Logo
  • Home
  • Videos
  • Notes
  • News
  • Career
  • Courses
  • Quiz
  • About Us
  • Contact Us

05 उर्जा स्त्रोत


ऊर्जा संरक्षण का नियम :- ऊर्जा संरक्षण के नियम के अनुसार ऊर्जा का नहीं तो सृजन किया जा सकता है और नहीं इसका विनाश किया जा सकता है, इसे सिर्फ एक रूप से दुसरे रुप में रूपांतरित किया जा सकता है| 

Is It Possible to Violate the Law of Conservation of Energy?

मुख्य बिंदु :-

  • किसी भौतिक अथवा रासायिनक प्रक्रम के समय कुल ऊर्जा संरक्षित रहती है| 

  • ऊर्जा के विविध रूप हैं तथा ऊर्जा के एक रूप को दुसरे रूप में परिवर्तित किया जा सकता है| उदाहरण के लिए, यदि हम किसी प्लेट को ऊँचाई से गिराए तो प्लेट कि स्थितिज ऊर्जा का अधिकांश भाग फर्श से टकराते समय ध्वनि ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है| 

  • यदि हम किसी मोमबती को जलाते हैं तो यह प्रक्रम अत्यधिक ऊष्माक्षेपी होती है और इस प्रकार्जलाने पर मोमबती की रासायनिक ऊर्जा, उष्मीय ऊर्जा तथा प्रकाश ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है| 

  • प्रयोज्य रूप में उपलब्ध ऊर्जा चारो ओर के वातावरण में अपेक्षाकृत कम प्रयोज्य रूप में क्षयित हो जाती है| अत: कार्य करने के लिए जिस किसी ऊर्जा के स्रोत का उपयोग करते हैं वह उपभुक्त हो जाता है और पुन: उसका उपयोग नहीं किया जा सकता|

उत्तम ईंधन :- वह ईंधन जो प्रति एकांक आयतन अथवा प्रति एकांक द्रव्यमान पर अधिक कार्य करे, सरलता से सुलभ हो एवं जिसका परिवहन आसान हो उत्तम ईंधन कहलाता है|

एक उत्तम ईंधन के गुण :- 

  1. कम प्रदूषक हो| 

  2. प्रति एकांक आयतन अथवा प्रति एकांक द्रव्यमान पर अधिक कार्य करने वाला हो

  3. जो सरलता से सुलभ हो| 

  4. जिसका भडारण एवं परिवहन आसान हो| 

  5. जो सस्ता हो|

उपलब्धता के आधार पर ऊर्जा के स्रोत के प्रकार :- 

  1. नवीकरणीय स्रोत :- ऊर्जा के वे स्रोत जो असीमित मात्रा में उपलब्ध है एवं जिनका उत्पादन और उपयोग सालों - साल किया जा सके ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत कहलाते हैं| जैसे - हवा, जल, बायो-मास, सौर ऊर्जा,महासागरीय ऊर्जा आदि|  

  2. अनवीकरणीय स्रोत :- ऊर्जा के वे स्रोत जो समाप्य हैं, जो सिमित मात्रा में उपलब्ध है एवं जिनका उपयोग लंबे समय तक नहीं किया जा सके ऊर्जा के अनवीकरणीय स्रोत कहलाते है| जैसे - कोयला, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस आदि|

नवीकरणीय स्रोत एवं अनवीकरणीय स्रोत में अंतर :-

नवीकरणीय स्रोत

अनवीकरणीय स्रोत

  1. वे स्रोत जो असीमित मात्रा में उपलब्ध हैं|

  2. इनका उत्पादन एवं उपयोग वर्षो-वर्षों तक किया जा सकता है|

  3. ये समाप्य स्रोत नहीं है|

  4. उदाहरण : हवा, जल, बायो-मास, सौर ऊर्जा, महासागरीय तरंग आदि|

  1. वे स्रोत जो सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं|

  2. इनका उत्पादन एवं उपयोग वर्षो-वर्षों तक नहीं किया जा सकता है|

  3. ये समाप्य स्रोत है| 

  1. उदाहरण: कोयला, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस आदि| 

ऊर्जा के स्रोत :- उपयोग के आधार पर ऊर्जा के स्रोत :-

  • ऊर्जा के पारंपरिक स्रोत

  • ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्रोत या वैकल्पिक स्रोत

  1. ऊर्जा के पारंपरिक स्रोत :- ऊर्जा के वे स्रोत जो लम्बे समय से उपयोग में लाया जा रहा है| ऊर्जा के पारंपरिक स्रोत कहलाते है|

ऊर्जा के पारंपरिक स्रोत निम्नलिखित हैं|

  1. जीवाश्मी ईंधन 

  2. तापीय विद्युत संयंत्र 

  3. जल विद्युत संयंत्र 

  4. जैव-मात्रा (बायो-मास)

  5. पवन ऊर्जा

  1. ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्रोत या वैकल्पिक स्रोत :- ऊर्जा के वे स्रोत जिनका उपयोग हाल के दिनों से वैकल्पिक स्रोत के रूप में किया जा रहा है ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्रोत या वैकल्पिक स्रोत कहलाते हैं|

ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्रोत या वैकल्पिक स्रोत निम्नलिखित हैं|

  1. सौर ऊर्जा 

  2. समुद्रो से प्राप्त ऊर्जा 

(a) ज्वारीय ऊर्जा 

(b) तरंग ऊर्जा

(c) महासागरीय तापीय ऊर्जा भूतापीय ऊर्जा 

3. भूतापीय ऊर्जा

4. नाभकीय ऊर्जा

ऊर्जा के पारंपरिक स्रोत :-

  1. जीवाश्मी ईंधन :- वे ईंधन जिनका निर्माण सजीव प्राणियों के अवशेषों से करोड़ों वर्षों कि जैविक प्रक्रिया के बाद होता है| जीवाश्मी ईंधन कहते हैं| जैसे - कोयला, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस आदि|

ऊर्जा के स्रोत के रूप में कोयले पर निर्भरता :-

  1. कोयले के उपयोग ने औद्योगिक क्रांति को संभव बनाया है| 

  2. ऊर्जा के बढती मांग कि पूर्ति के लिए आज भी हम जीवाश्मी ईंधन -कोयला तथा पेट्रोलियम पर निर्भर है| 

  3. आज भी ऊर्जा के कुल खपत का अधिकांश भाग (लगभग 70%) कोयले से पूरी कि जाती है|

ऊर्जा के स्रोत के रूप में जीवाश्मी इंधनों की उपयोगिता :- 

  1. घरेलु ईंधन के रूप में - कोयला, केरोसिन एवं प्राकृतिक गैस| 

  2. वाहनों में प्रयोग - पेट्रोल, डीजल एवं CNG आदि| 

  3. तापीय विद्युत संयंत्र में कोयले एवं अन्य जीवाश्मी इंधनों का प्रयोग|

जीवाश्मी इंधनों को जलने के हानियाँ :-

  1. ये जलने पर धुँआ उत्पन्न करते है जिससे वायु प्रदुषण होता है| 

  2. इनकों जलाने से कार्बन, नाइट्रोजन एवं सल्फर के ऑक्साइड छोड़ते है जो अम्लीय वर्षा के मुख्य कारण हैं| 

  3. ये CO2, मीथेन एवं कार्बन मोनोऑक्साइड छोड़ते हैं जो ग्रीन हाउस प्रभाव को बढ़ाते है|

अम्लीय वर्षा :- जीवाश्मी इंधनों को जलाने से ये कार्बन, नाइट्रोजन एवं सल्फर के ऑक्साइड छोड़ते हैं जिनसे अम्लीय वर्षा होती है|

अम्लीय वर्षा की हानियाँ :-

  1. ये पेड़ पौधों को नुकसान पहुंचता है जिससे पेड़-पौधे सुख जाते है, उनके पत्तों एवं फलों को भी नुकसान पहुँचता है|  

  2. ये जलीय जीवों को नुकसान पहुँचता है जिससे कई जीव मर जाते हैं|

  3. ये साथ ही साथ मृदा को भी नुकसान पहुँचता है, जिससे मृदा कि प्रकृति अम्लीय हो जाती है|

जीवाश्मी इंधनों से उत्पन्न प्रदूषकों के कम करने के उपाय :-

  1. दहन प्रक्रम कि दक्षता में वृद्धि करके कम किया जा सकता है|

  2. दहन के फलस्वरूप निकलने वाली हानिकारक गैसों तथा राखों के वातावरण में पलायन को कम करने वाली विविध तकनीकों द्वारा| 

  • हमें जीवाश्मी इंधनों का संरक्षण करना चाहिए|

जीवाश्मी इंधनों का संरक्षण करने के कारण :-

  1. जीवाश्मी ईंधन ऊर्जा के अनाविनीकरणीय स्रोत है| 

  2. प्रकृति में जीवाश्मी ईंधनों का सीमित भंडार है| 

  3. जीवाश्मी ईंधनों के बनने में करोड़ों वर्ष लग जाते है|

टरबाइन का सिद्धांत :- टरबाइन यांत्रिक ऊर्जा से कार्य करता है इसके रोटर-ब्लेड को घुमाने के लिए एक गति देनी होती है जो इसे गतिशील पदार्थ जैसे जल, वायु अथवा भाप से प्राप्त होता है जिससे यह रोटर को ऊर्जा प्रदान करते है| वह इस यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित करने के लिए डायनेमो के शैफ्ट को घुमा देता है| यही टरबाइन का सिद्धांत है|

ताप विद्युत की प्रक्रिया :- ताप विद्युत की प्रक्रिया में टरबाइन को घुमाने के लिए ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों का उपयोग किया जाता है| ये ऊर्जा के विभिन्न स्रोत निम्नलिखित हैं

  1. ऊँचाई से गिरता हुआ पानी द्वारा|

  2. ऊष्मा देकर जल से भाप उत्पन्न कर| 

  3. पवन के तेज झोकों द्वारा|

यह प्रक्रिया निम्न है :-

ऊर्जा स्रोत द्वारा टरबाइन का घुमाना

↓

टरबाइन द्वारा '

ली गयी यांत्रिक ऊर्जा द्वारा डायनेमो के शैफ्ट को घुमाना

↓

डायनेमो द्वारा विद्युत ऊर्जा का उत्पन्न होना |

  1. तापीय विद्युत संयंत्र :- 

  • विद्युत संयंत्रों में प्रतिदिन विशाल मात्रा में जीवाश्मी ईंधन का दहन करके जल उबालकर भाप बनाई जाती है जो टरबाइनो घुमाकर विद्युत उत्पन्न करती है|

  • इन संयंत्रों में ईंधन के दहन द्वारा उष्मीय ऊर्जा उत्पन्न कि जाती है जिसे विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित किया जाता है| इसलिए इसे तापीय विद्युत संयंत्र कहते है|

  • बहुत से तापीय संयंत्र के कोयले तथा तेल के क्षेत्रों के निकट ही स्थापित इसलिए किये जाते है ताकि समान दूरियों तक कोयले तथा पेट्रोलियम के परिवहन कि तुलना में विद्युत संचरण अधिक दक्ष हो|

  1. जल विद्युत संयंत्र :- 

  • जल विद्युत संयंत्र में बहते जल कि गतिज ऊर्जा अथवा किसी ऊँचाई पर स्थित जल की स्थितिज ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित किया जाता है| 

  • ऐसे जल-प्रपातों कि संख्या बहुत कम है इसलिए कृत्रिम जल प्रपात का निर्माण किया जाता है जिसमें नदियों या जलाशयों की बहाव को रोककर बड़े जलाशयों (कृत्रिम झीलों) में जल को एकत्र करने के लिए बड़े-बड़े बांध बनाए जाते हैं| जब इसमें जल का स्तर ऊँचा हो जाता है तो पाइप द्वारा जल की धार से बांध के आधार के पास स्थापित टरबाइन के ब्लेड को घुमाया जाता है जिससे जनित्र द्वारा विद्युत उत्पादन होता है|

बांध निर्माण एवं उससे समस्याएँ :- 

  • टिहरी बांध तथा सरदार सरोवर बांध जिसकी निर्माण परियोजना का विरोध हुआ था| 

  • बाँधों के टूटने पर भयंकर बाढ़ आने का खतरा रहता है| 

  • इससे पेड़-पौधे, वनस्पति आदि जल में डूब जाते हैं वे अवायवीय परिस्थितियों में सड़ने लगते हैं और विघटित होकर विशाल मात्र में मीथेन गैस उत्पन्न करता है जो कि एक ग्रीन हाउस गैस है|

बाँधों के निर्माण से होने वाले नुकसान :-

  1. बाँधों के निर्माण से बहुत से कृषि योग्य भूमि नष्ट हो जाती है| 

  2. मानव आवास नष्ट हो जाते हैं|

  3. आस-पास के लोगों एवं जीव जंतुओं को विस्थापित होना पड़ता है जिससे उनके पुनर्वास कि समस्या उत्पन्न हो जाती है|

  4. इससे पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुँचता है|

ऊर्जा के पारंपरिक स्रोतों के लिए प्रोद्योगिकी में सुधार :- ऊर्जा के पारंपरिक स्रोतों के लिए प्रोद्योगिकी में सुधार के क्रम में दो प्रमुख प्रौद्योगिकी प्रचलित है जो निम्न है

  1. जैव-मात्रा (बायो-मास)

  2. पवन ऊर्जा

जैव मात्रा

16,698 Biomass Stock Photos, Pictures & Royalty-Free Images - iStock

  1. जैव-मात्रा :- वे ईंधन जो हमें पादप एवं जंतु उत्पाद से प्राप्त होते है उन्हें जैव-मात्रा कहते हैं| जैसे - लकड़ी, गोबर, सूखे पत्ते और तने आदि|

  • ये ज्वाला के साथ जलते है| 

  • इन्हें जलाने पर अत्यधिक धुँआ निकालता है| 

  • ये ईंधन अधिक ऊष्मा उत्पन्न नहीं करते है|

  • ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है| 

  • जैव-मात्र ऊर्जा का नवीनीकरणीय स्रोत है|

चारकोल (काष्ठ कोयला) :- जब लकड़ी को वायु कि सीमित आपूर्ति में जलाते हैं उसमें उपस्थित जल एवं वाष्पशील पदार्थ बाहर निकल जाते हैं तथा इसके अवशेष के रूप में चारकोल रह जाता है|

चारकोल के गुण :- 

  1. चारकोल बिना ज्वाला के जलता है| 

  2. इससे अपेक्षाकृत कम धुँआ निकलता है|

  3. इसकी ऊष्मा उत्पन्न करने की दक्षता भी अधिक होती है|

जैव गैस या गोबर गैस :- जैव गैस का प्रचलित नाम गोबर गैस है क्योंकि इस गैस को बनाने में उपयोग होने वाला मुख्य पदार्थ गोबर है| 

Gobar Gas Plant: गोबर गैस प्लांट लगाने की पूरी जानकारी, पढ़िए इसकी उपयोगिता

इसकी विशेषता निम्न है :

  • जैव गैस एक संयंत्र में उत्पन्न किया जाता है| 

  • इस संयंत्र को जैव गैस संयंत्र या गोबर गैस संयंत्र कहते है| 

  • इस गैस का उपयोग ईंधन व प्रकाश स्रोत के रूप में गाँव-देहात में किया जाता है| 

  • यह एक उत्तम ईंधन है क्योंकि इसमें 75 प्रतिशत मेथेन गैस होती है|

  • इसकी तापन क्षमता अधिक होती है| 

  • यह धुँआ उत्पन्न किये बिना जलती है| 

  • इसका उपयोग प्रकाश स्रोत के रूप में भी किया जाता है| 

  • तकनीक के प्रयोग से यह एक सस्ता ईंधन बन गया है| 

  • इससे उत्पन्न शेष बची स्लरी का उपयोग एक उत्तम खाद के रूप में किया जाता है क्योंकि इसमें प्रचुर मात्रा में नाइट्रोजन एवं फोस्फोरस होता है|

बायो गैस का निर्माण :- गोबर, फसलों के काटने के पश्चात् बचे अपशिष्ट सब्जियों के अपशिष्ट जैसे विविध पादप तथा वाहित मल जब ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में अपघटित होते है तो बायो-गैस /जैव गैस का निर्माण होता है| 

कर्दम :- जैव गैस बनाने के लिए मिश्रण टंकी में गोबर तथा जल का एक गाढ़ा घोल डाला जाता है, जिसे कर्दम या स्लरी कहते है| 

संपाचित्र :- संपाचित्र चारो ओर से बंद एक कक्ष होता है जिसमें ऑक्सीजन नहीं होता है| यह बायो-गैस संयंत्र का सबसे बड़ा एवं प्रमुख भाग होता हैं| इसी भाग में अवायवीय सूक्ष्म जीव गोबर कि स्लरी के जटिल यौगिकों का अपघटन कर देते है|

बायो गैस निर्माण प्रक्रिया :-

मिश्रण टंकी में कर्दम (स्लरी) का डाला जाना 

↓

अवायवीय सूक्ष्म जीवों द्वारा गोबर कि स्लरी के जटिल यौगिकों का अपघटन करना

↓

अपघटन के पश्चात् मीथेन, CO2, हाइड्रोजन तथा हाइड्रोजन सल्फाइड गैसों का उत्पन्न होना 

↓

बनी हुई गैस का गैस टंकी में संचित होना 

↓

प्रक्रम द्वारा शेष बची स्लरी का निर्गम टंकी में इक्कठा होना 

बायो-गैस संयंत्र में बनने वाली गैसें :-

  1. मीथेन

  2. CO2 

  3. हाइड्रोजन 

  4. हाइड्रोजन सल्फाइड

जैव-गैस निर्माण से निम्न उदेश्य पूर्ति होती है :-

  1. इसके निर्माण से ऊर्जा का सुविधाजनक दक्ष स्रोत मिलता है| 

  2. इसके निर्माण से उत्तम खाद मिलती है| 

  3. इसके निर्माण से अपशिष्ट पदार्थों के निपटारे का सुरक्षित उपाय भी मिल जाता है|

शेष बची स्लरी का उपयोग :- 

  1. इस स्लरी में नाइट्रोजन तथा फॉस्फोरस प्रचुर मात्र में होता है इसलिए यह एक उत्तम खाद के रूप में काम आता है|

पवन ऊर्जा

Large-Scale Wind Power Could Cause Warming - ECS

पवन ऊर्जा :- आजकल पवन ऊर्जा का उपयोग विद्युत उत्पन्न करने में किया जा रहा है|

पवन :- गतिशील वायु को पवन कहते है | इसलिए इनमें गतिज ऊर्जा होती है और इनमें कार्य करने कि क्षमता होती हैं|

पवन की उत्पत्ति :- सूर्य के विकिरणों द्वारा भूखंडों तथा जलाशयों के असमान तप्त होने के कारण वायु में गति उत्पन्न होती है तथा पवनों का प्रवाह होता है| 

पवन-चक्की :- पवन-चक्की एक संयंत्र है जिससे पवन के गतिज ऊर्जा का उपयोग कर विद्युत ऊर्जा बनाई जाती है|

पवन-चक्की की संरचना :- पवन-चक्की किसी ऐसे विशाल विद्युत पंखे के समान होती है जिसे किसी दृढ़ आधार पर कुछ ऊँचाई पर खड़ा कर दिया जाता है|

पवन-ऊर्जा फार्म :- किसी विशाल क्षेत्र में बहुत-सी पवन चक्कियाँ लगाई जाती हैं, इस क्षेत्र को पवन ऊर्जा फार्म कहते हैं|

पवन चक्की द्वारा व्यापारिक स्तर पर विद्युत निर्माण :- 

व्यापारिक स्तर पर विद्युत प्राप्त करने के लिए किसी पवन ऊर्जा फार्म की सभी पवन चक्कियों को परस्पर (एक दुसरे से) युग्मित कर लिया जाता है जिसके फलस्वरूप प्राप्त नेट ऊर्जा सभी पवन-चक्कियों द्वारा उत्पन्न विद्युत उर्जाओं के योग के बराबर होती है| 

  • डेनमार्क पवन-ऊर्जा के क्षेत्र में अग्रणी है इसलिए इसे पवनों का देश कहते है| यहाँ देश की 25 प्रतिशत से भी अधिक विद्युत की पूर्ति पवन-चक्कियों के विशाल नेटवर्क द्वारा विद्युत उत्पन्न की जाती है|

पवन-ऊर्जा कि विशेषताएँ :-

  1. पवन ऊर्जा नवीकरणीय  ऊर्जा का एक दक्ष एवं पर्यावरणीय-हितैषी स्रोत है|

  2. इसके द्वारा विद्युत उत्पादन के लिए बार-बार धन खर्च करने कि आवश्यकता नहीं है|

पवन ऊर्जा के  उपयोग की सीमाएँ :-

  1. पवन ऊर्जा फार्म केवल उन्ही क्षेत्रों में स्थापित किये जाते है जहाँ वर्ष के अधिकांश दिनों में तीव्र पवन चलती हों|

  2. टरबाइन की आवश्यक चाल को बनाए रखने के लिए पवन की चाल 15 km/ h से अधिक होनी चाहिए| 

  3. पवन ऊर्जा फार्म स्थापित करने के लिए एक विशाल भूखंड कि आवश्यकता होती है

  4. 1 MW (मेगावाट) के जनित्र के लिए पवन फार्म की भूमि लगभग 2 हेक्टेयर होनी चाहिए|

  5. पवन ऊर्जा फार्म स्थापित करने के लिए आरंभिक लागत अत्यधिक है| 

  6. उनके लिए उच्च स्तर के रखरखाव कि आवश्यकता होती है|

वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत अथवा गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोत :- वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत अथवा गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोत का तात्पर्य ऊर्जा के उन स्रोतों से है जिसे हम पहले कभी प्रयोग नहीं किया परन्तु वर्त्तमान में उसे नई प्रौद्योगिकी द्वारा उर्जा के एक वैकल्पिक स्रोत के रूप देख रहे है या अब प्रयोग कर रहे हैं|

  1. सौर ऊर्जा :- सूर्य से प्राप्त ऊर्जा को सौर उर्जा कहते हैं| ये दृश्य प्रकाश, अवरक्त किरणों पराबैगनी किरणों के रूप में होती हैं| 

सौर स्थिरांक :- पृथ्वी के वायुमंडल की परिरेखा पर सूर्य की किरणों के लंबवत स्थित खुले क्षेत्र के प्रति क्षेत्रफल पर प्रति सेकेंड पहुँचने वाली सौर ऊर्जा को सौर-स्थिरांक कहते हैं| इसका मान 1.4 kJ/ sm2 होता है|

सौर ऊर्जा से चलने वाली युक्तियाँ :- इन युक्तियों में सूर्य से प्राप्त ऊष्मा का उपयोग उष्मक के रूप में किया जाता है जो ऊष्मा को एकत्र कर कार्य करती है|

  1. सौर ऊर्जा को ऊष्मा के रूप में :-

  2. सौर कुकर

  3. सौर जल तापक (सौर गीजर)

  4. सौर जल पम्प

  1. सौर ऊर्जा से विद्युत ऊर्जा :- इन युक्तियों में सौर उर्जा को विद्युत में रूपांतरित कर उपयोग में लाया जाता है|

  1. सौर सेल

सौर कुकर : यह वह युक्ति है जिसमें सूर्य की किरणों को फोफसित करने के लिए दर्पणों का उपयोग एक बॉक्स के ऊपर लगाकर किया जाता है जो एक बढ़िया उष्मक की भांति कार्य 

Solar Cookers, For Cooking, Capacity: 4 Jars, Rs 4600 Avee Energy | ID:  4444425255

करता है| इसमें काँच की शीट की एक ढक्कन होता है जो इसके अंदर प्रवेश करने वाली ऊष्मा को बाहर नहीं निकलने देता है| यह भोजन पकाने के लिए उपयोग में लाया जाता है| 

सौर कुकर का सिद्धांत :- सौर कुकर मुख्यत: दो सिद्धांतों पर कार्य करता है| 

  1. काला रंग ऊष्मा को अधिक सोंखता है : 

इस सिद्धांत के आधार पर ही सौर कुकर को चारो तरफ से काला रंग से रंग जाता है ताकि ये अपने ऊपर पड़ने वाले ऊष्मा को अधिक से अधिक सोंख सके| 

  1. ग्रीन हाउस प्रभाव :- इस सिद्धांत के अनुसार सौर कुकर में एक काँच की शीट ढक्कन के ऊपर लगाया जाता है ताकि उसके अंदर प्रवेश करने वाला विकिरण (ऊष्मा) बाहर न आ सके और अंदर ऊष्मा लगातार बनी रहे| 

सौर कुकर के लाभ :- 

(i) भारत में सौर ऊर्जा लगभग सभी जगहों पर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है | 

(ii) यह पर्यावरण हितैषी है |

(iii) इन कुकर के उपयोग से एक साथ एक से अधिक खाना बनाया जा सकता है | 

सौर कुकर की हानियाँ :-

(i) यह सभी प्रकार के भोजन बनाने के लिए उपयुक्त नहीं है |

(ii) इसका प्रयोग केवल तेज धुप वाले दिनों में ही किया जा सकता है |

(iii) ध्रुवीय क्षेत्रों में तथा उन क्षेत्रों में जहाँ सूर्य बहुत कम दिखाई देता है उपयोग सिमित है | 

  1. सौर सेल :- ये सौर उर्जा से चलने वाली एक युक्ति है जो सौर ऊर्जा को विद्युत उर्जा में रूपांतरित करते हैं|

सौर सैल को बनाने में प्रयुक्त पदार्थ :- सौर सेलों को बनाने के लिए सिलिकॉन का उपयोग किया जाता है| जो प्रकृति में प्रचुर

मात्रा में उपलब्ध हैं, परंतु सौर सेलों को बनाने में उपयोग होने वाले विशिष्ट श्रेणी के सिलिकॉन की उपलब्धता सीमित है।

  • धुप में रखे जाने पर किसी प्ररूपी सौर सेल से 0.5-1.0 V तक वोल्टता विकसित होती है तथा लगभग 0.7 W विद्युत उत्पन्न कर सकते हैं।

सौर पैनल :- जब बहुत अधिक संख्या में सौर सेलों को संयोजित करते हैं तो यह व्यवस्था सौर पैनल कहलाती है| सौर सेलों को एक दुसरे से जोड़कर सौर पैनल बनाया जाता है| इसे जोड़ने के लिए चाँदी (सिल्वर) का उपयोग किया जाता है| 

सौर सेलों का उपयोग :-

  1. सौर ऊर्जा से विद्युत ऊर्जा प्राप्त करने के लिए किया जाता है|

  2. सौर सेलों का उपयोग बहुत से वैज्ञानिक तथा प्रौद्योगिक अनुप्रयोगों के लिए किया जाता है।

  3. ट्रैफिक सिग्नलों, परिकलन यन्त्र तथा बहुत से खिलौनों में सौर सेल लगे होते हैं| 

  4. मानव-निर्मित उपग्रहों में सौर सेल का उपयोग होता हैं|

  5. रेडियो तथा वायरलेस सिस्टम, सुदूर क्षेत्रों के टी. वी. रिले केन्द्रों में सौर सेल पैनल का उपयोग होता है|

सौर सेलों के लाभ :-

  1. इसमें कोई गतिमान पुर्जा नहीं होता है तथा इनका रखरखाव सस्ता है 

  2. ये बिना किसी फोकसन युक्ति के काफी संतोषजनक कार्य करते हैं| 

  3. इन्हें सुदूर तथा अगम्य स्थानों में स्थापित किया जा सकता है| 

  4. यह ऊर्जा का नवीकरणीय स्रोत है|

  5. इससे प्रदुषण नहीं होता है ये पर्यावरण हितैसी हैं|

सौर सेल कि सीमाएँ :- 

  1. सौर सेलों के उत्पादन की समस्त प्रक्रिया बहुत महँगी हैं| 

  2. सौर सेलों को बनाने में उपयोग होने वाले विशिष्ट श्रेणी के सिलिकॉन की उपलब्धता सीमित है।

  3. सौर पैनल बनाने में सिल्वर (चाँदी) का उपयोग होता है जिसके कारण लागत में और वृद्धि हो जाती है।

  4. मँहगा होने के कारण सौर सेलों का घरेलू उपयोग अभी तक सीमित है।

समुद्रों से ऊर्जा तथा नाभकीय ऊर्जा :-

समुद्रों से ऊर्जा :- समुद्रों से प्राप्त ऊर्जा को हम तीन वर्गों में विभाजित करते हैं

  1. ज्वारीय ऊर्जा 

  2. तरंग ऊर्जा 

  3. महासागरीय तापीय ऊर्जा 

1. ज्वारीय ऊर्जा : समुद्रों में उत्पन्न ज्वार-भाटा के कारण प्राप्त ऊर्जा को ज्वारीय ऊर्जा कहते हैं | यह ज्वार-भाटे में जल के स्तर के चढ़ने तथा गिरने से हमें ज्वारीय ऊर्जा प्राप्त होती है।

ज्वार-भाटा :- समुद्र के जल स्तर को दिन में परिवर्तन होने की परिघटना को ज्वार-भाटा कहते है | 

ज्वारीय ऊर्जा का कारण :-

  1. पृथ्वी कि घूर्णन गति 

  2. चन्द्रमा का गुरुत्वीय खिंचाव 

ज्वारीय ऊर्जा का दोहन :- ज्वारीय ऊर्जा का दोहन सागर के किसी संकीर्ण क्षेत्र पर बाँध् का निर्माण करके किया जाता है। बाँध् के द्वार पर स्थापित टरबाइन ज्वारीय ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित कर देती है।

2. तरंग ऊर्जा :- महासागरों के पृष्ठ पर आर-पार बहने वाली प्रबल पवन तरंगें उत्पन्न करती है। इन विशाल तरंगों की गतिज ऊर्जा को भी विद्युत उत्पन्न करने के लिए इन उत्पन्न तरंगों को ट्रेप किया जाता है।  तरंग ऊर्जा को ट्रेप करने के लिए विविध् युक्तियाँ विकसित की गई हैं जो टरबाइन को घुमाकर विद्युत उत्पन्न करती हैं| 

तरंग ऊर्जा की सीमाएँ :-

(i) तरंग ऊर्जा का वहीं पर व्यावहारिक उपयोग हो सकता है जहाँ तरंगें अत्यंत प्रबल हों।

3. महासागरीय तापीय ऊर्जा :- समुद्रों तथा महासागरों के पृष्ठ के जल का ताप और गहराई के ताप में अंतर से प्राप्त प्राप्त तापीय ऊर्जा का उपयोग विद्युत संयंत्रो के उपयोग से विद्युत ऊर्जा प्राप्त करने के लिए किया जाता है| सागरीय तापीय ऊर्जा रूपांतरण विद्युत संयंत्र यह एक यन्त्र है जो समुद्रों तथा महासागरों के पृष्ठ तथा गहराई के तापों का अन्तर से प्राप्त ऊष्मा का उपयोग कर विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करता है| 

महासागरीय तापीय ऊर्जा का दोहन :- इसके दोहन के लिए OTEC विद्युत संयंत्र का उपयोग किया जाता है | यह संयन्त्र महासागर के पृष्ठ पर जल का ताप तथा 2km तक की गहराई पर जल के ताप में जब 20oC का अंतर हो तो ही OTEC संयंत्र कार्य करता है| पृष्ठ के तप्त जल का उपयोग अमोनिया जैसे वाष्पशील द्रवों को उबालने में किया जाता है। इस प्रकार बनी द्रवों की वाष्प फिर जनित्र के टरबाइन को घुमाती है। महासागर की गहराइयों से ठंडे जल को पंपों से खींचकर वाष्प को ठंडा करके फिर से द्रव में संघनित किया जाता है। टरबाइन घूमने से विद्युत उत्पन्न होता है| 

OTEC विद्युत संयंत्र की सीमाएँ :-

(i) महासागर के पृष्ठ पर जल का ताप तथा 2km तक की गहराई पर जल के ताप में जब 20oC का अंतर हो तो ही OTEC संयंत्र कार्य करता है| 

(ii) इसके दक्षतापूर्ण व्यापारिक दोहन में कठिनाइयाँ है| 

B. भूतापीय ऊर्जा:- जब भूमिगत जल तप्त स्थलों के संपर्क में आता है तो भाप उत्पन्न होती है| जब यह भाप चट्टानों के बीच फंस जाती हैं तो इसका दाब बढ़ जाता है| उच्च दाब पर यह भाप पाइपों द्वारा निकाल ली जाती है, यह भाप विद्युत जनरेटर की टरबाइन को घुमती है तथा विद्युत उत्पन्न की जाती है| 

तप्त स्थल :- भौमिकीय परिवर्तनों के कारण भूपर्पटी में गहराइयों पर तप्त क्षेत्रों में पिघली चट्टानें ऊपर धकेल दी जाती हैं जो कुछ क्षेत्रों में एकत्र हो जाती हैं। इन क्षेत्रों को तप्त स्थल कहते हैं।

गरम चश्मा अथवा ऊष्ण स्रोत :- तप्त जल को पृथ्वी के पृष्ठ से बाहर निकलने के लिए जो निकास मार्ग होता है। इन निकास मार्गों को गरम चश्मा अथवा ऊष्ण स्रोत कहते हैं।

लाभ :-

(i) इसके द्वारा विद्युत उत्पादन की लागत अधिक नहीं है | 

(ii) व्यापारिक दृष्टिकोण से इस ऊर्जा का दोहन करना व्यावहारिक है।

सीमाएँ :-

(i) पृथ्वी पर भूतापीय ऊर्जा के क्षेत्र बहुत कम हैं | 

(ii) ऐसे तप्त स्थलों की गहराई में पाइप पहुँचना मुश्किल एवं महँगा होता है |

गरम चश्मा अथवा ऊष्ण स्रोत :- तप्त जल को पृथ्वी के पृष्ठ से बाहर निकलने के लिए जो निकास मार्ग होता है। इन निकास मार्गों को गरम चश्मा अथवा ऊष्ण स्रोत कहते हैं।

लाभ :

(i) इसके द्वारा विद्युत उत्पादन की लागत अधिक नहीं है | 

(ii) व्यापारिक दृष्टिकोण से इस ऊर्जा का दोहन करना व्यावहारिक है।

सीमाएँ :-

(i) पृथ्वी पर भूतापीय ऊर्जा के क्षेत्र बहुत कम हैं | 

(ii) ऐसे तप्त स्थलों की गहराई में पाइप पहुँचना मुश्किल एवं महँगा होता है | 

नाभकीय ऊर्जा :- नाभकीय अभिक्रिया के दौरान मुक्त होने वाली ऊर्जा को नाभकीय ऊर्जा कहते है| नाभकीय ऊर्जा दो प्रकार के अभिक्रिया से प्राप्त होती है :- 

  1. नाभकीय बिखंडन :- एक भारी नाभिक का दो या दो से अधिक हल्के नाभिकों में टूटना नाभकीय बिखंडन कहलाता है| उदाहरण : जैसे - युरेनियम, प्लूटोनियम अथवा थोरियम जैसे भारी नाभिक के परमाणुओ के नाभिक को निम्न उर्जा वाले तापीय न्यूट्रॉन से बमबारी कराकर हल्के नाभिकों में तोडा जाता है| जिसके दौरान भारी मात्रा में ऊर्जा मुक्त होती है|

 1,258 Nuclear Fission Stock Photos, Pictures & Royalty-Free Images - iStock

तापीय न्यूट्रॉन :- ये वो न्यूट्रॉन हैं जो नाभकीय रिएक्टर में उपस्थित भारी जल या मंदक के टकराकर अपनी ऊर्जा खो देते है, ऐसे न्यूट्रॉन को तापीय न्यूट्रॉन कहा जाता है| 

इनका उपयोग : परमाणु के नाभिक को तोड़ने के लिए किया जाता है, इन्ही न्यूट्रॉन से नाभिक पर बमबारी की जाती है|

  1. नाभकीय संलयन :- दो हल्के नाभिकों का टूटकर एक भारी नाभिक में संलयित होना नाभकीय संलयन कहलता है | 

उदाहरण : दो हल्के सामान्यत: हाइड्रोजन नाभिक संलयित होकर एक भारी नाभिक हीलियम का निर्माण करता है जिसमें भारी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है|

यहाँ हाइड्रोजन के समस्थानिक ड्युट्रियम का नाभकीय संलयन के लिए उपयोग हुआ है जबकि हाइड्रोजन का समान्यत: परमाणु भार 1 होता है, से तीन भार वाले हीलियम का निर्माण हुआ है और एक न्यूट्रॉन ऊर्जा के रूप में मुक्त हुआ है| 

  • नाभकीय संलयन को संपन्न कराने के लिए अत्यधिक ताप व दाब की जरुरत होती है


NCERT SOLUTIONS

प्रश्न (पृष्ठ संख्या 273)

प्रश्न 1. ऊर्जा का उत्तम स्रोत किसे कहते हैं?

उत्तर: एक उत्तम ऊर्जा स्रोत वह कहलाता है जो –

  1. सतत् अनवरत रूप से प्रचुरता में आसानी से उपलब्ध हो।

  2. नवीकरणीय हो।

  3. पर्यावरण के लिए हानि रहित (पर्यावरण-मित्र) हो।

  4. मितव्ययी हो।

प्रश्न 2. उत्तम ईंधन किसे कहते हैं?

उत्तर: उत्तम ईंधन: “अधिक कैलोरी मान वाला आसानी से कम मूल्य पर सर्वदा उपलब्ध, संग्रहण एवं परिवहन में प्ररक्षित ईंधन उत्तम ईंधन या आदर्श ईंधन कहलाता है।”

प्रश्न 3. यदि आप अपने भोजन को गर्म करने के लिए किसी भी ऊर्जा का उपयोग कर सकते हैं तो आप किसका उपयोग करेंगे और क्यों?

उत्तर: हम भोजन को गर्म करने के लिए गैसीय जीवाश्म ईंधन (LPG या प्राकृतिक गैस) का प्रयोग करेंगे क्योंकि यह एक उत्तम एवं प्रयोग में आसान ईंधन है।

प्रश्न (पृष्ठ संख्या 279)

प्रश्न 1. जीवाश्मी ईंधन की क्या हानियाँ हैं?

उत्तर: जीवाश्म ईंधन से हानियाँ:

  1. इनके दहन से कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर के ऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइड, लेड ऑक्साइड आदि अनेक वायु प्रदूषक उत्पन्न होते हैं।

  2. ठोस जीवाश्म ईंधन से राख आदि अपशिष्ट बचते हैं।

  3. वायु में हानिकारक गैसों के अतिरिक्त कार्बन के कण एवं धुआँ उत्पन्न होता है।

  4. इसके अतिरिक्त यह एक अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है।

प्रश्न 2. हम ऊर्जा के वैकल्पिक स्त्रोतों की ओर क्यों बढ़ रहे हैं?

उत्तर: परम्परागत ऊर्जा स्रोत हमारी जीवन शैली के बढ़ते स्तर के कारण उत्पन्न ईंधन की अत्यधिक आवश्यकता की आपूर्ति के लिए पर्याप्त नहीं है इसलिए हम ऊर्जा के वैकल्पिक (गैर-परम्परागत) ऊर्जा स्रोत की ओर बढ़ रहे हैं।

प्रश्न 3. हमारी सुविधा के लिए पवन तथा जल ऊर्जा के पारम्परिक उपयोग में किस प्रकार से सुधार किए गए हैं?

उत्तर: हमारी सुविधा के लिए पवन तथा जल ऊर्जा के पारम्परिक उपयोग के स्थान पर उससे विद्युत् उत्पादन किया जा रहा है जो बहु उपयोगी और सरल है।

प्रश्न (पृष्ठ संख्या 285)

प्रश्न 1. सौर कुकर के लिए कौन-सा दर्पण (अवतल, उत्तल अथवा समतल) सर्वाधिक उपयुक्त होता है?

उत्तर: समतल दर्पण।

प्रश्न 2. महासागरों से प्राप्त हो सकने वाली ऊर्जाओं की क्या सीमाएँ हैं?

उत्तर: महासागरीय ऊर्जाओं (ज्वारीय ऊर्जा, तरंग ऊर्जा एवं महासागरीय तापीय ऊर्जा) की दक्षता अति विशाल है परन्तु इनके दक्षता पूर्वक व्यापारिक दोहन में अनेक कठिनाइयाँ हैं।

प्रश्न 3.भूतापीय ऊर्जा क्या होती है?

उत्तर: भूतापीय ऊर्जा:

“जब जल भूमि के अन्दर तप्त स्थलों के सम्पर्क में आता है तो वाष्पीकृत हो जाता है जो पृथ्वी से बाहर गरम वाष्प (ऊष्मा स्रोत) के रूप में निकल जाती है। इस वाष्प की ऊर्जा का उपयोग विद्युत् ऊर्जा उत्पन्न करने में किया जाता है। इस ऊर्जा को भूतापीय ऊर्जा कहते हैं।”

प्रश्न 4. नाभिकीय ऊर्जा का क्या महत्व है?

उत्तर: नाभिकीय ऊर्जा का महत्व:

  1. नाभिकीय ऊर्जा का उपयोग विद्युत् उत्पादन में किया जा सकता है।

  2. नाभिकीय ऊर्जा का उपयोग पनडुब्बी को चलाने में किया जाता है।

  3. कैंसर जैसी बीमारियों के इलाज में इसका उपयोग होता है।

  4. कृषि एवं उद्योग क्षेत्र में इसका उपयोग होता है।

  5. इसमें ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाने वाली गैसें उत्पन्न नहीं होती हैं।

प्रश्न (पृष्ठ संख्या 285)

प्रश्न 1. क्या कोई ऊर्जा स्रोत प्रदूषण मुक्त हो सकता है? क्यों अथवा क्यों नहीं?

उत्तर: हाँ, हो सकता है क्योंकि सौर सेल युक्ति का वास्तविक प्रचालन प्रदूषण मुक्त है लेकिन यह हो सकता है कि उस युक्ति के संयोजन में पर्यावरणीय क्षति हुई हो। इसके अतिरिक्त हाइड्रोजन एक प्रदूषण मुक्त ऊर्जा स्रोत है क्योंकि इसके दहन से जल वाष्प उत्पन्न होती है जो प्रदूषण उत्पन्न नहीं करती।

प्रश्न 2. रॉकेट ईंधन के रूप में हाइड्रोजन का उपयोग किया जाता रहा है? क्या आप इसे CNG की तुलना में अधिक स्वच्छ ईंधन मानते हैं? क्यों अथवा क्यों नहीं?

उत्तर: हाँ, हम हाइड्रोजन को CNG की तुलना में अधिक स्वच्छ ईंधन मानते हैं क्योंकि हाइड्रोजन के दहन से जलवाष्प बनती है जो प्रदूषण पैदा नहीं करती जबकि CNG के दहन से कार्बन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड गैसें बनती हैं जो वायु प्रदूषण करती हैं।

प्रश्न (पृष्ठ संख्या 286)

प्रश्न 1. ऐसे दो ऊर्जा स्रोतों के नाम लिखिए जिन्हें आप नवीकरणीय मानते हैं? अपने चयन के लिए तर्क दीजिए।

उत्तर: नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत:

  1. बायो गैस।

  2. सौर ऊर्जा हैं। क्योंकि ये समाप्त होने वाले नहीं हैं बायोगैस, बायोमास (जन्तु एवं वनस्पति अपशिष्टों) से बनती है जो सदैव प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो सकती है और सूर्य सदैव चमकता रहेगा और हमको ऊर्जा प्रदान करता रहेगा।

प्रश्न 2. ऐसे दो ऊर्जा स्रोतों के नाम लिखिए जिन्हें आप समाप्य मानते हैं। अपने चयन के लिए तर्क दीजिए।

उत्तर: समाप्य ऊर्जा स्त्रोत:

  1. कोयला।

  2. पेट्रोलियम हैं क्योंकि ये दोनों ही ऊर्जा स्रोत प्राकृतिक उथल-पुथल के परिणामस्वरूप हजारों लाखों वर्षों में बनकर तैयार हुए हैं। इनका प्राकृतिक भण्डारण भी सीमित है तथा इनका नवीकरण नहीं किया जा सकता।

अभ्यास प्रश्न (पृष्ठ संख्या 287)

प्रश्न 1. गर्म जल प्राप्त करने के लिए हम सौर जल तापक का प्रयोग किस दिन नहीं कर सकते?

  1. धूप वाले दिन।

  2. बादलों वाले दिन।

  3. गरम दिन।

  4. पवनों (वायु) वाले दिन।

उत्तर:  (b) बादलों वाले दिन।

प्रश्न 2. निम्नलिखित में से कौन जैव-मास ऊर्जा स्रोत का उदाहरण नहीं है?

  1. लकड़ी।

  2. गोबर गैस।

  3. नाभिकीय ऊर्जा।

  4. कोयला।

उत्तर: (c) नाभिकीय ऊर्जा।

प्रश्न 3.

जितने ऊर्जा स्रोत हम उपयोग में लाते हैं उनमें से अधिकांश सौर ऊर्जा को निरूपित करते हैं। निम्नलिखित में से कौन-सा ऊर्जा स्त्रोत अन्ततः सौर ऊर्जा से व्युत्पन्न नहीं है?

  1. भूतापीय ऊर्जा।

  2. पवन ऊर्जा।

  3. नाभिकीय ऊर्जा।

  4. जैव-मास।

उत्तर: (c) नाभिकीय ऊर्जा।

प्रश्न 4. ऊर्जा स्रोत के रूप में जीवाश्मी ईंधनों तथा सूर्य की तुलना कीजिए और उनमें अन्तर लिखिए।

उत्तर: जीवाश्मी ऊर्जा स्रोत एवं सौर ऊर्जा स्रोत में अन्तर –


जीवाश्म ईंधन


सूर्य

1

यह ऊर्जा का अनवीकरणीय स्रोत है।

1

यह ऊर्जा का नवीकरणीय स्रोत है।

2

यह बहुत अधिक प्रदूषण फैलाता है।

2

यह प्रदूषण नहीं फैलाता है।

3

जीवाश्म का आसानी से दोहन जीवाश्म का आसानी से दोहन 

3

इसका दोहन संभव नहीं।

4

निरंतर ऊर्जा प्रदान नहीं कर सकता है।

4

निरंतर ऊर्जा प्रदान करता है।

5

मानव मन चाहे ढंग से उस पर नियंत्रण कर सकता है।

5

मनचाहे ढंग से उसमें ऊर्जा उत्पत्ति पर मानव किसी भी अवस्था में नियंत्रण नहीं कर सकता।

प्रश्न 5. जैव मास का ऊर्जा स्रोत के रूप में जल वैद्युत की तुलना कीजिए और उनमें अन्तर लिखिए।

उत्तर: जैवमात्रा-

  1. ये ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत है।

  2. इसकी लागत ज्यादा नही है।

  3. बायो गैस की उत्पति के करके है।

जल विधुत-

  1. ये भी ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत है।

  2. जल विधुत जल से उत्पन्न होती है।

  3. इसकी लागत कुछ सीमा तक महगी है।

निम्नलिखित से ऊर्जा निष्कर्षित करने की सीमाएँ लिखिए –

  1. पवनें।

  2. तरंगें।

  3. ज्वार-भाटा।

उत्तर:

  1. पवनों से ऊर्जा निष्कर्षण की सीमाएँ:

  2. पवन ऊर्जा फॉर्म केवल उन्हीं क्षेत्रों में स्थापित किये जा सकते हैं जहाँ वर्ष के अधिकांश दिनों में तीव्र पवन चलती हों।

  3. टरबाइन की आवश्यक चाल को बनाये रखने के लिए पवन की चाल भी कम से कम 15 km/h होनी चाहिए।

  4. ऊर्जा फार्म स्थापित करने के लिए विशाल भूखण्ड की आवश्यकता होती है। 1 MW के जनित्र के लिए पवन फॉर्म को लगभग 2 हेक्टेयर भूमि चाहिए।

  5. संचायक सेलों जैसी कोई सुविधा होनी चाहिए जिससे पवन ऊर्जा का उपयोग उस समय किया जा सके जब पवन नहीं चलती है।

  6. पवन ऊर्जा फॉर्म की स्थापना में प्रारम्भिक लागत अत्यधिक है।

  7. पवन चक्कियों के दृढ़ आधार, विशाल पंखुड़ियाँ वायुमण्डल में खुले होने के कारण अंधड़, चक्रवात, धूप, वर्षा आदि प्राकृतिक थपेड़ों को सहन करना पड़ता है, अत: इनके लिए उच्च स्तर के रख-रखाव की आवश्यकता होती है।

  1. समुद्री तरंगों से ऊर्जा निष्कर्षण की सीमाएँ: तरंग ऊर्जा का वहीं पर व्यावहारिक उपयोग हो सकता है जहाँ तरंगें अत्यन्त प्रबल हों।

  2. ज्वार-भाटा से ज्वारीय ऊर्जा निष्कर्षण की सीमाएँ: ज्वारीय ऊर्जा का दोहन सागर के किसी संकीर्ण क्षेत्र पर बाँध का निर्माण करके होता है। इस प्रकार के बाँध निर्मित किए जा सकने वाले स्थान सीमित हैं।

प्रश्न 7. ऊर्जा स्त्रोतों का वर्गीकरण निम्नलिखित वर्गों में किस आधार पर करेंगे –

  1. नवीकरणीय तथा अनवीकरणीय।

  2. समाप्य तथा अक्षय। क्या (a) तथा (b) के विकल्प समान हैं?

उत्तर:

  1. ऊर्जा के वे स्रोत जो प्रकृति में उत्पन्न होते रहते हैं तथा जिनका पुनः उपयोग किया जा सकता है तथा समाप्त नहीं होते, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत के वर्ग में आते हैं। जबकि ऊर्जा के वे स्रोत जो प्रकृति में प्राचीनकाल से एक लम्बी समयावधि में संचित हो पाते हैं तथा उन्हें पुनः प्राप्त करना असम्भव है तथा उनके निरन्तर उपयोग से जो समाप्त हो जाते हैं, अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत के वर्ग में आते हैं।

  2. वे ऊर्जा स्रोत जो निरन्तर उपयोग के कारण समाप्त हो जाते हैं। समाप्य ऊर्जा स्रोत के वर्ग में आते हैं तथा जो निरन्तर उपयोग के बाद भी समाप्त नहीं होते, असमाप्य (अक्षय) ऊर्जा स्रोत के वर्ग में आते हैं।

हाँ (a) तथा (b) के विकल्प प्रायः समान हैं।

प्रश्न 8. ऊर्जा के आदर्श स्रोत में क्या गुण होते हैं?

उत्तर: आदर्श ऊर्जा स्रोत के गुण:

  1. प्रति एकांक आयतन अथवा प्रति एकांक द्रव्यमान अधिक कार्य करता है अर्थात् अधिक ऊर्जा देता है।

  2. सरलता से उपलब्ध होता है।

  3. परिवहन तथा भण्डारण में आसान होता है।

  4. वह सस्ता होता है।

प्रश्न 9. सौर कुकर का उपयोग करने के क्या लाभ एवं हानियाँ हैं? क्या ऐसे भी क्षेत्र हैं जहाँ सौर कुकरों की सीमित उपयोगिता है?

उत्तर: सौर कुकर के उपयोग के लाभ:

  1. ईंधन की बचत होती है।

  2. प्रदूषण नहीं होता है।

  3. रख-रखाव पर कोई खर्चा नहीं होता अर्थात् आर्थिक बचत होती है।

  4. खाना स्वादिष्ट एवं पौष्टिक बनता है।

  5. खाने के जलने की सम्भावना नहीं रहती।

  6. एक ही समय में चार-पाँच खाद्य पदार्थ पकाए जा सकते हैं।

सोलर कुकर के उपयोग की हानियाँ (सीमाएँ):

  1. सौर प्रकाश (धूप) की अनुपस्थिति में इसका उपयोग नहीं किया जा सकता।

  2. वस्तुओं को तलने, रोटी-पूड़ी आदि सेकना सम्भव नहीं।

  3. खाना बनने में अधिक समय लगता है। इसलिए तुरन्त खाना नहीं बना सकते।

  4. चाय आदि बनाना मुश्किल ही नहीं असम्भव ही होता है।

  5. हाँ ऐसे क्षेत्र भी हैं जहाँ सौर कुकरों की सीमित उपयोगिता है जहाँ धूप (सूर्य प्रकाश) कम समय के लिए तथा कम तीव्रता की होती है।

प्रश्न 10. ऊर्जा की बढ़ती माँग के पर्यावरणीय परिणाम क्या हैं? ऊर्जा की खपत को कम करने के उपाय लिखिए।

उत्तर: ऊर्जा की बढ़ती माँग की पूर्ति हेतु पारम्परिक ऊर्जा स्रोतों का दोहन बढ़ेगा। लकड़ी के लिए पेड़-पौधों का अत्यधिक कटान होगा। जीवाश्म (खनिज) ईंधन एवं लकड़ी एवं अन्य पारम्परिक ईंधन के दहन से पर्यावरण प्रदूषित होगा। वनों के कटान से पर्यावरण को पर्याप्त हानि होगी।

ऊर्जा की खपत को कम करने के उपाय:

  1. ऊर्जा के परम्परागत स्रोतों का उपयोग मितव्ययिता के साथ करना।

  2. अनावश्यक रूप से ऊर्जा के दुरुपयोग को रोकना।

  3. ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा देना।

  4. सौर ऊर्जा पर आधारित उपकरणों का अधिकाधिक उपयोग करना।

  5. पवन ऊर्जा का अधिकाधिक उपयोग करना आदि।

Share

About Us

"Welcome to Exam Warrior's. We are countinously striving to make education and examination better and orderly.We will gain opportunities and success with the help of better technology and tools.Career guidance is given here keeping in mind the opportunities and challenges.Seeing your ability, skill, aptitude and interest here, your career counseling will be done and Continuous preparation will be given importance Which will be done in a planned manner.Your preparation will be made simple by adjusting experience and technique....

Quick Links

  • Home
  • News
  • Career
  • Exam
  • Course
  • About Us
  • Contact Us

Latest Updates

  • Notification
  • Result
  • Admit Card
  • Answer Key
  • Syllabus
  • Question

Address

  • Email:- [email protected]

  • Office:- Punas Samastipur Bihar India, Pin Code 848113

  • Phone:- + 91 6203637662/+91 6203637662

Connect With Us

© Copyright 2019. All Rights Reserved by Exam Warriors.
Developed by CodeRelisher