा की और सकेंत करेगा।
फ्लेमिंग का दक्षिण हस्त नियम-
अपने दाहिने हाथ की तर्जनी, मध्यमा अंगुली तथा अंगूठे को इस प्रकार फैलाइए कि ये तीनों एक-दूसरे के परस्पर लंबवत् हों। इसमें तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा की ओर संकेत करती है तथा अंगूठा चालक की गति की दिशा की ओर संकेत करता है तो मध्यम चालक में प्रेरित विद्युत् धारा की दिशा दर्शाती है।
प्रश्न 16 नामांकित आरेख खींचकर किसी विद्युत जनित्र का मूल सिद्धांत तथा कार्यविधि स्पष्ट कीजिए। इनमें ब्रुश का क्या कार्य है?
उत्तर-
मूल सिद्धांत- विद्युत जनित्र मूलत: विद्युत-चुंबकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करती है। विद्युत जनित्र में यांत्रिक ऊर्जा का उपयोग चुंबकीय क्षेत्र में रखे किसी चालक को घूर्णी गति प्रदान करने में किया। जाता है जिसके कारण प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न होती है, जिसकी दिशा फ्लेमिंग के दक्षिण-हस्त वलय नियम द्वारा ज्ञात की जाती है।
कार्य विधि- मान लीजिए कि प्रारंभिक अवस्था में एक कुंडली ABCD चुंबक के ध्रुवों के बीच उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र में दक्षिणावर्त घुमाया जाता है। भुजा AB ऊपर की ओर तथा भुजा CD नीचे। की ओर गति करती है। फ्लेमिंग का दक्षिण-हस्त नियम लागू करने पर कुंडली में AB तथा CD दिशाओं के अनुदिश प्रेरित विद्युत धाराएँ प्रवाहित होने लगती हैं। बाह्य परिपथ में B2 से B1 की दिशा में विद्युत धारा प्रवाहित होती है।
अब आधे घूर्णन के बाद CD ऊपर की ओर तथा AB नीचे की ओर जाने लगती है। स्पष्टतः कुंडली के अंदर प्रेरित विद्युत धारा की दिशा बदलकर DCBA के अनुदिश हो जाती है और बाह्य परिपथ में B, से B, की दिशा में प्रवाहित होती है। इस तरह हम देखते हैं कि प्रत्येक आधे घूर्णन के बाद विद्युत धारा की दिशा बदल जाती है।
ब्रुश के कार्य- ब्रुश B1 और B2 वलयों R1 तथा R2 पर दबाकर रखा जाता है, जो कुंडली में प्रेरित धारा को बाह्य परिपथ में पहुँचाने में सहायक होते हैं।
प्रश्न 17 किसी विद्युत परिपथ में लघुपथन कब होता है?
उत्तर- कभी-कभी किसी खराबी से या क्षतिग्रत होने के कारण, विद्युन्मय और उदासीन तार आपस में बिना किसी प्रतिरोधक के संपर्क में आ जाते हैं। इससे परिपथ का प्रतिरोध नगण्य हो जाता है और उसमें अत्यधिक धारा प्रवाहित होने लगती है। इस स्थिति को ही लघुपथन कहते हैं। लघुपधन के दौरान अधिक ऊर्जा उत्पन्न होने के कारण उपकरण क्षतिग्रस्त हो सकते हैं या आग भी लग सकती है।
प्रश्न 18 भूसंपर्क तार का क्या कार्य है? धातु के आवरण वाले विद्युत साधित्रों को भूसंपर्कत करना क्यों आवश्यक है?
उत्तर- भूसंपर्क तार पर प्रायः हरा विध्युतरोधी आवरण होता है, घर के निकट भूमि के भीतर बहुत गहराई पर स्थित घातु की प्लेट से संयोजित होता है। इस तार का उपयोग विशेषकर विद्युत इस्त्री, टोस्टर, मेज का पंखा, फ्रिज, आदि घातु के आवरण वाले विद्युत साधित्रों में सुरक्षा के उपाय के रूप में किया जाता है। धातु के आवरणों से संयोजित भूसंपर्क तार विदयुत धारा के लिए अल्प प्रतिरोध का चालन पथ प्रस्तुत करता है। इससे यह सुनिश्चित हो जाता है कि साधित्र के धात्विक आवरण में विद्युत धारा का कोई क्षरण होने पर उस साधित्र का विभव भूमि के विभव के बराबर हो जायेगा। फलस्वरूप इस साधित्र को उपयोग करने वाला व्यक्ति तीव्र विद्युत आधात से सुरक्षित बचा रहता है।